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आधुनिक सूचना युद्ध में विदेशी राज्य तत्त्व

हमें यह समझना होगा कि ऐसे कई तत्त्व हैं जो सूचनाओं को तोड़ने-मरोड़ने का खेल खेल सकते हैं और भारतीय सूचना जगत को निशाना बना सकते हैं। इस विषय में जानकारी दे रहे हैं अजय शाह

Published by
अजय शाह
Last Updated- January 25, 2023 | 9:59 PM IST

हम अब इस बात के अभ्यस्त हो चुके हैं जहां कुछ कारक आधुनिक डिजिटल मीडिया के माध्यम से हमारी सूचनाओं को तोड़ने मरोड़ने का काम करते हैं। ऐसी गतिविधियां सरकारी तत्त्वों द्वारा की जाती हैं, खासतौर पर अलोकतांत्रिक देशों के तत्त्वों द्वारा। ब्रेक्सिट के समय रूस के तौर तरीके और 2016 के अमेरिकी चुनाव के समय उसके प्रयासों को अब अच्छी तरह समझा जा चुका है लेकिन कई अन्य ऐसी परियोजनाओं को न तो उतनी चर्चा मिली और न ही उनका इतना विश्लेषण किया गया। भारत में हम लोगों को यह समझने की आवश्यकता है कि बाहरी देशों से जुड़े तत्त्व भारत में भी ऐसे ऑपरेशन चला सकते हैं। केवल साधारण प्रतिबंध लगाने से बात नहीं बनेगी।

हम सूचना के युग में रहते हैं और सूचना के युग का एक अहम हिस्सा सूचना युद्ध भी है। इसमें बुरे तत्त्व कोशिश करते हैं कि जनता को दी जाने वाली सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ की जाए। इंटरनेट आधारित अभियानों की मदद से गड़बड़ियां की जाती हैं। ऐसा काफी हद तक राजनीतिक रैलियों में आने वाली भीड़ की तरह ही किया जाता है। ऐसे अभियान अक्सर राजनीतिक दलों, निजी व्यक्तियों और सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं।

जनता के दिलोदिमाग को प्रभावित करने का सिलसिला अक्सर अधिक टूथपेस्ट बेचने जैसे छोटे लक्ष्यों के साथ शुरू हुआ लेकिन जल्दी ही वह बड़ी परियोजना में बदल जाता है। ऐसे सबसे प्रसिद्ध अभियान 2016 में पुतिन सरकार ने ब्रिटेन में ब्रेक्सिट को लेकर और उसके बाद अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव के वक्त शुरू किया। यूरोपीय संघ को अस्तव्यस्त करना शुरू से ही सोवियत विदेश नीति का हिस्सा रहा है। ट्रंप को अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर बिठाना अमेरिका को कमजोर करने की कोशिश थी। इन परियोजनाओं से पुतिन सरकार को काफी फायदा हुआ। इंटरनेट के जरिये सूचनाओं से छेड़छाड़ करना अवैध भी नहीं है। यह पैसे की ताकत से एक समन्वित अभियान चलाने की नई काबिलियत है जो कई लोगों की मान्यताओं में अव्यवस्था पैदा करती है। छेड़छाड़ की संभावना इस बात में निहित होती है कि सूचना कितने विश्वसनीय माध्यम से आ रही है।

हम इन चीजों को बेहतर जानते हैं लेकिन 2016 में ऐसा नहीं था। इन अभियानों की सफलता की एक वजह यह भी रही कि उस वक्त इन्हें लेकर इतनी जागरूकता नहीं थी। अब तक तो इन अभियानों के बारे में ढेर सारी जानकारी सामने आ चुकी है क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन में इसकी काफी जांच-पड़ताल हुई। पुतिन सरकार ने इंटरनेट रिसर्च एजेंसी जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल किया जिन्होंने हजारों की तादाद में मिलकर सोशल मीडिया अभियान चलाए। इस संगठन की फंडिंग करने वालों में येवगेनी प्रिगोझिन प्रमुख थे जिन्हें हाल के दिनों में यूक्रेन युद्ध में फंडिंग करने वाले वैगनर समूह के मालिक के रूप में सुर्खियां हासिल हुई हैं।

ये अभियान दो तरह के थे। कई बार इनका एक खास नीतिगत लक्ष्य होता है। उदाहरण के लिए ब्रेक्सिट या ट्रंप की जीत व्यापक तौर पर उदार लोकतंत्रों को बाधित करने वाली घटनाएं रहीं। इसका संबंध भ्रम और अफरातफरी फैलाने से भी है। रूसी ट्रोल्स ने समानांतर रूस से वैक्सीन के समर्थन और विरोध में अभियान चलाए ताकि लोगों को एक दूसरे से नफरत करने पर मजबूर किया जा सके और समुदाय के भीतर ही एक बड़ा विवाद खड़ा हो सके। अक्सर रूसी ट्रोल्स ने अमेरिका में सफलतापूर्वक दक्षिणपंथी चुनावी रैलियां तक आयोजित कराईं।

साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में एक कहावत है एडवांस परसिस्टेंट थ्रेट जिसका अर्थ है स्थायी उन्नत खतरा। इसे राज्य के कारकों द्वारा साइबर हमले के संदर्भ में देखा जा सकता है। केवल सरकारों के पास इतनी क्षमता होती है। ऐसी ही अवधारणा इन अभियानों पर भी लागू की जा सकती है। हजारों लोग अपने शत्रुओं पर केंद्रित रहते हैं और इंटरनेट की मदद से उन्हें बदनाम करने और सरकारी अधिकारियों को शत्रुओं के बारे में प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। सरकारी अभियान कहीं अधिक घातक साबित हो सकते हैं। भविष्य में बेहतर कृत्रिम बुद्धिमता आधारित टेक्स्ट तैयार करने वाले उपाय मसलन चैटजीपीटी आदि की बदौलत संस्कृति और ज्ञान के संकेतकों की लागत में कमी आती है।

सभी सरकारें यह सब कर सकती हैं लेकिन परिपक्व लोकतंत्रों में ऐसा होने की संभावना कम होती है। उदाहरण के लिए जब एरिक स्नोडेन ने अमेरिकी सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा अवैध निगरानी कार्यक्रम को उद्घाटित किया तो उस कार्यक्रम को बंद कर दिया गया।

एक अन्य उदाहरण लें तो अमेरिकी ऐंटी टैंक मिसाइल जेवलिन के बारे में काफी जानकारी उपलब्ध है क्योंकि उसकी बजट प्रक्रिया पारदर्शी है तथा मिसाइल की तादाद समेत उसके बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध है। परिपक्व लोकतांत्रिक देशों में भी ऐसे गोपनीय कार्यक्रम हो सकते हैं लेकिन वे छोटे और कम होते हैं। परंतु रूस और चीन जैसे देशों में हालात काफी अलग होते हैं। इन सरकारों की अपारदर्शिता के कारण खर्चे तथा संगठनों को छिपाना आसान होता है। ये अलोकतांत्रिक सरकारें साइबर हमलों को लेकर किसी तरह के खुलासे से भी प्रभावित नहीं होती हैं।

हमारे देश को भी ऐसे अभियानों की समस्या को पहचानने की आवश्यकता है जो भारतीय राज्य के व्यवहार और हमारी राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की कोशिश करते हैं। फिलहाल ये अभियान स्थानीय कारोबारियों और राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जाते हैं। हमें इस संभावना पर भी विचार करना चाहिए कि ऐसे अभियान विदेशी राज्यों द्वारा चलाए जाते हैं। हम ऐसे कई प्रभावी ऑपरेशंस के बारे में सोच सकते हैं जो भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया अथवा व्यवहार को बदलकर भारतीय राज्य को कमजोर करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए भारत उन विकासशील देशों में से एक है जो यूक्रेन हमले के मामले में रूस के ऐसे अभियानों के निशाने पर है।

ऐसे में क्या करना होगा? अजनबियों से भयभीत रहने वाले भारतीय मानस और गिरफ्तारी और बंद आदि के प्रति रुझान रखने वाले भारतीय मानस में इनका पैठ बनाना बहुत आसान है। यह रास्ता शत्रुओं को भारत को कमजोर करने का लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगा। इंटरनेट आधारित ऐसे अभियान एक बड़ी समस्या हैं जो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आते-जाते रहते हैं। इनसे निपटने के लिए प्रौद्योगिकी, विदेश नीति, मीडिया और राजनीतिक प्रणाली का ज्ञान आवश्यक है। इन समस्याओं को हल करने के लिए दक्षता की आवश्यकता है।

इसका पहला कदम है जागरूकता। एक समय था जब ट्विटर या व्हाट्सऐप के सहारे ज्ञान बघारने वालों को गंभीरता से लिया जाता था। परंतु अब हम गलत सूचनाओं को पहचानने में ज्यादा कुशल हैं और इंटरनेट पर मौजूदा ज्यादातर सामग्री को शंका की दृष्टि से देखते हैं। अब जरूरत यह है कि हम इस आशंका का दायरा बढ़ाएं और विदेशों की अधिनायकवादी सरकारों और भारत को कमजोर बनाने की उनकी प्राथमिकताओं को इसके दायरे में लें।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published : January 25, 2023 | 9:59 PM IST