संपादकीय

Editorial: फिसलन के संकेत: कुछ वर्गों के उधारकर्ताओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत

भारतीय रिजर्व बैंक को भी यह विचार करना चाहिए कि क्या व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी हालात को और बिगाड़ सकती है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 22, 2025 | 10:27 PM IST

निजी क्षेत्र के बैंकों के पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2025) के परिणाम दिखाते हैं कि तमाम बैंकों में स्लिपेज यानी फिसलन बढ़ी है। यहां स्लिपेज से तात्पर्य है ऋण लौटाने में चूक की संभावना बनना। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि कुछ बैंकों के अनुसार असुरक्षित ऋण और कृषि क्षेत्र से दबाव उत्पन्न हो रहा है। उदाहरण के लिए ऐक्सिस बैंक की बात करें तो नया स्लिपेज 70 फीसदी बढ़कर 8,200 करोड़ रुपये तक हो गया है। बहरहाल, समेकित स्तर पर सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (जीएनपीए) में 1.57 फीसदी का इजाफा हुआ। पिछली तिमाही में यह 1.28 फीसदी बढ़ा था। येस बैंक के मामले में सकल स्लिपेज बढ़कर ऋण के 2.4 फीसदी के बराबर हो गई जबकि इससे पिछली तिमाही में यह 2 फीसदी था। हालांकि साफ तस्वीर तभी उभरेगी जब उक्त तिमाही में सरकारी बैंकों समेत सभी बैंकों के परिणाम सामने आ चुके होंगे। अभी कुछ कहना जल्दबाजी है लेकिन समस्या के बढ़ने के पहले ऋण संबंधी कुछ क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा।

अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का असुरक्षित ऋण पिछले कई सालों से लगातार बढ़ रहा है और मार्च 2023 में वह कुल ऋण के 25.5 फीसदी तक पहुंच गया। इसकी प्रतिक्रिया में रिजर्व बैंक ने नवंबर 2024 में पूंजी प्रवाह को सीमित करने के लिए कड़े मानक जारी किए। बहरहाल, व्यवस्थागत स्तर पर इस बात को रेखांकित करना महत्त्वपूर्ण है कि कुछ बैंकों की स्लिपेज बढ़ने के बावजूद बैंकिंग व्यवस्था की कुल सेहत अच्छी है। कम से कम रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट तो यही दिखाती है कि अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जीएनपीए मार्च 2025 में 2.3 फीसदी था। यह मार्च 2017 के 9.6 फीसदी के मुकाबले काफी सुधार है। बहरहाल, दबाव के आरंभिक संकेतों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। मांग और आपूर्ति से जुड़ी एक वजह हो सकती है जिसके चलते असुरक्षित ऋण में इजाफा हो सकता है। यह देश के बैंकिंग कारोबार में बदलाव का संकेत भी हो सकता है।

भारत का कारोबारी जगत कई साल से अपनी देनदारियों को कम करने की प्रक्रिया में है। जैसा कि वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट दिखाती है गैर वित्तीय कारोबारी क्षेत्र का कर्ज-इक्विटी अनुपात 2020-21 से ही लगातार गिरावट पर है। चूंकि कारोबारी क्षेत्र कई वजहों से निवेश में तेज वृद्धि की जल्दबाजी में नहीं है इसलिए ऋण की मांग निकट भविष्य में शिथिल रह सकती है। इसके अलावा बेहतर बहीखाते के साथ कारोबारी क्षेत्र को पूंजी बाजार से राशि जुटाना अधिक उपयुक्त लग सकता है। गत वित्त वर्ष में पूंजी बाजार से धन राशि जुटाना 33 फीसदी अधिक बढ़ा और ऋण की हिस्सेदारी 63.5 फीसदी रही। ऐसे में ऋण बाजार मजबूत होने के साथ-साथ यह भी संभव है कि बेहतर रेटिंग वाली कंपनियां शायद पूंजी बाजार से धन जुटाना चाहें। पूंजी बाजार से बढ़ी प्रतिस्पर्धा बैंकिंग तंत्र के ब्याज मार्जिन पर दबाव डाल सकती है।

व्यवसाय की बात करें तो बेहतर रेटिंग वाली कंपनियों द्वारा वित्त की जरूरतों के लिए पूंजी बाजार का रुख करने से बैंकिंग प्रणाली को कम रेटिंग वाली कंपनियों, छोटे कारोबारों और व्यक्तिगत कर्जदारों को सेवा प्रदान करने की जरूरत पड़ सकती है। ऋण आधार में परिवर्तन से कर्जदारों के मूल्यांकन और निगरानी की लागत बढ़ सकती है और मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है। यद्यपि इस स्तर पर स्लिपेज चिंता की बात नहीं है फिर भी यह परीक्षण करना उचित है कि कुछ क्षेत्रों में इसमें इजाफा क्यों हो रहा है। बताया गया है कि भारत में परिवारों का ऋण समकक्ष देशों की तुलना में कम होने के बावजूद बढ़ रहा है। यह बैंकिंग प्रणाली और भविष्य की आर्थिक वृद्धि दोनों के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है। रिजर्व बैंक को भी यह विचार करना चाहिए कि क्या व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी हालात को और बिगाड़ सकती है।

First Published : July 22, 2025 | 10:10 PM IST