सरकार ने ऑनलाइन और दूरवर्ती पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाली कंपनियों की सेवा लेने के इच्छुक नागरिकों को सतर्कता बरतने की सलाह देकर सही समय पर सुविचारित कदम उठाया है। उसने अभिभावकों को उचित चेतावनी दी है कि नि:शुल्क पेशकश के जरिये ग्राहकों को लुभाने वाले इन कार्यक्रमों का वे सावधानीपूर्वक आकलन करें। ये कंपनियां विभिन्न परिवारों (कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों समेत) को पाठ्यक्रम से जोड़ते समय ऑटो डेबिट (खाते से स्वत: पैसे कट जाना) और अन्य वित्तीय प्रभावों के बारे में पूरी जानकारी नहीं देती हैं। अभिभावकों की ओर से लगातार यह शिकायत आ रही थी कि उन्हें पाठ्यक्रम के बारे में भ्रामक जानकारी दी गई और उन्हें रिफंड मिलने में भी बहुत अधिक देरी हो रही है। ऐसे में सरकार को इस मसले पर मशविरा जारी करना जरूरी लगा। हाल ही में पुणे की एक उपभोक्ता अदालत ने इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी बैजूस को एक उपभोक्ता को 50,000 रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया क्योंकि कंपनी ने रिफंड में अनावश्यक देरी की थी।
यह एडटेक उद्योग के लिए सबक सीखने का मौका है। महामारी के दौरान स्कूल बंद रहने पर यह उद्योग खूब फला फूला। सन 2019 में जहां इस उद्योग को 50 करोड़ डॉलर का फंड मिला था वहीं 2020 में यह बढ़कर चार अरब डॉलर हो गया। महामारी के पहले एक यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली) की तुलना में अब देश के एडटेक क्षेत्र में पांच यूनिकॉर्न कंपनियां हैं। एक दशक पहले बिजनेस स्कूल और तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में आए उभार की तरह इस क्षेत्र में भी अविश्वसनीय और गैर भरोसेमंद कंपनियां आ गईं। खासकर किंडरगार्टन से कक्षा 12 तक के अध्ययन वाले इस क्षेत्र में जो मोटे तौर पर शिक्षा नियामकों के दायरे में आता है। जुलाई में इस क्षेत्र को उस समय अनजाने ही मदद मिल गई जब चीन ने कुछ आदेश पारित कर नियम बनाया कि स्कूल के बाद शिक्षण मुहैया कराने वाली एडटेक कंपनियां गैर लाभकारी हों, शिक्षण के घंटे सीमित हों और उनके जनता से या विदेशी पूंजी जुटाने पर रोक लगे। ये कानून इसलिए बनाए गए थे ताकि शिक्षा के खर्च के बोझ से मुक्त होकर परिवारों को ज्यादा बच्चे पैदा करने का प्रोत्साहन मिले। संभव है ऐसा इसलिए भी किया गया हो ताकि चीन की अर्थव्यवस्था में इन कंपनियों के बढ़ते दबदबे को नियंत्रित किया जा सके। चीन के ई-कॉमर्स क्षेत्र में चाहे इन नियमों से आघात पहुंचा हो लेकिन भारत की एडटेक कंपनियां इसके बाद निवेशकों को आकर्षित करने में सफल रहीं।
सरकार की सलाह एक शुरुआती चेतावनी है कि इससे पहले कि कड़ा नियमन हो, एडटेक क्षेत्र अपने तौर तरीके बदल ले। दिक्कत यह है कि इस क्षेत्र की निगरानी करना लगभग असंभव है। साथ ही कारोबारी मॉडल भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बजाय राजस्व पर जोर देने वाला है। इस क्षेत्र के निवेशक प्राय: पांच वर्ष में निर्गम चाहते हैं। ऐसे में सरकार को मानक तय करने तथा ऑनलाइन पढ़ाई के प्रमाणन की जरूरत पड़ सकती है। एडटेक निवेशकों के लिए लॉक इन पर भी विचार किया जा सकता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बिना लॉक इन के मासिक सबस्क्रिप्शन की व्यवस्था की जाए। इनमें से कोई हल समुचित नहीं है। एडटेक कारोबार की प्रकृति कुछ नियमन की मांग करती है। इस सलाह का संदेश प्रसारित करके कम आय वाले कुछ परिवारों को वित्तीय मुश्किल से बचाया जा सकता है। यदि सरकार ने दूरवर्ती शिक्षा की समुचित व्यवस्था की होती (इस पर दो दशक से चर्चा चल रही है) तो महामारी के दौरान पढ़ाई करना इतना मुश्किल न होता। खासतौर पर सरकारी स्कूल में जाने वाले बच्चों के लिए। एडटेक उद्योग का उभार सरकार के लिए इस अंतर को पाटने का उचित अवसर हो सकता है।