मार्च महीने की बात है। सिटीबैंक इंडिया ने ऐक्सिस बैंक को अपनी उपभोक्ता परिसंपत्तियों की बिक्री करने की जब घोषणा की उससे ठीक एक सप्ताह पहले ही हॉन्गकॉन्ग ऐंड शांघाई बैंकिंग कॉर्प, इंडिया (एचएसबीसी इंडिया) ने प्रमुख आर्थिक अखबार में आधे पन्ने का विज्ञापन दिया। इस विज्ञापन में एक सवाल पूछा गया, ‘शहर से परे क्या है?’ जवाब था, ‘पूरी दुनिया’। दरअसल इस विज्ञापन के जरिये यह ब्रितानी बैंक भारत में अमेरिका के बैंक के ग्राहकों को लुभा रहा था।
जब अधिग्रहण करार की प्रक्रिया पूरी हो गई इसके बाद ऐक्सिस बैंक ने भी जवाबी कार्रवाई के तहत एक विज्ञापन प्रकाशित कराया जिसमें कहा गया, ‘शहर कभी बंद नहीं होता है। यह खुला रहता है।’ इसके बाद इसमें यह भी जोड़ा गया, ‘बेमिसाल विशेषाधिकार, बेजोड़ सेवा और निरंतर विकास की दुनिया में आपका स्वागत है।’
विज्ञापन की इस जंग के जरिये दरअसल सिटी बैंक के तीस लाख ग्राहकों और 25 लाख क्रेडिट कार्ड धारकों को लक्षित किया गया और इसके साथ ही इस बहस में एक नया आयाम जुड़ गया है कि विदेशी बैंकों के लिए भारतीय बाजार अब कितना आकर्षक है। कई लोगों का मानना है कि भारतीय बाजार अपनी चमक खो रहा है और विदेशी बैंकों को कुछ बेहद कुशल और सक्रिय निजी बैंकों और यहां तक कि कुछ बड़े सरकारी बैंकों से प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो रहा है।
एक विचार यह भी है कि वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियों (फिनटेक) के उभार ने भी विदेशी बैंकों की परेशानियां बढ़ा दी हैं जो आमतौर पर देश के घरेलू ग्राहकों को ही जोड़ते हैं। यह विडंबना है कि उत्तरी लंदन में बार्कलेज बैंक एनफील्ड की शाखा द्वारा पहली कैश मशीन चालू होने के 20 साल बाद भारत में एचएसबीसी बैंक ने 1987 में मुंबई में पहला एटीएम चालू किया था। सिटी बैंक ने भारत सहित 13 अन्य बाजारों में अपने उपभोक्ता बैंकिंग विभाग को बंद कर दिया। इसकी वजह से भी विश्लेषकों की यह धारणा मजबूत हुई है कि अपने देश से बाहर वैश्विक बैंकों की खुदरा बाजारों में भूमिका सीमित होगी जब तक कि वे प्रौद्योगिकी, कर्मचारियों और नवाचार पर खूब निवेश नहीं करते हैं।
वैसे भारत छोडऩे वाले विदेशी बैंकों की सूची लंबी है। वर्ष 2008 में, ड्रेजनर बैंक ने अपना लाइसेंस छोड़ दिया, वहीं डॉयचे बैंक ने 2011 में इंडसइंड बैंक लिमिटेड को अपना क्रेडिट कार्ड कारोबार बेच दिया। मॉर्गन स्टैनली और यूबीएस एजी ने 2013 में अपने लाइसेंस वापस कर दिए थे।
पिछले दशक में, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने अपनी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी बेच दी और अपने कई कारोबार समेट लिए। जेपी मॉर्गन ने एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के लिए अपना लाइसेंस वापस कर दिया, वहीं रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के कई विभाग बेहद मुश्किल परिस्थितियों से जूझने लगे। एचएसबीसी इंडिया ने अपने निजी बैंकिंग कारोबार को बंद कर दिया।
यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती है। इस कड़ी में ब्रिटेन के बार्कलेज बैंक और दक्षिण अफ्रीका के दूसरे सबसे बड़े फस्र्टरैंड बैंक के खुदरा कारोबार का भी ऐसा ही हश्र हुआ। आबु धाबी कॉमर्शियल बैंक ने भी भारत को अलविदा कह दिया और इसके साथ ही बीएनपी पारिबा ने भी अपने संपत्ति प्रबंधन कारोबार को बंद कर दिया।
ऐसे और भी उदाहरण हैं। अक्टूबर 2020 में, ऑस्ट्रेलिया के सबसे पुराने और दूसरे सबसे बड़े बैंक, वेस्टपैक बैंकिंग कॉर्प ने नौकरियों में कटौती की और भारत सहित कुछ बाजारों से अपना कारोबार समेट लिया और विदेशी संचालन को सिंगापुर, लंदन और न्यूयॉर्क जैसे तीन केंद्रों तक ही सीमित कर लिया। नवंबर 2021 में, भारत में अपने कारोबार की रणनीतिक समीक्षा के बाद, राबोबैंक समूह ने भी भारत में दो दशकों से अधिक समय तक संचालन करने के बाद अपनी मुंबई शाखा बंद करने का फैसला कर लिया। इससे ठीक एक महीने पहले, क्रूंग थाई बैंक पीसीएल की मुंबई शाखा ने घोषणा की थी कि वह भारत में परिचालन बंद कर रहा है।
इन सबके परिणामस्वरूप, भारतीय बैंकिंग उद्योग में विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी कम हो रही है। हालांकि कुछ विदेशी बैंकों का संचालन बंद करने के बावजूद, शाखाओं की संख्या लगभग तिगुनी हो गई है। ऐसा इसलिए है कि सिंगापुर के डीबीएस बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण किया है जो स्थानीय स्तर पर अधिग्रहण के माध्यम से एक विदेशी बैंक के बढऩे का पहला उदाहरण है।
फिर भी, कुल बैंक शाखा नेटवर्क में उनकी हिस्सेदारी आधे प्रतिशत से भी कम है। डीबीएस उन दो विदेशी बैंकों में से एक है जिनका स्थानीय रूप से गठन किया गया है जबकि दूसरा स्टेट बैंक ऑफ मॉरीशस (एसबीएम) है। ऐसे कई बैंकों के लिए भारत में अपने उपभोक्ता कारोबार का विस्तार करना मुश्किल हो रहा है, हालांकि कुछ को अवसर भी दिखाई दे रहे हैं क्योंकि ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अति धनाढ्य वर्ग बढ़ा है।
एचएसबीसी इंडिया सहित कुछ विदेशी बैंक, जो परिसंपत्तियों के आधार पर सबसे बड़े बैंक हैं वे बड़े पैमाने के गिरवी कारोबार से जुड़ी फंडिंग, संपत्ति प्रबंधन, विदेशों में पैसा भेजने और विदेशों में अति धनाढ्य भारतीयों के विदेश में पढ़ रहे बच्चों से संपर्क बढ़ाते हुए उनकी सभी बैंकिंग जरूरतें पूरी कर रहे हैं।
जिस तरह जर्मनी की मर्सिडीज बेंज नए युवा करोड़पतियों के लिए लक्जरी कारों की मांग बढ़ा रही है, ठीक वैसे ही विदेशी बैंक भी अमीर वर्ग को लक्षित करने की कोशिश में हैं जिनकी तादाद पहले के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है। अब विदेश बैंक फिनटेक के साथ गठजोड़ करने के मॉडल पर काम कर रहे हैं। अब विदेशी बैंक भारत में प्रासंगिक बने रहने और दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था में वृद्धि करने के लिए बिजनेस टू कज्यूमर (बी2सी) के बजाय ग्राहकों के लिए बिजनेस टू बिजनेस (बी2बी फॉर सी) की रणनीति अपना रहे हैं।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
