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भारत बहुत लंबे समय से बहुपक्षीय व्यापार नीति को लेकर प्रतिबद्ध रहा है। इसकी अच्छी खासी वजह रही है। चुनिंदा देशों के समूह के बीच व्यापारिक समझौतों से अलग बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते व्यापार में विसंगति नहीं उत्पन्न करते। द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के उलट ये अपेक्षाकृत छोटे कारोबारी देशों को भी सशक्त बनाते हैं। चूंकि भारत वैश्विक व्यापार के चुनिंदा हिस्से में शामिल है इसलिए उसे इस समूह में शामिल माना जा सकता है।
वैश्विक आबादी या उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी की तुलना में भारत का वैश्विक व्यापार काफी कम है। बहरहाल ऐसे संकेत हैं कि बहुपक्षीयता को लेकर यह प्रतिबद्धता अब व्यवहार में नहीं अपनाई जा रही है। हालांकि विश्व व्यापार संगठन में भारतीय प्रतिनिधि अभी भी इसे दोहराते हैं।
इसका ताजा प्रमाण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान की गई यह घोषणा कि दोनों देशों के बीच विश्व व्यापार संगठन के समक्ष मौजूद छह विवादों को वापस लिया जा रहा है। इन विवादों में सोलर पैनल का एक चर्चित मामला तो था ही, उसके अलावा काबुली चना, एल्युमीनियम और स्टील के मामले भी थे। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि एक दूसरे के खिलाफ बदले की भावना से लगाए गए शुल्क को समाप्त करेंगे।
एक स्तर पर यह भारत-अमेरिका रिश्ते के लिए जीत की तरह नजर आ सकता है, वहीं आमतौर पर इसे भारतीय व्यापार नीति के लिए नुकसान के तौर पर देखा जाना चाहिए। वास्तविक विजय तब होती जब भारत अमेरिका को सफलतापूर्वक इस बात के लिए मना लेता कि वह विश्व व्यापार संगठन की अपील संस्था में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर वीटो को समाप्त करे।
इस संस्था में न्यायाधीशों के न होने से संगठन की विवाद निस्तारण की प्रक्रिया नखदंत विहीन हो गई है। इस समय वहां व्यापारिक विवादों का द्विपक्षीय समझौतों के सिवा कोई हल नहीं है परंतु ये द्विपक्षीय समझौते बुनियादी तौर पर ही सही नहीं होते हैं। इसमें मजबूत कारोबारी साझेदार दबाव बनाने की स्थिति में रहता है। वे छोटे कारोबारी साझेदार को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
अच्छे कारोबारी रिश्तों का करीबी सामरिक साझेदारी पर निर्भर होना अनुचित और गैर टिकाऊ होता है। विश्व व्यापार संगठन जैसी नियम आधारित संस्था कारोबार को द्विपक्षीय रिश्तों में आने वाले क्षणिक दबावों से बचाने का काम करती है। इस विशिष्ट मामले में अमेरिका का हालिया इतिहास यही रहा है कि उसने अपनी राजनीति के मुताबिक व्यापार नीतियों को बदला। बहुपक्षीय नियमों के बजाय द्विपक्षीय समझौतों पर निर्भरता भारत को ऐसे मनमाने कदमों के जोखिम के दायरे में लाएगी।
व्यापार को लेकर भारत का व्यापक रुख द्विपक्षीयता से प्रभावित रहा है। हाल के वर्षों में व्यापारिक खुलेपन को लेकर बड़ा अवसर क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के रूप में सामने आया था लेकिन भारत अंतिम समय में इससे बाहर हो गया। तब से उसने अपना ध्यान अपेक्षाकृत हल्के और संकीर्ण व्यापारिक समझौतों पर केंद्रित कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ समझौता ऐसा ही है।
सरकार अपनी बहुपक्षीय संबद्धता को बढ़ाने के बजाय विकसित देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर जोर दे रही है। परंतु इसके सकारात्मक नतीजे सामने आना शेष है। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौता कई क्षेत्रों और भारतीय कामगारों और उपभोक्ताओं के लिए यकीनन एक बड़ा कदम है। परंतु भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता भी स्थानीय और वैश्विक व्यापार पर वह असर नहीं डालेगा जो बहुपक्षीय व्यापारिक व्यवस्था का होगा।