संपादकीय

Editorial: GST प्रणाली में सुधार की जरूरत, मुआवजा उपकर के विलय पर हो विचार

हालांकि हालात इतने भी आसान नहीं रहने वाले हैं और मंत्री परिषद जिसे 31 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट पेश करनी है उसे कई संभावित परिणामों पर ध्यान देना होगा।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 20, 2024 | 9:41 PM IST

कोविड-19 महामारी की वजह से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में देरी हुई। अप्रत्यक्ष कर सुधार 2017 में लागू किया गया था और उस समय यह वादा किया गया था कि राज्य सरकारों को पहले पांच साल के दौरान होने वाली राजस्व हानि के लिए क्षतिपूर्ति प्रदान की जाएगी। राज्यों को मुआवजा देने के वास्ते फंड जुटाने के लिए जीएसटी की उच्चतम दरों वाले स्तर पर एक मुआवजा उपकर लगाया गया। सामान्य परिस्थितियों में मुआवजा उपकर 2022 में समाप्त हो जाना था।

बहरहाल महामारी के दौरान कर संग्रह पर बुरा असर हुआ और यह निर्णय लिया गया कि राज्यों के राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए उधारी ली जाएगी और उपकर संग्रह की अवधि बढ़ाई जाएगी ताकि इसके लिए जुटाए गए कर्ज तथा उसके ब्याज को चुकता किया जा सके।

ऐसे में महामारी के दौरान लिए गए 2.7 लाख करोड़ रुपये की राशि को चुकता करने के लिए उपकर लिया जा रहा है। अनुमान के मुताबिक जनवरी 2026 तक इसे चुकाने का काम पूरा हो जाएगा। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि भविष्य की दिशा तय की जाए और समय पर जरूरी कानूनी बदलाव पूरे कर लिए जाएं।

मंत्रियों का एक समूह बनाया गया ताकि वह भविष्य की राह सुझा सके। जैसा कि इस समाचार पत्र ने गत सप्ताह लिखा, राज्य सरकारों ने मुआवजा उपकर को जीएसटी दर में समाहित करने का सुझाव रखा है। राजस्व वाले नजरिये से देखा जाए तो उपकर को उच्चतम जीएसटी दर में समाहित करने से राजस्व संग्रह और करदाताओं पर बोझ दोनों बरकरार रहेंगे। फिलहाल उपकर के रूप में संग्रहीत राजस्व का इस्तेमाल कर्ज को चुकाने के लिए किया जा रहा है। विलय के बाद इसे सामान्य जीएसटी संग्रह के रूप में केंद्र और राज्यों के बीच बांटा जा सकता है। उपकर से हासिल होने वाला संग्रह 2023-24 में 1,44,554 करोड़ रुपये था।

हालांकि हालात इतने भी आसान नहीं रहने वाले हैं और मंत्री परिषद जिसे 31 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट पेश करनी है उसे कई संभावित परिणामों पर ध्यान देना होगा। उदाहरण के लिए उपकर सीमित समय के लिए लगाया गया था और फिर असाधारण परिस्थितियों में उसमें इजाफा किया गया। ऐसे में क्या उसे स्थायी रूप से कुछ चीजों पर लगने वाली उच्च कर दर में मिला देना उचित होगा? इतना ही नहीं विभिन्न वस्तुओं पर उपकर का स्तर भी अलग है।

उपकर को आधार दर में शामिल करने से जीएसटी प्रणाली में स्लैब बढ़ सकते हैं। अब यह स्वीकार्य है कि दरों की बहुलता से कारोबार और कर अधिकारियों दोनों के लिए जटिलता उत्पन्न होती है और स्लैब की तादाद कम करने की आवश्यकता है।

एक अन्य मंत्री परिषद दरों को युक्तिसंगत बनाने पर विचार कर रही है। गत सप्ताह बैठक में इस मंत्री परिषद ने यह अनुशंसा की थी कि पैकेटबंद पानी, साइकिल, कलाई घड़ी और जूतों जैसी वस्तुओं पर जीएसटी कर दर में बदलाव किया जाए। मंत्री परिषद को मार्जिन में छेड़छाड़ से आगे बढ़कर ढांचागत बदलाव के तरीकों पर विचार करना चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण होगा कि मंत्री परिषद समन्वय करें और अपनी अनुशंसाओं को जीएसटी परिषद के निर्णयों के साथ सुसंगत बनाएं।

परिषद का लक्ष्य यह होना चाहिए कि स्लैब को अधिक से अधिक तीन तक सीमित किया जाए। कुछ जरूरी वस्तुओं के लिए कम कर दर और विलासिता वाली या नुकसानदेह वस्तुओं के लिए अधिक दर होनी चाहिए। अन्य सभी वस्तुओं को बीच की एक दर में शामिल किया जा सकता है जिसमें अपवाद की गुंजाइश सीमित हो।

उपकर को भी उच्चतम दर में शामिल किया जाए लेकिन केवल सीमित वस्तुओं पर। कुल मिलाकर जीएसटी ढांचे को राजस्व निरपेक्ष स्तर पर ले जाने का प्रयास होना चाहिए। वर्ष 2023-24 में उपकर सहित कुल संग्रह सकल घरेलू उत्पाद के लगभग उतने ही हिस्से के बराबर था जितना जीएसटी के पहले जुटाया जाता था। बिना उपकर के संग्रह में कमी आएगी। ऐसे में जरूरत यह है कि जीएसटी प्रणाली में सुधार किया जाए और उसे सहज बनाकर राजस्व संग्रह बढ़ाने की दिशा में बढ़ा जाए।

First Published : October 20, 2024 | 9:41 PM IST