संपादकीय

Editorial: भ्रामक युद्ध विराम

पुतिन ने इसके लिए शर्तें रखीं, जिससे संकेत मिलता है कि रूस स्थायी शांति समझौते के लिए गंभीर नहीं है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- March 19, 2025 | 10:29 PM IST

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने यूक्रेन के ऊर्जा ठिकानों पर हमला 30 दिन के लिए टाल दिया है, जिसकी सराहना होनी चाहिए क्योंकि तीन साल से जारी युद्ध को समाप्त करने की दिशा में यह पहला कदम है। मगर यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों खास तौर पर बाल्टिक क्षेत्र और पूर्वी यूरोप के देशों ने इसे ध्यान भटकाने वाली हरकत कहा है। पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से कहा कि यदि यूक्रेन हमले रोक दे तो वह भी हमले बंद कर देंगे। मगर कुछ ही घंटों बाद पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के स्लोव्यांस्क शहर में ऊर्जा ढांचे पर बड़ा हवाई हमला कर दिया। इसकी वजह से 1 लाख लोग बिना बिजली के रह गए। ध्यान देने की बात है कि वॉशिंगटन डीसी के साथ 90 मिनट की बातचीत में पुतिन 30 दिन के बिना शर्त युद्धविराम पर राजी नहीं हुए, जबकि यूक्रेन पिछले हफ्ते ही इसके लिए तैयार हो चुका था। पुतिन ने इसके लिए शर्तें रखीं, जिससे संकेत मिलता है कि रूस स्थायी शांति समझौते के लिए गंभीर नहीं है।

रूस ने यूक्रेन को विदेशी सैन्य सहायता तथा खुफिया सूचनाएं मुहैया कराने पर पूरी तरह रोक की प्रमुख शर्त रखी है। इसमें अमेरिकी सैन्य सहायता के साथ यूरोपीय सहयोगियों से मिलने वाली सहायता पर भी रोक शामिल है। इसका मतलब है कि युद्ध के बाद यूक्रेन को लंबे अरसे तक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं दी जाएगी। जाहिर है कि ये शर्तें न तो यूक्रेन मानेगा और न ही यूरोप। फरवरी 2022 में रूसी हमले के बाद से बड़ी संख्या में यूक्रेनी नागरिक और जवान जान गंवा चुके हैं। बिजली और गैस उत्पादन की उसकी आधी आधी से ज्यादा क्षमता भी खत्म हो चुकी है। पुतिन की शर्तों में जैपोरिजिया परमाणु संयंत्र पर रूसी कब्जे के बारे में भी कोई जवाब नहीं दिया गया है। समझ नहीं आता कि इतना कुछ गंवा चुके यूक्रेन को इस सीमित समझौते से क्या मिलेगा। इसके उलट रूसी इलाकों में मौजूद रिफाइनरियों पर यूक्रेन ड्रोन हमले रोकता है तो रूस को बहुत फायदा होगा। खबर है कि ट्रंप और पुतिन काले सागर में समुद्री संघर्ष रोकने पर भी राजी हो गए हैं। इससे भी रूस को ही ज्यादा फायदा होगा, जिसके जहाजों के बेड़े को यूक्रेन के ड्रोन क्रीमिया से खदेड़कर पूर्वी काले सागर में भगा चुके हैं।

आश्चर्य नहीं कि ट्रंप और पुतिन के समझौते को यूरोप ने तवज्जो नहीं दी है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शुल्ज ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वे यूक्रेन की सेना को ‘प्रतिरोध की इस जंग’ में मदद करते रहेंगे। मोर्चे के करीब के देशों को भी पुतिन पर यकीन नहीं है। 18 मार्च की शाम को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्यों पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया ने रूस से खतरे की बात कहकर 1997 के ओटावा समझौते से निकलने की योजना बताई। यह संधि ‘एंटी पर्सनल बारूदी सुरंगों’ पर रोक लगाने की बात करती है। नाटो के तहत इन देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3 फीसदी रक्षा पर खर्च करना होता है मगर हैरत नहीं है कि ये सब उससे बहुत अधिक खर्च करते हैं।

अजीब बात है कि रूस ने शांति वार्ता के लिए अमेरिका के साथ द्विपक्षीय बातचीत पर जोर दिया है, जिससे यूक्रेन बातचीत से बाहर रहेगा। विश्लेषकों को लगता है कि पुतिन संपूर्ण युद्ध विराम के ट्रंप के प्रयासों न कहे बगैर ही नकारने का तरीका तलाश रहे हैं। पुतिन चाहते हैं कि अमेरिका यूरोप से अलग हो जाए और खतरा यह है कि अमेरिका इस चाल में फंस सकता है। ट्रंप का रुख पुतिन के समर्थन में रहा है और पिछले महीने व्हाइट हाउस में उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमिर जेलेंस्की को जिस तरह निशाना बनाया उसे देखते हुए यह असंभव नहीं है। उदार और नियम आधारित व्यवस्था की संभावना पहले कभी इतनी निराश करती नहीं दिखी।

First Published : March 19, 2025 | 10:14 PM IST