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Editorial: रूस-अमेरिका वार्ता और यूरोप

ट्रंप ने सुझाव दिया है कि अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों में से 50 फीसदी दिया जाए। उसकी यह मांग अरबों डॉलर के हथियारों तथा अन्य मदद के बदले में है।

Last Updated- February 19, 2025 | 10:24 PM IST
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यह अपेक्षित ही था कि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की ओर हाथ बढ़ाएंगे और यूरोप, खासकर उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को लेकर उनका रुख नकारात्मक रहेगा। परंतु ट्रंप ने जितनी तेजी से यूक्रेन पर रूसी हमले (24 फरवरी, 2022 को शुरू) की पटकथा बदली है उसने सभी को ऐसी स्थिति में डाल दिया है कि वे प्रतिक्रिया ही नहीं दे पा रहे हैं। यह अब तक इस बात का सबसे मजबूत संकेत है कि अमेरिकी राष्ट्रपति यूरोप, नाटो और रूस के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से संतुलित करना चाहते हैं। इसके साथ ही 75 साल पुराने आधार का अंत हो जाएगा।

सऊदी अरब में ट्रंप और पुतिन प्रशासन के बीच यूक्रेन के विरुद्ध जंग समाप्त करने को लेकर होने वाली चर्चा से यूक्रेन के प्रतिनिधिमंडल को बाहर रखना इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका अपनी रीति-नीति बदल रहा है। ट्रंप ने युद्ध के लिए यूक्रेन की भी आलोचना की है। उन्होंने यह सुझाव दिया कि पुतिन की आक्रामकता को एक समझौते से रोका जा सकता था। चूंकि इस समझौते का व्यापक स्वर यूक्रेन के हित में नहीं नजर आता इसलिए शांति योजना भी सभी पक्षों को स्वीकार्य नहीं होगी।

ट्रंप के समझौते की मुख्य बात यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता वापस लेने की छिपी हुई धमकियों पर केंद्रित नजर आती है ताकि उसे इस बात के लिए राजी किया जा सके कि वह रूस को उससे जीता गया क्षेत्र सौंपने पर राजी हो जाए और नॉटो में शामिल होने से बचे। यूरोपीय संघ में उसकी सदस्यता भी अभी अधर में है। एक अन्य रणनीति यूक्रेन के अहम खनिज भंडारों तक पहुंच बनाने की है। अभी अमेरिका को इन्हें चीन से आयात करना होता है। ट्रंप ने सुझाव दिया है कि अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों में से 50 फीसदी दिया जाए। उसकी यह मांग अरबों डॉलर के हथियारों तथा अन्य मदद के बदले में है। यहां दिक्कत यह है कि इन भंडारों में से करीब 40 फीसदी पूर्वी क्षेत्र में रूस के कब्जे में हैं। पुतिन अमेरिका को ये भंडार दे सकते हैं, बशर्ते कि वह यह प्रतिबद्धता जताए कि यूक्रेन की सीमाओं को 2014 के पहले के स्तर पर बहाल नहीं किया जाएगा। यानी क्राइमिया, डॉनबास और लुहांस्क उसका हिस्सा बने रहेंगे। साथ ही यह भी कि यूक्रेन नॉटो का हिस्सा नहीं बनेगा।

रियाद में हो रही वार्ता के बीच ही यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादीमिर जेलेंस्की ने सऊदी अरब की राजधानी की यात्रा स्थगित कर दी है। उधर यूरोप अपने प्लान बी को सामने रखने में संघर्ष कर रहा है। फ्रांस का यूरोपीय साझेदारों के साथ एक और बैठक करने का इरादा है। इसमें नॉटो के सहयोगी कनाडा को शामिल करने की योजना है और 17 फरवरी को पहली बैठक में यूरोप के देश शामिल नहीं हुए। परंतु हकीकत यह है कि अमेरिका को बाहर रखकर यूक्रेन पर कोई भी एजेंडा कारगर नहीं होगा।

अमेरिकी सैन्य अनुदान की बात करें तो दिसंबर 2024 की स्थिति में वह 69 अरब डॉलर के साथ नौ अन्य प्रमुख दानदाताओं के संयुक्त योगदान से 13 अरब डॉलर अधिक है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री की पेशकश के मुताबिक अगर नाटो यूक्रेन में अपने सैनिक भेजने जैसा बड़ा कदम उठाता है तो अमेरिका के बिना उसके पास 15 लाख सैनिक होंगे जो रूस के बराबर हैं। अमेरिका कुल नाटो बजट का दो तिहाई हिस्से का योगदान करता है। परंतु एक सीमा का उल्लंघन हो गया है। ट्रंप और पुतिन की साझेदारी एक पक्षपात का संकेत देती है जिसके तहत संप्रभु क्षेत्रीय उल्लंघनों को लेकर मौन सहनशीलता का माहौल है। पोलैंड, बाल्टिक और स्कैंडिवेनिया के कई देशों ने रूस के खतरे से निपटने के लिए नाटो से नाता जोड़ा है। इस बीच यूरेशिया के देश यूरोप की ओर देख रहे हैं। इस बीच अटलांटिक पार सुरक्षा ढांचा दूसरे विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े खतरे का सामना कर रहा है।

First Published - February 19, 2025 | 10:24 PM IST

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