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Editorial: सैटकॉम नीति की जरूरत

नया सैटेलाइट युग भारतीय जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा सहित कई क्षेत्रों में फायदे दे सकता है। इससे कारोबारों और संगठनों के लिए भी नए अवसर सामने आ सकते हैं।

Last Updated- March 16, 2025 | 9:56 PM IST
FILE PHOTO: FILE PHOTO: Illustration shows SpaceX logo and Elon Musk photo

देश की दो शीर्ष दूरसंचार कंपनियों रिलायंस जियो और भारती एयरटेल ने चौंकाने वाली घोषणाओं में कहा कि उन्होंने अमेरिकी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कंपनी स्पेसएक्स से समझौता किया है। स्पेसएक्स में उसके सह-संस्थापक ईलॉन मस्क के पास बहुलांश हिस्सेदारी है। इन साझेदारियों के बाद स्पेसएक्स के पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी कंपनी स्टारलिंक भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा शुरू कर देगी। स्टारलिंक पहले ही 120 देशों में सेवाएं दे रही है और उम्मीद है कि वह अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता के साथ तेज गति और कम रुकावट वाली इंटरनेट सेवा लाएगी। सुनील भारती मित्तल के भारती समूह की वनवेब और मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो भी भारत में अपनी-अपनी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा लाने को तैयार हैं।

उद्योग तो तैयार है मगर स्पष्ट नीति के बगैर सैटेलाइट दूरसंचार सेवा भारत में रफ्तार नहीं पकड़ सकती। चूंकि सैटेलाइट दूरंसचार सेवा दूरदराज के क्षेत्रों और ब्रॉडबैंड से महरूम ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की सेवा पहुंचाकर तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है, इसलिए सरकार और नियामक यानी भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकार (ट्राई) को भी जल्द से जल्द इस सेवा के नियम और दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देना चाहिए। सरकार की नीति है कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा कंपनियों को नीलामी के जरिये स्पेक्ट्रम नहीं दिया जाएगा। जमीनी ब्रॉडबैंड सेवाओं के उलट सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए तरंगें सरकार द्वारा आवंटित की जाएंगी, जिस पर अभी तक विवाद रहा है। सैटेलाइट संचार के लिए दुनिया भर में स्पेक्ट्रम ऐसे ही दिया जाता है। परंतु कई बड़ी समस्याएं हल करनी हैं। मसलन ट्राई को स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण का फॉर्मूला अभी तय करना है। यह भी नहीं पता कि कंपनियों को स्पेक्ट्रम कब मिलेगा और लाइसेंस कितने समय के लिए होगा। खबरों के मुताबिक ट्राई स्टारलिंक को पांच साल का लाइसेंस देना चाहता है मगर कुछ कंपनियों को ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशंस या जीएमपीसीएस के जरिये पहले ही 20 साल का लाइसेंस मिल चुका है। जीएमपीसीएस के लिए लाइसेंस की व्यवस्था पहले ही तय है, इसलिए स्टारलिंक के लिए अलग व्यवस्था बनाना सही नहीं होगा। सरकार को लाइसेंसिंग अवधि पर अस्पष्टता भी दूर करनी चाहिए।

स्टारलिंक को सरकारी मंजूरी खासकर सुरक्षा संबंधी मंजूरी पर भी ध्यान देना होगा। भारत में काम करने का स्टारलिंक का आवेदन काफी समय अटका रहा। स्टारलिंक के लिए सुरक्षा संबंधी शर्तों पर भी काम हो रहा है। इन शर्तों में स्थानीय नियंत्रण केंद्र और भारत में डेटा रखने जैसी शर्तें अनिवार्य हैं। एक प्रस्ताव यह भी है कि स्टारलिंक को पहले ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में भेजा जाए तथा शहरी उपभोक्ताओं से दूर रखा जाए। जिन शर्तों का राष्ट्रीय सुरक्षा से कुछ लेना देना नहीं है, वे नीति निर्माण में और सेवाओं की शुरुआत में देर करा सकती हैं। एक बार व्यापक नीति तैयार हो गई और कंपनियों ने सेवाएं शुरू कर दीं तो भारत में सैटेलाइट संचार गति पकड़ सकता है। 2012 में भारत ने थुराया और इरीडियम सैटेलाइट फोन एवं उपकरणों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि 2008 में मुंबई आतंकी हमला करने वालों के द्वारा कथित रूप से सैटेलाइट फोन इस्तेमाल किए जाने के बाद इस पर आक्रोश बढ़ा था। मगर समुद्री संचार में सुरक्षा, खोज और बचाव अभियानों के लिए इन उपकरणों का इस्तेमाल करने की इजाजत आगे चलकर दे दी गई।

नया सैटेलाइट युग भारतीय जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा सहित कई क्षेत्रों में फायदे दे सकता है। इससे कारोबारों और संगठनों के लिए भी नए अवसर सामने आ सकते हैं। सरकार को सक्रियता दिखानी चाहिए और सैटेलाइट संचार को हकीकत बनाना चाहिए। इससे देश में डिजिटल खाई पाटने में मदद मिलेगी।

First Published - March 16, 2025 | 9:56 PM IST

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