प्रतीकात्मक तस्वीर
अमेरिका के कारोबारी साझेदारों के बीच इस बात को लेकर राहत थी कि डॉनल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत टैरिफ लगाकर नहीं की। हालांकि ऐसी आशंकाएं प्रकट की जा रही थीं। बहरहाल, राहत लंबी टिकती नहीं दिखती क्योंकि नए राष्ट्रपति की नीतिगत विचार प्रक्रिया उनके पिछले कार्यकाल से अलग नहीं नजर आई। कई लोगों को उम्मीद थी कि ट्रंप टैरिफ की धमकी का इस्तेमाल करके कारोबारी साझेदारों को बातचीत की मेज पर लाएंगे ताकि अमेरिका के लिए बेहतर सौदेबाजी कर सकें। अमेरिका टैरिफ में इजाफा करेगा। यह इजाफा कितना होगा यह कई कारकों पर निर्भर होगा। अपने कार्यकाल के पहले दिन ट्रंप ने कहा कि वह 1 फरवरी से कनाडा और मेक्सिको से होने वाले आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाना चाहते हैं। अमेरिकी प्रशासन चाहता है कि अमेरिका-मेक्सिको और कनाडा के कारोबारी समझौते को लेकर नए सिरे से वार्ता की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वह चीन से होने वाले आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगाने पर विचार कर रहे हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ से होने वाले आयात पर भी शुल्क लगाने पर विचार किया जा रहा है।
बुनियादी दलील यह है कि दुनिया को अमेरिकी टैरिफ से फायदा हुआ है क्योंकि उसने अमेरिका में विनिर्माण और रोजगार को प्रभावित किया है। ऐसे में टैरिफ में इजाफा न केवल आयात को महंगा बनाएगा बल्कि उम्मीद है कि मांग को अमेरिका निर्मित उत्पादों की ओर स्थानांतरित किया जा सकेगा जिससे राजस्व में भी इजाफा होगा। ट्रंप की योजना बाह्य राजस्व सेवा तैयार करने की है ताकि उस भारी भरकम धनराशि का संग्रह किया जा सके जो टैरिफ के कारण आएगी। कई अर्थशास्त्री इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि यह विचार प्रक्रिया सही नहीं है। टैरिफ में उल्लेखनीय वृद्धि के कई प्रकार के परिणाम नजर आ सकते हैं। उदाहरण के लिए इससे अमेरिकी ग्राहकों के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे कुल मांग में कमी आ सकती है। इससे मुद्रास्फीति की दर भी बढ़ सकती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व पहले ही मुद्रास्फीति को मध्यम अवधि के दो फीसदी के दायरे में लाने के लिए संघर्ष कर रहा है। मुद्रास्फीति की दर या अनुमान में इजाफा फेड को दरें बढ़ाने पर विवश कर सकता है। यह भी संभव है कि कारोबारी साझेदार प्रतिक्रिया स्वरूप दरों में इजाफा करें। इससे अमेरिका का निर्यात प्रभावित होगा। यह स्थिति किसी के लिए बेहतर नहीं होगी।
टैरिफ में इजाफे और अन्य देशों के कदमों को देखते हुए कई तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं, हालांकि दीर्घावधि में इनमें से कुछ भी अमेरिका के लिए लाभदायक नहीं साबित होगा। यह पहला मौका नहीं है जब ट्रंप ने टैरिफ लगाने की धमकी दी है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने 2018 और 2019 में चीनी आयात पर उच्च शुल्क लगाया था। जो बाइडन प्रशासन ने इन टैरिफ को बरकरार रखते हुए कुछ नए शुल्क शामिल कर दिए थे। थिंक टैंक टैक्स फाउंडेशन के अनुसार ये टैरिफ दीर्घावधि में सकल घरेलू उत्पाद में 0.2 फीसदी की कमी कर सकते हैं और करीब 1.42 लाख पूर्णकालिक रोजगारों को नुकसान हो सकता है। मेक्सिको, कनाडा और चीन पर प्रस्तावित टैरिफ अधिक गहरा असर डालेगा।
भारत को इन हालात में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा। ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर ब्रिक्स के सदस्य डॉलर से दूरी बनाते हैं तो उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया जा सकता है। भारतीय नीति निर्माताओं को अमेरिका के नए प्रशासन को यह समझाना चाहिए कि भारत और चीन को एक साथ रखकर नहीं देखा जाना चाहिए। भारत को अपने रुख में भी समझदारी बरतनी होगी। खबरों के मुताबिक भारत कई विकल्पों पर विचार कर रहा है। इनमें शुल्क में कमी और अमेरिका से आयात बढ़ाना शामिल है। भारत शेष विश्व से विशुद्ध आयात करने वाला देश है और ईंधन समेत कुछ आयात को अमेरिका स्थानांतरित करना मुश्किल नहीं होगा। किसी तरह के एकतरफा कदम से बचने के लिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नए अमेरिकी प्रशासन के साथ संवाद में कोई कमी न हो।