वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ढांचे को उपयुक्त बनाने की अनुशंसाओं के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के नेतृत्व में गठित राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति के बारे में खबर है कि उसने अपनी अनुशंसाओं को अंतिम रूप दे दिया है। उसने 148 वस्तुओं की कर दरों में भी महत्त्वपूर्ण बदलाव किए हैं। हालांकि इस समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ, कुछ अनुशंसाओं की दिशा सही नहीं है। इस संदर्भ में यह बात याद करना उचित होगा कि यह प्रक्रिया क्यों अपनाई जा रही है। इसकी कम से कम दो बड़ी वजह हैं। पहली, बीते वर्षों में यह व्यवस्था अपेक्षित प्रदर्शन कर पाने में नाकाम रही। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दरों को कम करने में अपरिपक्वता बरती गई। गत वित्त वर्ष में क्षतिपूर्ति उपकर सहित कुल कर संग्रह कमोबेश उतना ही रहा जितना राजस्व जीएसटी के पहले उन करों से हासिल होता था जिन्हें जीएसटी ढांचे में समाहित कर लिया गया। संभावनाएं बहुत अधिक थीं।
दूसरा, क्षतिपूर्ति उपकर जिसे जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद केवल पांच सालों तक वसूल किया जाना था, उसकी अवधि बढ़ाई गई ताकि कर्ज चुकाया जा सके और कोविड-19 महामारी के दौरान राज्यों को हुई राजस्व हानि की भरपाई की जा सके। अगले वर्ष जब कर्ज का पुनर्भुगतान हो जाने के पश्चात अगर जरूरी कानूनी बदलाव नहीं किए गए तो यह संग्रह रोक दिया जाएगा। एक अन्य मंत्री समूह इस पहलू पर विचार कर रहा है। जीएसटी परिषद अगर दोनों मंत्री समूहों की अनुशंसाओं पर चर्चा करने के पश्चात बदलाव करेगी तो बेहतर होगा और कम से कम उथलपुथल की स्थिति बनेगी।
दरों को औचित्य भरा बनाने में परिषद का प्राथमिक उद्देश्य राजस्व-तटस्थ दर पर जाना होना चाहिए। साथ ही साथ करों की स्लैब की संख्या को भी कम किया जाना चाहिए। वित्त मंत्रालय द्वारा संसद को दी गई जानकारी के मुताबिक 2023-24 में जीएसटी की औसत दर 11.6 फीसदी थी। जीएसटी को लागू करते समय एक विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाई गई राजस्व-तटस्थ दर 15 से 15.5 फीसदी थी। कम औसत कर दर ने राजस्व संग्रह पर असर डाला है।
हालांकि दरों को वाजिब बनाने में मंत्री परिषद की अनुशंसाएं अभी ज्ञात नहीं हैं किंतु जिन सुझावों के बारे में जानकारी है उनके मुताबिक वे व्यापक सिद्धांत का पालन करती नहीं नजर आ रही हैं। खबरों के मुताबिक समिति का इरादा है कि तंबाकू से बने उत्पादों तथा गैस वाले पेय पदार्थों पर 35 फीसदी की दर से कर लगाया जाए। इससे स्लैब और बढ़ जाएंगी। इतना ही नहीं, इसका इरादा टैक्सटाइल उत्पाद पर उनकी कीमत के मुताबिक अलग-अलग कर लगाने की अनुशंसा करने का भी है। अन्य उत्पादों के लिए भी ऐसी ही अनुशंसाएं की जा सकती हैं। इससे कर ढांचा और जटिल हो सकता है तथा इनपुट क्रेडिट से जुड़े विवाद बढ़ सकते हैं। मंत्री समूह जीएसटी को प्रगतिशील बनाना चाहता है। बहरहाल, अप्रत्यक्ष कर ढांचे में इसे हासिल करने की सीमा है।
ढांचे को सहज बनाने पर काम होना चाहिए। इससे अनुपालन बढ़ेगा और विवाद में कमी आएगी। इससे न केवल छोटे कारोबारियों के लिए कारोबारी सुगमता में सुधार होगा बल्कि राजस्व बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। परिषद को अतीत की गलतियां दोहरानी नहीं चाहिए जो आज भी कर ढांचे को प्रभावित कर रही हैं। ध्यान देने वाली बात है कि सरकार ने संसद को भी सूचित किया है कि एक ओर जहां विभिन्न दरों पर कर संग्रह का आकलन नहीं किया जा सकता वहीं अनुमान दर्शाते हैं कि गत वित्त वर्ष 70-75 फीसदी जीएसटी संग्रह 18 फीसदी के स्लैब से आया। 12 फीसदी के स्लैब से सिर्फ 5-6 फीसदी राजस्व प्राप्त हुआ। ऐसे में 12 फीसदी की दर को 18 फीसदी में मिला देने से कोई खास उथल पुथल नहीं होगी। ऐसी अन्य संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर परिषद के लिए यह अहम है कि वह सभी प्रासंगिक सूचनाओं का सावधानी से परीक्षण करे ताकि जीएसटी ढांचे को ऐसा सहज बनाया जा सके जिससे सरकार समेत सभी अंशधारकों को लाभ हो। अप्रत्यक्ष कर ढांचे में व्याप्त कमियों को दूर करने का मौका गंवाना नहीं चाहिए।