अगर आपको कसरत करने में दिक्कत होती है, तो कभी किसी घुटने के दर्द से परेशान रहने वाले शख्स से पूछें कि सिर्फ खड़ा रहने भर का आसान काम ही उनके लिए कितना मुश्किल होता है।
इस काम में छड़ी, बैसाखियां और व्हीलचेयर कोई भी काम नहीं आता। इस वजह से सदियों से कई लोगों का जीना मुहाल हो चुका है। वैसे, अब इस दर्द से लोगों को मुक्ति दिलाने के काम में जुटी हुई है हड्डी रोग विशेषज्ञों की नई फौज। यह फौज इस जंग में नए ऑर्थोटिक इंप्लाट डिवाइस को हथियार बनाकर लड़ा रही है।
यह डिवाइस हड्डी में लगाए जाते हैं, जिससे घुटनों की उपास्थि या कैर्टिलेज की खामियों को दूर करने में मदद मिलती है। घुटने का कर्टिलेज एक तरह के कुशन की तरह है, जो ज्यादा काम, चोट या उम्र की वजह के टूट जाती है। तब काम आता है, टोटल नी रिप्लेसमेंट सिस्टम।
ऐसा ही एक एक टोटल नी रिप्लेसमेंट सिस्टम बनाया है चेन्नई की इनविक्टा मेडीटेक लिमिटेड। यह पहली ऐसी भारतीय कंपनी है जिसके इस सिस्टम को अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने अपनी सहमति दे दी है।
अपने हाथों में चांदी और कोबाल्ट एलॉय से बनाए इस हल्के ज्वाइंट को थामे हुए कंपनी के सीईओ सतीश कुमार ने बताया है, ‘हमारे इसे सिस्टम की वजह से कार्टिलेज पर ज्यादा भार नहीं पड़ता। इस सिस्टम को लगाने के बाद लोग-बाग अपने पैर को 125 डिग्री तक आराम से मोड़ सकते हैं।
पुराने ज्वाइंट्स से तो आप अपने पैरों को केवल 110 डिग्री तक मोड़ सकते थे। हमारा यह सिस्टम बना है हाई क्वालिटी अल्ट्रा हाई मोल्योक्लूर वेट पोलीथीन से। इसी वजह से कार्टिलेज पर ज्यादा जोर नहीं पड़ता। इस वजह से तो यह पुराने नी कार्टिलेज रिप्लेसमेंट की तुलना में बेहतर विकल्प साबित होता है।
इसके कोबाल्ट बियरिंग्स की वजह से यह कार्टिलेज पर कम जोर डालता है। बेहतर इंजिनियरिंग की वजह से यह काफी आरामदायक है।’ उन्होंने यह भी दिखाया कि यह ज्वाइंट करीब 162 डिग्री तक मुड़ सकता है। इससे रोगियों का दर्द तो कम होगा ही, साथ ही उनकी जेब पर भी ज्यादा असर नहीं होगी।
कुमार का दावा है कि उनके इस नए सिस्टम की वजह से इलाज के खर्च में भी कम से कम एक लाख रुपये की कमी तो आएगी ही आएगी। उनका कहना है कि, ‘पहले तो इस इलाज पर कम से कम पांच लाख रुपये खर्च होते थे। आयतित ज्वाइंट्स की कीमत 80 हजार से एक लाख रुपये के बीच होती है, जबकि हमारे ज्वाइंट्स की कीमत 60 हजार रुपये होती है। इस वजह से इलाज की कीमत में एक लाख रुपये तक कम हो जाती है।’ यह ज्वाइंट आप तक 35 रोगियों में लगाया जा चुका है।