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निवेशकों की जागरूकता जरूरी: अनंत नारायण

नारायण ने कहा कि भारत के पूंजी बाजार में किसी भी तरीके से काम कर रहे लोगों से मैं अनुरोध करूंगा कि अधिक सेअधिक लोग किसी स्तर पर नीति निर्माण में आएं।

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- October 31, 2025 | 11:14 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में अपने 3 साल के कार्यकाल को अनंत नारायण जी एक विशेष अवसर के रूप देख रहे हैं, जिससे उन्हें व्यापक क्षितिज पर काम करने का अवसर मिला। खुशबू तिवारी से बातचीत के प्रमुख अंश…

सेबी में काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?

व्यापक क्षितिज पर काम करने का अवसर एक विशेषाधिकार था। भारत के पूंजी बाजार में किसी भी तरीके से काम कर रहे लोगों से मैं अनुरोध करूंगा कि अधिक सेअधिक लोग किसी स्तर पर नीति निर्माण में आएं। नीति निर्माण में अनुभव के इस्तेमाल के लिए हमें इस क्षेत्र में ज्यादा प्रैक्टिशनर की जरूरत है, भले ही अस्थायी रूप से शामिल हों।

निजी क्षेत्र की आवाज क्यों जरूरी है?

प्रैक्टिशनरों और अच्छी समझ वाले लोगों का एक स्वस्थ मिश्रण ज़रूरी है। फीडबैक के प्रभावी मूल्यांकन करने और टाइप-1 और टाइप-2 दोनों तरह की त्रुटियों को कम करने के लिए ऐसी विविधता की जरूरत है। बेशक, जब मेरे जैसे प्रैक्टिशनर्स नियामक के रूप में शामिल होते हैं, तो हितों के टकराव के बारे में सवाल अपरिहार्य हैं, और वाजिब भी। सेबी ने डिस्क्लोजर फ्रेमवर्क को परिभाषित करने, रेक्यूजल के नियमों को रेखांकित करने और पूर्णकालित सदस्यों, चेयरमैन व कर्मचारियों की आचार संहिता बनाने के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है।

नियामकों को टाइप-1 और टाइप-2 त्रुटियों के प्रबंधन के लिए क्या करना होता है?

टाइप-1 त्रुटियां तब होती हैं जब सिस्टम बुरी चीजों को होने देता है, जैसा कि हर्षद मेहता या कार्वी घोटाले के मामलों में हुआ। इससे नियामकों की प्रतिष्ठा को नुकसान होता है। स्वाभाविक रूप से, नियामकों को टाइप-1 त्रुटियों का डर होता है। हम उन्हें रोकने के उत्साह में अत्यधिक नियम कानून बनाकर और बाजार प्रतिभागियों के लिए मुश्किलें खड़ी करके टाइप-2 त्रुटियां करने का जोखिम उठाते हैं। इससे वैध पूंजी निर्माण बाधित होता है।

डेरिवेटिव की सख्ती की जरूरत क्यों थी और भविष्य की क्या राह है?

हमारे विश्लेषण से पता चला कि खुदरा निवेशकों को जितना उचित माना जा सकता है, उससे ज्यादा नुकसान हो रहा है। वित्त वर्ष 2025 में 1 करोड़ ज्यादा यूनीक व्यक्तियों ने डेरिवेटिव में कारोबार किया, जिनमें से ज्यादातर एक्सपायरी की तारीख में इंडेक्स ऑप्शंस थे, और औसतन प्रत्येक को लगभग 1 लाख रुपये का नुकसान हुआ। कुल मिलाकर खुदरा निवेशकों को उस वर्ष लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कल्पना कीजिए कि यह पूंजी ज्यादा मुनाफा कमाने की कवायद के बजाय उत्पादक निवेश में गई होती। इसके अलावा डेरिवेटिव में नोशनल वॉल्यूम कई बार कैश मार्केट की तुलना में अधिक होती है। फिर भी डेरिवेटिव पूंजी निर्माण के लिए ज़रूरी बने हुए हैं।

प्राइमरी मार्केट की तेजी पर आपका क्या विचार है?

मैं मूल्यांकन विशेषज्ञ होने का दावा नहीं करता, लेकिन डेटा एक महत्त्वपूर्ण कहानी बता रहा है। वित्त वर्ष 25 में केवल म्युचुअल फंड ने प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट में 6.1 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध इक्विटी मांग पैदा की है। म्युचुअल फंड, बीमा, पेंशन फंड और व्यक्तिगत स्तर में कुल मांग 8.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जबकि आईपीओ, एफपीओ, राइट्स इश्यू और क्यूआईपी के माध्यम से शुद्ध आपूर्ति 4.6 लाख करोड़ रुपये रही। यह बड़ा अंतर है।

First Published : October 31, 2025 | 10:44 PM IST