तकनीकी क्रांति के इस दौर में किसानों को भी इसका लाभ दिलाने की पहल शुरू हो चुकी है। कॉरपोरेट संगठन
हालांकि इन संगठनों में परस्पर समन्वय की कमी के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हो पा रहा है और इस बाबत पहल केबावजूद किसानों को तकनीक का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इसकी एक बानगी देखिए। उत्तर प्रदेश में आईटी कंपनी इंटेल ने किसानों को तकनीक संबंधी प्रशिक्षण देने का ऐलान किया था
, लेकिन कंपनी का यह प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं हो पाया। अब कंपनी इस बात से ही इनकार कर रही है कि उसने इस तरह की योजना तैयार की थी। महाराष्ट्र का किस्सा तो और दिलचस्प है। यहां मल्टी कमॉडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) और माइक्रोसॉट ने तो किसानों के लिए बाकायदा तकनीक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आगाज तक कर दिया था, लेकिन अंतत: इस कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने में नाकामयाबी ही हाथ लगी।
पुणे केपास स्थित एक गांव का दौरा करने पर (जहां इस कार्यक्रम को शुरू करने का दावा किया गया था) इसकी हकीकत उजागर हो गई। हालात यह थी इस कार्यक्रम केलिए लाए गए कंप्यूटर बक्सों में बंद पड़े हुए थे।एमसीएक्स और किसानों केएक संगठन, शेतकारी संगठन ने पूरे महाराष्ट्र में इस तरह के 48 सेंटर स्थापित करने का लक्ष्य रखा था। एमसीएक्स ने हरेक सेंटर को एक कंप्यूटर, एक लैपटॉप और एक प्रिंटर से लैस करने की घोषणा की था। लेकिन अब तक राज्य के 16 जिलों में ही इस तरह के 18 सेंटर ही अस्तित्व में आ पाए हैं।
पुणे जिले में बारामती के नजदीक सानासार गांव में ऐसा एक भी सेंटर नहीं है। शेतकारी संगठन के एक सदस्य पांडुरंग रायते को यहां किसानों को तकनीकी जानकारी देने के लिए सेंटर चलाने की जि
मेदारी सौंपी गई थी। उन्हें इसके लिए एमसीएक्स की ओर से कंप्यूटर, लैपटॉप और प्रिंटर दो अक्टूबर को ही भी मिल गए थे, लेकिन आज भी वे गोदाम की धूम फांक रहे हैं। इस बाबत पूछे जाने पर रायते ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि,’मैंने कंप्यूटरों को सुरक्षित रखने के लिए सानासार गांव में एक गोदाम को किराए पर लिया है। कंप्यूटर वहां सुरक्षित हैं।
वैसे, ट्रेनिंग और उससे जुड़े काम अभी तक नहीं शुरू हो पाए हैं।‘ गांव के किसानों को भी इसके बारे में ज्यादा पता नहीं है। एक गांव वाले ने बताया कि,’हमने सुना तो था कि यहां कोई कंप्यूटर सेंटर खुलने वाला है, लेकिन अब तक ऐसी कोई चीज यहां खुली नहीं है।‘ एमसीएक्स मे इस प्रोजेक्ट के लिए 30 लाख रुपए दी हैं। यह पूछे जाने पर कि क्यों यह परियोजना सफल नहीं हो पाई, एमसीएक्स के दिल्ली में मौजूद अधिकारी सुनील खैरनार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, ‘हम इस प्रोजेक्ट में शेतकारी संगठन के सदस्यों को कंप्यूटर और प्रिंटर मुहैया करवाते हैं। हमारा रोल यहीं खत्म हो जाता है। शेतकारी संगठन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन लोगों यह समान मिला है, वे इसका पूरा इस्तेमाल करें। वैसे इस बारे में हम संगठन के लोगों से बात करेंगे।‘