देश में कोविड-19 संक्रमण के मामले रिकॉर्ड गति से बढ़ रहे हैं और इनके चलते देश के विभिन्न हिस्सों में चिकित्सा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव पड़ रहा है। कई राज्यों ने वायरस का प्रसार रोकने के लिए लोगों के आवागमन पर भी रोक लगाई है। राष्ट्रीय राजधानी में एक सप्ताह का लॉकडाउन लगाया गया है। लोगों पर रोक और बढ़ते मामले दोनों आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर रहे हैं। आशंका यह भी है कि ये प्रतिबंध और संक्रमण की आशंका जल्दी दूर नहीं होने वाले। बहरहाल, तेजी से खराब होते माहौल के बावजूद केंद्र सरकार राजकोषीय समर्थन जारी रखने की इच्छुक नहीं दिखती। शायद उसका सोचना यह है कि कोविड-19 की दूसरी लहर का असर पहली लहर जैसा नहीं होगा क्योंकि उस वक्त देशव्यापी स्तर पर लॉकडाउन ने अधिक क्षति पहुंचाई थी। अब कारोबारों और नागरिकों की मदद का काम राज्यों पर छोड़ दिया गया है। महाराष्ट्र ने नि:शुल्क अतिरिक्त खाद्यान्न वितरण की घोषणा भी कर दी है।
काफी संभव है कि इस बार वाकई प्रभाव गत वर्ष जैसा न हो। बहरहाल, यह मानना होगा कि कारोबार और नागरिक दोनों अभी पहले झटके से उबर भी नहीं पाए थे कि उन्हें दूसरे झटके का सामना करना पड़ा। यह दलील भी उचित है कि सरकारी व्यय बढ़ाने के रूप में राजकोषीय प्रोत्साहन देना इस समय मददगार नहीं होगा क्योंकि लोगों की गतिविधियां सीमित की गई हैं। परंतु इसकी वजह से केंद्र सरकार को गत वर्ष की भांति समाज के वंचित वर्ग को राहत देने से पीछे नहीं हटना चाहिए। सबकुछ राज्यों पर छोड़ देना न केवल असंवेदनशील होगा बल्कि अदूरदर्शी भी होगा। इसे राजकोषीय संघवाद का चयनित ढंग से इस्तेमाल भी कहा जा सकता है। राज्य महामारी से जूझने में अग्रिम पंक्ति में हैं और उन्हें संसाधनों की आवश्यकता होगी। उनके संसाधनों पर दबाव होगा क्योंकि आर्थिक गतिविधियां बहुत कमजोर हैं। लेकिन उनकी ऋण लेने की क्षमता सीमित है और राज्यों से आशा की जा रही है कि वे राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की राह पर चलेंगे।
राज्यों को अब टीके खरीदने के लिए धन की आवश्यकता होगी। केंद्र सरकार ने टीकाकरण कार्यक्रम सबके लिए खोल दिया है। अब 50 फीसदी टीके राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए उपलब्ध होंगे। शेष 50 फीसदी टीके केंद्र सरकार मौजूदा टीकाकरण कार्यक्रम के लिए इस्तेमाल करेगी। इस संदर्भ में केंद्र सरकार के लिए यह अहम होगा कि वह आपूर्ति को लेकर स्थितियां एकदम स्पष्ट रखे और यह भी बताए कि राज्यों के बीच टीकों का वितरण किस प्रकार किया जाएगा। इससे राज्यों को खरीद की योजना तैयार करने में मदद मिलेगी। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने राज्य सरकारों को टीके की एक खुराक 400 रुपये में और निजी क्षेत्र को 600 रुपये में देने की घोषणा की है। राज्यों की काफी राशि इसमें खर्च होगी।
ऐसे में केंद्र का सहयोग महत्त्वपूर्ण होगा। ऐसी कोई वजह नहीं है जो केंद्र सरकार को गरीबों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण दोबारा शुरू करने से रोके। कई राज्यों ने इसकी मांग की है। एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड प्रणाली तैयार करने में काफी प्रयास लगे हैं। खाद्यान्न की उपलब्धता प्रवासी श्रमिकों को रोके रहने में मदद कर सकती है जिससे संक्रमण का खतरा कम होगा। सरकार गत वर्ष की तरह छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए ऋण सुविधा भी बढ़ा सकती है। रिजर्व बैंक ने 2020 में काफी मदद की थी लेकिन शायद मुद्रास्फीति संबंधी चिंताएं इस बार उसे ऐसा करने से रोक दें। ऐसे में सरकार को ज्यादा पहल करनी होंगी। केंद्र सरकार को राज्यों के साथ काम करके चिकित्सा क्षेत्र का बुनियादी ढांचा मजबूत करने में हरसंभव मदद करनी चाहिए। यकीनन इससे आर्थिक बोझ बढ़ेगा। परंतु संक्रमण बढऩे और आर्थिक सुधार में देरी से नुकसान कहीं अधिक होगा।