नीतिगत निर्णय ले सकने में मदद करने वाले कई आर्थिक संकेतकों में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। जैसा कि इस समाचार पत्र में तथा अन्य जगहों पर भी प्रकाशित हुआ, केंद्र सरकार का सांख्यिकी विभाग उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए नई श्रृंखलाओं पर काम कर रहा है।
ये अगले वर्ष जारी की जा सकती हैं। भारत जैसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि प्रमुख संकेतकों को नियमित रूप से संशोधित किया जाए और समायोजित भी किया जाए। हाल के वर्षों के दौरान संशोधन में देरी हुई। ऐसा आंशिक रूप से कोविड के कारण हुआ और घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षणों के बीच लंबे अंतराल की वजह से भी हुआ। जैसा कि इस समाचार पत्र में बुधवार को प्रकाशित भी हुआ, सरकार अब यह योजना बना रही है कि घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षणों को निरंतर और कम अंतराल पर अंजाम दिया जाए। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए मौजूदा जीडीपी श्रृंखला का आधार वर्ष 2011-12 है। संदर्भ के लिए बताते चलें कि डॉलर के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2025 तक बढ़कर 2011 के आकार के 2.3 गुना तक हो जाने का अनुमान है। पिछले संशोधन के बाद से भारत में काफी बदलाव हो चुका है और यह संभव है कि मुख्य संकेतक अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर नहीं पेश कर पा रहे हों।
अनुमानित संशोधन न केवल आधार वर्ष को बदल देगा बल्कि नए डेटा स्रोत भी शामिल करेगा जिनकी बदौलत इन संकेतकों में और अधिक मजबूती आनी चाहिए। उदाहरण के लिए नया सीपीआई करीब 2,900 भौतिक बाजारों के मूल्य संबंधी आंकड़ों को दर्शाएगा जबकि मौजूदा श्रृंखला में 2,300 बाजार शामिल हैं। यही नहीं, विभाग 12 शहरों से ऑनलाइन डेटा भी जुटाएगा ताकि ई-कॉमर्स क्षेत्र में आ रहे बदलाव को दर्ज किया जा सके। यह सही है कि अब ई-कॉमर्स शहरी भारत में महत्त्वपूर्ण पहुंच रखता है लेकिन ग्रामीण भारत के कुछ इलाकों में भी इसकी अच्छी खासी पहुंच है। देश का शहरीकरण हो रहा है और ऐसे में उपभोक्ताओं द्वारा इसे अपनाया जाना बढ़ेगा।
इस वर्ष के आरंभ में जानकारी आई थी कि सरकार एक अलग ई-कॉमर्स सूचकांक की संभावनाओं का आकलन कर रही है जो घरेलू खपत पर इस माध्यम से भी नजर रखेगा। ऐसे सूचकांकों का निर्माण करना सही रहेगा। गहराई और दायरे के आधार पर यह महत्त्वपूर्ण सूचनाएं मुहैया कराएगा, मसलन खपत का रुझान और मांग में परिवर्तन। वास्तव में ई-कॉमर्स क्षेत्र पर करीबी नजर रखने से जीडीपी आंकड़ों को समृद्ध बनाने में मदद मिल सकती है। ऐसे सूचकांकों को मासिक स्तर पर जारी करना अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम संकेतक साबित हो सकता है। इतना ही नहीं, जैसा कि रिपोर्ट बताती हैं, नई सीरीज में जीडीपी के अनुमानों में वस्तु एवं सेवा कर के आंकड़े तथा नैशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे। आधार वर्ष में पिछले संशोधन के समय ये स्रोत उपलब्ध नहीं थे।
सटीक आंकड़े नीति निर्माण और निजी क्षेत्र के लिए निर्णय लेने, दोनों ही मामलों में उपयोगी साबित होते हैं। उदाहरण के लिए ताजा खपत आंकड़ों के अनुसार अर्थशास्त्र के कुछ विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि सीपीआई में खाद्य उत्पादों का भार काफी कम हो सकता है। फूड बास्केट के घटकों में भी शायद बदलाव आ गया है और खराब होने वाले उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ सकती है। ये सभी बातें हेडलाइन मुद्रास्फीति को अलग-अलग तरह से प्रभावित करेंगी और मौद्रिक नीति पर इसका असर होगा। मुद्रास्फीति को लक्षित बनाने के ढांचे को प्रभावी और उपयोगी बनाने के लिए यह अहम है कि वास्तविक स्थिति की जानकारी हो।
बहरहाल आगामी संशोधन इस तथ्य से प्रभावित हो सकते हैं कि सर्वेक्षण के आंकड़े अभी भी उन नमूनों पर आधारित हैं जो 2011 की जनगणना के हैं। जीडीपी के आंकड़ों के संदर्भ में सांख्यिकी विभाग को मौजूदा श्रृंखला की आलोचना को दूर करने का लक्ष्य भी लेकर चलना चाहिए। ऐसी ही एक आलोचना नॉमिनल जीडीपी को वास्तविक जीडीपी में बदलने की भी है। इस संदर्भ में यह बात ध्यान देने लायक है कि भारत को एक उत्पादक मूल्य सूचकांक की भी आवश्यकता है ताकि ऐसे मसलों को हल किया जा सके। हालांकि ऐसी खबरें हैं कि इस प्रकार का सूचकांक विचाराधीन है लेकिन यह तय नहीं है कि यह कब तक बनेगा और क्या इसमें नई श्रृंखला का इस्तेमाल किया जाएगा?