प्रतीकात्मक तस्वीर
क्विक कॉमर्स कंपनियों का कारोबार तेजी से बढ़ा है और इसके साथ ही वे सरकार की निगरानी में आ गई हैं। क्विक कॉमर्स एक विशिष्ट कारोबारी मॉडल है जिसमें बहुत अधिक संभावनाएं हैं। यह न केवल मूल्यांकन की दृष्टि से बेहतर है बल्कि यह वैश्विक स्टार्टअप जगत में भी अपने लिए जगह बनाने में सक्षम है। जो कंपनियां किराने से लेकर पका-पकाया भोजन और निजी इस्तेमाल की सामग्री तक उपभोक्ताओं को 10 मिनट के भीतर या इसके आसपास के समय में पहुंचा रही हैं उनसे प्रशासन उनके कारोबारी मॉडल को लेकर सवाल कर रहा है। इसके बाद कारोबारियों की शिकायत का नंबर आता है जिनका प्रतिनिधित्व कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) कर रहा है।
सीएआईटी की दलील है कि क्विक कॉमर्स कंपनियों ने ई-कॉमर्स के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मानकों का उल्लंघन किया है। सीएआईटी ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के समक्ष जो शिकायतें की हैं उनमें प्रमुख है ई-कॉमर्स के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियम पुस्तिका के उल्लंघन में इन्वेंटरी रखने के लिए डार्क स्टोर का इस्तेमाल। इस मुद्दे के मूल में है किराना दुकानों का एक भारी भरकम नेटवर्क और उन पर पड़ने वाला क्विक कॉमर्स का संभावित नकारात्मक असर।
सरकार के लिए संतुलन कायम करना जरूरी है लेकिन ऐसा उन कारोबारों की वृद्धि को प्रभावित करते हुए नहीं होना चाहिए जिन्होंने कामयाबी प्रदर्शित की है। उल्लेखनीय है कि यह पहला मौका नहीं है जब किराना दुकानों का एंगल सामने आया और सरकार को ऐसे कदम उठाने पड़े जो वास्तव में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए बहु-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को वर्षों से इस वजह से हतोत्साहित किया गया क्योंकि इससे किराना दुकानों पर बुरा असर होगा। पारंपरिक ई-कॉमर्स कंपनियों को भी प्रत्यक्ष विदेशी नियमों के उल्लंघन के कारण मची उथलपुथल का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ भी स्थानीय कारोबारियों के विरोध प्रदर्शन के बाद जांच शुरू की गई थी।
यह राजनीति में एक अहम मुद्दा है क्योंकि कारोबारियों और खुदरा कारोबारियों को राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आंकड़ों की बात करें तो देश में करीब 1.3 करोड़ किराना स्टोर हैं और उनमें से अधिकांश छोटे शहरों में स्थित हैं। अनुमानों के मुताबिक अकेले पिछले एक वर्ष में करीब दो लाख किराना दुकानें बंद हो गईं। इससे यह आशंका उत्पन्न हुई कि शायद यह क्विक कॉमर्स की वजह से हो रहा है। दोनों के बीच रिश्तों की स्थापना का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, खासतौर पर इसलिए कि अधिकांश किराना दुकानें छोटे शहरों में हैं जहां क्विक कॉमर्स अभी तक पकड़ नहीं बना सका है। सरकार किराना दुकानों को तकनीकी रूप से उन्नत करने का प्रयास कर सकती है ताकि वे गतिशील हो सकें। आगे की राह रचनात्मक होनी चाहिए। साझेदारियों और सहयोगों की मदद से इस दिशा में बढ़ा जा सकता है। किराना दुकानों को क्विक कॉमर्स की वजह से मिले अवसर का लाभ उठाते हुए तेज विकास करना चाहिए। क्विक कॉमर्स कंपनियों को भी गुणवत्तापूर्ण रोजगार तैयार करने चाहिए।
व्यापक स्तर पर देखें तो सरकार के लिए समय आ गया है कि वह बहु प्रतीक्षित ई-कॉमर्स नीति को तैयार करे। नई तकनीक और क्विक कॉमर्स जैसे नवाचार के बीच एक स्पष्ट और व्यापक नीति कई छोटी-मोटी दिक्कतों को दूर कर देगी ताकि भविष्य को ध्यान में रखकर कारोबार और मूल्य श्रृंखला तैयार की जा सके। नीति को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम पर प्रतिस्पर्धा को रोकना नहीं चाहिए। तकनीक को अपनाना और उपभोक्ताओं का बदलता व्यवहार कई कारोबारी मॉडलों को बदल सकता है। नीति को अग्रगामी सोच वाला होना चाहिए।
भारत को टिकाऊ आर्थिक वृद्धि के लिए भारी भरकम निवेश की आवश्यकता है और खुदरा क्षेत्र इसमें मददगार हो सकता है। खुदरा क्षेत्र को औपचारिक बनाने से न केवल रोजगार तैयार होंगे बल्कि किफायत बढ़ने से उपभोक्ताओं को भी कम कीमत चुकानी होगी। विदेशी निवेश वाली कंपनियों के लिए प्रतिबंधात्मक नीतियां प्रतिस्पर्धा, नवाचार और उपभोक्ता कल्याण को प्रभावित करेंगी।