प्रतीकात्मक तस्वीर
भारत सरकार इससे स्पष्ट संदेश नहीं दे सकती थी। पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा, ‘भारत हर आतंकवादी और उसके समर्थकों की पहचान करेगा, उन्हें तलाश करेगा और उन्हें धरती के कोने-कोने तक खदेड़ेगा।’ बिहार के मधुबनी जिले में आयोजित सभा में मोदी ने अंग्रेजी में बोलने का निर्णय लिया जिससे संकेत मिलता है कि वह इस संदेश को बिना किसी बाधा के पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहते थे। उन्होंने इस मुश्किल समय में भारत के साथ खड़े देशों और नेताओं का भी उल्लेख किया। इस बात ने और हमले को लेकर विदेशी नेताओं की प्रतिक्रिया ने यह दिखाया है कि भारत को जबरदस्त कूटनीतिक समर्थन हासिल है। केंद्र सरकार ने गुरुवार को एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई। यह बताता है कि देश एकजुट है।
चूंकि यह हमला सीमा पार से जुड़ा हुआ है और यह बात सबको पता है कि पाकिस्तान आतंकी समूहों को पालता और वित्तीय मदद मुहैया कराता है। ऐसे में सरकार ने बुधवार को व्यापार रोकने, पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों को निकालने और सार्क वीजा रियायत योजना के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को दिए वीजा निरस्त करने जैसे कदम उठाए। बहरहाल सबसे महत्त्वपूर्ण कदम था सिंधु जल संधि को स्थगित करना। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि 1960 में हस्ताक्षरित इस संधि को 1965 और 1971 की भारत-पाकिस्तान की जंग और 1999 में करगिल युद्ध के समय भी निलंबित नहीं किया गया था।
यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। पाकिस्तान में खेती से लेकर बिजली उत्पादन तक की गतिविधियों पर इसका बुरा असर हो सकता है। अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब 25 फीसदी सिंधु जल व्यवस्था पर निर्भर है। गुरुवार को पाकिस्तान ने इस घोषणा को नकार दिया और कहा कि सिंधु नदी के जल को रोकने या उसके बहाव की दिशा को बदलने की किसी भी कोशिश को युद्ध जैसी कार्रवाई माना जाएगा। पाकिस्तान ने भी शिमला समझौते को स्थगित कर दिया।
हालांकि भारत शायद पानी के प्रवाह को तत्काल न रोके लेकिन यह घोषणा इस बात को रेखांकित करती है कि कोई भी कदम उठाया जा सकता है। भारत इस स्थिति में है कि वह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को तगड़ा नुकसान पहुंचा सके जो पहले ही खस्ता हालत में है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़ों के मुताबिक उसकी जीडीपी नॉमिनल अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में 2024 में साल 2022 से भी कम थी। नॉमिनल डॉलर के ही संदर्भ में उसका प्रति व्यक्ति जीडीपी 2024 में तकरीबन उतना ही था जितना कि वह 2015 में था।
पाकिस्तान कई साल से आईएमएफ के सहयोग कार्यक्रमों की बदौलत चल रहा है। कूटनीति की बात करें तो पिछले कई साल के निरंतर प्रयासों से भारत, पाकिस्तान को अलग-थलग कर पाने में कामयाब रहा है। अमेरिका के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद पाकिस्तान ने वह बढ़त भी गंवा दी है जो उसे अमेरिका के या मोटे तौर पर पश्चिमी देशों के साथ हासिल थी। पश्चिम एशिया भी उससे किनारा कर चुका है। पाकिस्तान में चल रही चीनी परियोजनाओं की दिक्कतें जल्दी ही दोनों देशों की दोस्ती को प्रभावित कर सकती हैं।
चाहे जो भी हो भारत को दुनिया भर में अपने मित्र राष्ट्रों के माध्यम से पाकिस्तान पर यथासंभव कूटनीतिक दबाव बनाना चाहिए और उसे विवश करना चाहिए कि वह आतंकवाद का समर्थन करना बंद कर दे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान खासकर उसकी सेना अभी भी यह समझ नहीं पा रही है कि उसे आतंकवाद का समर्थन करने से कुछ नहीं हासिल होगा। इसके विपरीत ऐसी हरकतें पाकिस्तान के लिए हालात को और मुश्किल बना देंगी।
सरकार कूटनीतिक कदम उठा रही है और आतंकियों को तलाशने की हर कोशिश की जा रही है लेकिन सुरक्षा और खुफिया व्यवस्था की कमियों को भी पहचान कर दूर करना चाहिए। पहलगाम हमला जम्मू-कश्मीर की आर्थिक संभावनाओं और वहां सामान्य होते हालात पर हमला है। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि न केवल घाटी में बल्कि पूरे देश में विश्वास बहाल किया जाए, जो पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहा है।