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Editorial: रिजर्व बैंक के समक्ष चुनौतियां

रिजर्व बैंक के पास अस्थिरता से निपटने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है मगर यह स्पष्ट नहीं है कि अनिश्चितता कितनी लंबी चलेगी और वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की क्या शक्ल बनेगी

Last Updated- April 01, 2025 | 9:59 PM IST
RBI MPC Meeting

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी स्थापना के 90 वर्ष इस हफ्ते पूरे कर लिए। रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मंगलवार को द टाइम्स ऑफ इंडिया में अपने स्तंभ में बैंकिंग नियामक के कुछ काम बताए और यह भी बताया कि बैंक भविष्य की तैयारी कैसे करता है। देश के केंद्रीय बैंक के सफर के इस अहम पड़ाव हमें उन चुनौतियों पर चर्चा करने का मौका देता है, जो आगे उसके सामने आ सकती हैं। देश की अर्थव्यवस्था का आकार भी बीते कुछ दशकों में बहुत अधिक बदला है क्योंकि इस दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ उसका जुड़ाव भी बढ़ा है। सच कहें तो रिजर्व बैंक ने तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से खुद को बेहतर तरीके से ढाला है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में यदा कदा होने वाले सामान्य मतभेदों को छोड़ दिया जाए तो सरकार ने भी केंद्रीय बैंक का पूरा समर्थन किया है। उदाहरण के लिए सरकार ने 2016 में रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन किया ताकि मुद्रास्फीति को साधने में लचीला रुख रहे। यह भारत के हित में साबित हुआ है।

भावी चुनौतियों की बात करें तो अमेरिकी व्यापार नीति की धुंध ने दुनिया भर में अनिश्चितता बढ़ा दी है। ऐसे में बाहरी मोर्चे पर जोखिम बढ़ा रहेगा। भारत का चालू खाते का घाटा कम रहने की उम्मीद है लेकिन वैश्विक अनिश्चितता पूंजी की आवक को प्रभावित कर सकती है। हम बीते कुछ महीनों में ऐसा होते देख चुके हैं। रिजर्व बैंक के पास अस्थिरता से निपटने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है मगर यह स्पष्ट नहीं है कि अनिश्चितता कितनी लंबी चलेगी और वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की क्या शक्ल बनेगी। रिजर्व बैंक को भी सावधान रहना होगा। उसे अल्पावधि की अस्थिरता और दीर्घकालिक बुनियादी बदलावों में भेद करना होगा। शिकायत आ रह है कि रिजर्व बैंक रुपये की कीमत अधिक रख रहा है, जिससे व्यापार पर असर पड़ रहा है।

महंगाई काबू में रखना केंद्रीय बैंक के लिए दूसरी बड़ी चुनौती होगी। इस साल खुदरा मुद्रास्फीति नीचे आने की उम्मीद है, जिससे मौद्रिक सहजता बढ़ाने की गुंजाइश बनेगी। मगर मध्यम अवधि का नजरिया बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में खाद्य महंगाई के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है। मौसम पर जलवायु परिवर्तन का बढ़ता असर कृषि उपज और कीमतों को अस्थिर कर सकता है। मौद्रिक नीति समिति को आने वाले वर्षों में खाद्य कीमतों के ऐसे झटकों पर अधिक प्रतिक्रिया देनी पड़ सकती है, जिसका असर वृद्धि पर भी पड़ सकता है। ऐसे में अपने तय अधिकार के साथ संतुलन बनाना चुनौती भरा हो सकता है।

रिजर्व बैंक को नियमन और पर्यवेक्षण में भी खुद को ढालना होगा। निजी बैंकों के हालिया घटनाक्रम उसके लिए और भी पारदर्शिता की जरूरत बता चुके हैं। नियुक्तियों को मंजूरी देते समय उसे बताना होगा कि बोर्ड की सिफारिशों से वह असहमत क्यों है और कम समय के लिए सेवा विस्तार क्यों दे रहा है। नियुक्तियों को रिजर्व बैंक की मंजूरी से गड़बड़ियों की आशंका समाप्त नहीं होती। उसे बैंकों और अन्य विनियमित संस्थाओं की निगरानी में सुधार पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है। आने वाले वर्षों में रिजर्व बैंक को बढ़ते डिजिटलीकरण की चुनौतियों से भी निपटना होगा। डिजिटलीकरण ने वित्तीय समावेशन और सेवा गुणवत्ता बढ़ाई है मगर जोखिम भी बढ़ा है। आसानी से ऋण मिलने के कारण परिवारों पर कर्ज बढ़ सकता है। कमजोर परिवारों के साथ ऐसा ज्यादा हो सकता है। बढ़ते डिजिटलीकरण का एक अर्थ निरंतर बैंकिंग भी है और व्यवस्था में कोई भी खामी वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम बन सकती है। रिजर्व बैंक को इन चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा।

(डिसक्लेमर: कोटक परिवार द्वारा नियंत्रित संस्थाओं की बिज़नेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है)

First Published - April 1, 2025 | 9:59 PM IST

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