संपादकीय

संपादकीय: मुंबई में बिलबोर्ड हादसा…लापरवाही का नमूना

Mumbai Hoarding Collapse: बिलबोर्ड अप्रैल 2022 से लगा हुआ था। कम से कम यह पूरा सिलसिला बीएमसी की कार्यक्षमता पर भी तो सवाल पैदा करता है।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 15, 2024 | 10:53 PM IST

Mumbai Hoarding Collapse: मुंबई में एक बिलबोर्ड (Billboard) के गिरने से 14 लोगों की मौत और 75 लोगों के दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले से यह बात एक बार फिर उजागर हो गई है कि देश के शहरों के नगर निकाय अधिकारियों में किस कदर लापरवाही घर कर चुकी है। जैसा कि जांच में सामने आ रहा है इस प्रकरण में भी ऐसा ही हुआ है।

तथाकथित उद्यमी जिसे भारतीय रेल तथा वृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) दोनों से होर्डिंग और बैनर लगाने का अनुबंध मिला है, उसे नियमों के उल्लंघन के लिए जाना जाता है। यहां तक कि उस पर होर्डिंग लगाने के लिए पेड़ों को काटने तक के इल्जाम हैं। वह राजनीति में आने का आकांक्षी है और उस पर बलात्कार का भी आरोप है।

घाटकोपर (Ghatkopar) में एक पेट्रोल पंप पर होर्डिंग गिरने की घटना उसके काम करने के तरीके का एक नमूना पेश करती है। यह 120 फुट गुना 120 फुट का विशालकाय होर्डिंग था और उसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया था। वह बीएमसी के 40 गुना 40 के अधिकतम अधिकृत होर्डिंग की तुलना में तीन गुना बड़ा था।

इगो मीडिया नामक इससे संबंधित कंपनी को लेकर मार्च 2023 में भी सवाल उठे थे। उस वक्त बीएमसी ने इगो मीडिया को 6.14 करोड़ रुपये का लाइसेंस शुल्क न चुकाने के लिए नोटिस दिया था। उसके बाद एक अन्य नोटिस इस वर्ष 2 मई को रेलवे पुलिस की ओर से दिया गया।

रेलवे पुलिस उस जमीन का रखरखाव करती है जहां बिलबोर्ड खड़ा किया गया था। वहां यह होर्डिंग लगाने के लिए पेड़ों को नुकसान पहुंचाया गया था। 13 मई को यानी घटना के दिन भी कंपनी को एक नोटिस दिया गया था जिसके मुताबिक बिलबोर्ड को बिना बीएमसी की समुचित स्वीकृति के खड़ा किया गया था।

इन नोटिसों से अफसरशाही की जरूरी खानापूर्ति हो सकती है लेकिन उनसे यह नहीं स्पष्ट होता है कि आखिर क्यों इस समस्या पर ध्यान जाने में करीब दो वर्ष का समय लगा और यह भी कि आखिर नोटिस देने के बाद भी कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया।

अप्रैल 2022 से लगा हुआ था बिलबोर्ड 

बिलबोर्ड अप्रैल 2022 से लगा हुआ था। कम से कम यह पूरा सिलसिला बीएमसी की कार्यक्षमता पर भी तो सवाल पैदा करता है। परंतु इन चीजों से कहीं अधिक धूल भरे तूफान के कारण हुई यह दुर्घटना बताती है कि नगर निकायों के अधिकारियों द्वारा कर्तव्यपालन में विफल रहने के कारण शहरों में रहने वाले नागरिक किस कदर मुश्किल में पड़ सकते हैं।

उदाहरण के लिए 2017 में भी दक्षिण मुंबई से केवल 10 किलोमीटर दूर एक वाणिज्यिक परिसर में रूफटॉप रेस्टोरेंट में आग लगने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। बाद में हुई जांच से पता चला कि रेस्टोरेंट में फायर अलार्म काम नहीं कर रहे थे, बुनियादी अग्निशमन उपकरण मसलन आग बुझाने वाले सिलिंडर और आग की स्थिति में बाहर निकलने के रास्ते नहीं थे।

इसके बावजूद अग्निशमन विभाग ने उसे तथा करीब स्थित एक अन्य खानपान की दुकान को समुचित ढंग से प्रमाणित किया था। हालांकि बाद में महानगरपालिका तथा अग्निशमन विभाग के कई संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई थी।

यह कहानी देश के तमाम शहरों की है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पेड़ों के इर्दगिर्द बिना सोचे-समझे कंक्रीट बिछा दिया गया है जिससे उनकी जड़ें कमजोर हुई हैं। इससे हर वर्ष मॉनसून के पहले सैकड़ों पुराने पड़े उखड़ जाते हैं और लोगों की जान जाती है अथवा संपत्ति का नुकसान होता है।

इसी तरह मॉनसून के पहले नालियों की सफाई जैसे कदम नहीं उठाने के कारण देश के कई शहरों में अक्सर बाढ़ आती है और पैदल चलने वाले तमाम लोगों को नंगे तारों के कारण बिजली के झटकों से जान गंवानी पड़ती है।

शहरी नागरिकों को मौसमी मार का जितना खतरा है उतना ही खतरा उन्हें ऐसी इमारतों से भी है जिन्हें शिथिल अधिकारियों की वजह से नियामकीय मंजूरी मिली है लेकिन जो ढह रही हैं। जलवायु परिवर्तन ऐसे खतरों में इजाफा करता है।

First Published : May 15, 2024 | 10:00 PM IST