लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच तीसरी बार गठबंधन हुआ है लेकिन लगता नहीं कि इससे बिहार की तकदीर में कोई बदलाव आएगा। एक बार फिर भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ समझौता करके उन्होंने नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके राजग और लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच निष्ठा बदलने की इस प्रक्रिया में शासन बहुत पहले ही पीछे छूट चुका था।
राज्य के राजनीतिक मामलों की बात करें तो नीतीश के जनता दल (यूनाइटेड) के पास राज्य विधानसभा में 45 सीट हैं। परंतु 243 विधानसभा सीट वाले प्रदेश में 78 सीट वाली भाजपा और 79 सीट वाले राजग के बीच वह एक प्रभावशाली स्थिति रखता है।
बिहार में 2025 तक विधानसभा चुनाव नहीं होने हैं लेकिन नीतीश के दोबारा राजग में जाने में सबसे अहम बात यह है कि यह कांग्रेसनीत इंडियन नैशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) की चुनावी संभावनाओं के लिए बड़ा झटका है। नीतीश को इस गठबंधन के प्रमुख शिल्पकारों में शामिल माना जा रहा था। अब उनके गठबंधन से अलग होने और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा दो ऐसे झटके हैं जिनसे निपटने में ‘इंडिया’ को काफी संघर्ष करना होगा।
रोचक बात यह है कि नीतीश और ममता दोनों ने यह शिकायत की थी कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के पूर्वी से पश्चिमी हिस्से की ओर भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करने के पहले उनसे मशविरा नहीं किया और उनके राज्यों से यात्रा निकलने देने के लिए अनुमति नहीं मांगी। विचार यह था कि यात्रा को ‘इंडिया’ गठबंधन के बैनर तले आयोजित किया जाना चाहिए था। परंतु अंदर की बात यह है कि दोनों ही राजनेता आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीतने लायक साझेदार नहीं मानते।
खासतौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में पार्टी की भारी पराजय के बाद। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को बिहार में एक और पश्चिम बंगाल में दो सीट पर जीत मिली थी। जनता दल (यूनाइटेड) और तृणमूल कांग्रेस के ‘इंडिया’ से बाहर होने के बाद कांग्रेस को गठबंधन के अन्य दलों के साथ मोलतोल करने में दिक्कत होगी।
गठजोड़ के पीछे यह सिद्धांत है कि किसी भी राज्य में सर्वाधिक सीट वाला साझेदार सीट की साझेदारी पर निर्णय लेगा। परंतु ऐसे आरोप सामने आए हैं कि कांग्रेस कुछ राज्यों में साझेदारों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए केरल और पंजाब में जहां कांग्रेस सत्ताधारी वाम मोर्चे और आम आदमी पार्टी के सामने मुख्य विपक्षी दल है और भाजपा की उपस्थिति नाम मात्र की है वहां सीट साझेदारी को लेकर अनिश्चितता का माहौल है।
पंजाब में मुख्यमंत्री ने कहा है कि आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी जबकि पार्टी का आला कमान कह चुका है कि कांग्रेस के साथ बुनियादी समझ बन चुकी है। उत्तर प्रदेश में बातचीत पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा जहां लोक सभा की सबसे अधिक सीट हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कह चुके हैं कांग्रेस के साथ बातचीत कुछ आगे बढ़ी है।
नीतीश के निष्ठा बदलने से सबसे अधिक फायदा भाजपा को होगा। पार्टी ने कोइरी और भूमिहार जातियों के दो नेताओं को उपमुख्यमंत्री बनाकर जातीय समावेशन को लेकर अपना दावा मजबूत किया है जो ‘इंडिया’ गठबंधन के मुख्य मुद्दे को कमजोर करेगा। बिहार जाति जनगणना कराने वाला पहला प्रदेश था और यह पहल ‘इंडिया’ के लिए फायदेमंद है।
दूसरा, भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) ने 2019 में 40 लोक सभा सीट में से 33 पर जीत हासिल की थी। लोक जनशक्ति पार्टी की छह सीट को मिला दिया जाए तो उसे 39 सीट मिली थीं। अगर यह प्रदर्शन दोहराया जाता है तो सत्ताधारी गठबंधन हिंदी क्षेत्र में अपना नियंत्रण बनाए रखेगा।