प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
रेलवे से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसका शीर्षक है, ‘भारतीय रेल की बढ़ती माल भाड़े संबंधी आय और समर्पित मालवहन गलियारों का विकास।’ यह रिपोर्ट मंगलवार को संसद के समक्ष पेश की गई। इस रिपोर्ट में रेलवे की माल भाड़े से होने वाली आय में विविधता लाने को लेकर कुछ अहम सुझाव दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, यह सुझाव दिया गया है कि रेलवे को कोयला और लौह अयस्क की पारंपरिक ढुलाई पर निर्भरता से आगे बढ़कर भारत के तेजी से विस्तार कर रहे ई-कॉमर्स क्षेत्र से संबंधित आधुनिक माल ढुलाई की ओर ध्यान देना चाहिए।
रिपोर्ट में नए मालवहन कॉरिडोर बनाने की दलील दी गई है, जिनमें से कुछ को निजी फंडिंग से संचालित करने का सुझाव दिया गया है। इसमें रेलवे को माल ढुलाई से प्राप्त होने वाली आय पर भी विचार किया गया है, जो इसके संचालन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। मालवहन हर वर्ष रेलवे की आय में लगभग 65 से 70 फीसदी का योगदान करता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2023-24 में रेलवे को कुल 2.6 लाख करोड़ रुपये की आय में से लगभग 1.7 लाख करोड़ रुपये माल ढुलाई से प्राप्त हुए। वर्तमान प्रबंधन ने इस राजस्व स्रोत को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें तर्कसंगत शुल्क, रोलिंग स्टॉक में वृद्धि और ‘गति शक्ति’ अधोसंरचना कार्यक्रम के तहत टर्मिनल का निर्माण शामिल है।
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माल ढुलाई में हुई इस वृद्धि को सहारा देने वाली अतिरिक्त लोडिंग आंशिक रूप से उन स्थिर दरों के कारण है जो रेलवे ने प्रदान की हैं। हालांकि, इसने समिति का ध्यान आकर्षित किया और उसने इंगित किया कि दरों में अंतिम बड़ा संशोधन 2018 में हुआ था। सांसदों का तर्क है कि संगठन को दरों का वार्षिक आकलन करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे दरें राजमार्गों और अन्य परिवहन साधनों की तुलना में प्रतिस्पर्धी बनी रहें।
निस्संदेह, मालवहन परिवहन में रेलवे की हिस्सेदारी एक ऐसी समस्या है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है। उदारीकरण की शुरुआत में 1991 में, इसकी हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी थी, लेकिन हाल के वर्षों में यह घटकर 27-29 फीसदी के बीच रही। सरकार ने इसे 2030-31 तक बढ़ाकर 45 फीसदी करने की योजना बनाई है, जिसमें जलवायु परिवर्तन को लेकर प्रतिबद्धता भी शामिल है।
परंतु माल भाड़े पर ध्यान देने से समस्या का केवल एक ही हिस्सा हल होगा। भारतीय रेल की एक बुनियादी समस्या है यात्री किराये में दी जाने वाली रियायत की भरपाई माल भाड़े से करना। समिति ने इस मुद्दे को बेहद सावधानी से स्पर्श किया है। समिति का कहना है कि वातानुकूलित श्रेणियों की आय की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि उसे व्यय के अनुरूप बनाया जा सके।
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उसने यह भी सुझाव दिया है कि सामान्य श्रेणी की यात्रा से छेड़छाड़ नहीं की जाए। उसका यह भी कहना है कि लक्ष्य प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि टिकटों का किफायती दरों पर उपलब्ध होना हो। यह दिशा सही नहीं है। वास्तव में जरूरत यह है कि रेल यात्रा को सुलभ, आरामदेह और सुरक्षित बनाया जाए। भले ही इसके लिए सामान्य श्रेणी के किराये में कुछ इजाफा करना पड़े ताकि उन्हें उन्नत सुविधाओं के अनुरूप बनाया जा सके।
पुराने अंकेक्षकों की रिपोर्ट बताती हैं कि यात्री टिकटों पर 45 फीसदी की सब्सिडी दी जाती है। यही मूल समस्या है जिसे हल करना जरूरी है। रेलवे के पास समय कम है। आठवां वेतन आयोग वर्ष 2026 से संगठन के वेतन और पेंशन बिल को काफी बढ़ा सकता है। माल भाड़ा कितने समय तक यात्रियों और पेंशनभोगियों, दोनों का बोझ उठाएगा और साथ ही रेलवे को प्रतिस्पर्धी भी बनाए रखेगा? राजस्व यात्रियों से ही बढ़ाना होगा वरना रेलवे समस्याओं का सामना करता ही रहेगा।