facebookmetapixel
90% प्रीमियम पर लिस्ट हुए इस SME IPO के शेयर, निवेशकों को नए साल से पहले मिला तगड़ा गिफ्ट2026 में सोना-चांदी का हाल: रैली जारी या कीमतों में हल्की रुकावट?Gujarat Kidney IPO की शेयर बाजार में पॉजिटिव एंट्री, 6% प्रीमियम पर लिस्ट हुए शेयरGold silver price today: सोने-चांदी के दाम उछले, MCX पर सोना ₹1.36 लाख के करीबDelhi Weather Today: दिल्ली में कोहरे के चलते रेड अलर्ट, हवाई यात्रा और सड़क मार्ग प्रभावितNifty Outlook: 26,000 बना बड़ी रुकावट, क्या आगे बढ़ पाएगा बाजार? एनालिस्ट्स ने बताया अहम लेवलStock Market Update: शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव, सेंसेक्स 50 अंक टूटा; निफ्टी 25900 के करीबबांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का निधन, 80 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांसStocks To Watch Today: InterGlobe, BEL, Lupin समेत इन कंपनियों के शेयरों पर आज रहेगा फोकसYear Ender: भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए 2025 चुनौतियों और उम्मीदों का मिला-जुला साल रहा

Editorial: मजबूत हों स्थानीय निकाय

रिजर्व बैंक ने अब 2019-20 से 2023-24 के बजट अनुमानों के आधार पर नगर निकायों की वित्तीय स्थिति पर आधारित एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

Last Updated- November 14, 2024 | 10:22 PM IST
Editorial: Local bodies should be strengthened मजबूत हों स्थानीय निकाय

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने स्थानीय निकायों की राजकोषीय स्थिति पर अध्ययन की शुरुआत करके तथा उसके निष्कर्षों को प्रकाशित करके अच्छी शुरुआत की है। नगर निकायों की वित्तीय स्थिति पर पहली ऐसी रिपोर्ट नवंबर 2022 में प्रकाशित की गई थी। उसके बाद पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति पर एक अध्ययन पेश किया गया। रिजर्व बैंक ने अब 2019-20 से 2023-24 के बजट अनुमानों के आधार पर नगर निकायों की वित्तीय स्थिति पर आधारित एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

अध्ययन में देश भर के 232 नगर निकायों को शामिल किया गया है। भारत में अक्सर स्थानीय निकायों पर सीमित नीतिगत ध्यान दिया जाता है। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए हुआ कि तुलनात्मक स्वरूप में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि रिजर्व बैंक का यह अध्ययन जरूरी नीतिगत ध्यान आकृष्ट करेगा और सार्वजनिक बहस को समृद्ध करेगा। स्थानीय निकायों को मजबूत बनाना अत्यधिक आवश्यक है।

नगर निकायों के संदर्भ में यह बात ध्यान देने लायक है कि भारत का तेजी से शहरीकरण हो रहा है और उसे नागरिक क्षमताएं विकसित करने की आवश्यकता है। फिलहाल जो हालात हैं उनके मुताबिक भारत का करीब 60 फीसदी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) शहरी इलाकों में उत्पन्न हो रहा है और 2050 तक उसकी करीब 50 फीसदी आबादी शहरी इलाकों में रहने लगेगी।

बहरहाल अधिकांश नगर निकाय इस बदलाव से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं, मोटे तौर पर ऐसा इसलिए कि उनके पास संसाधन नहीं हैं। जैसा कि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट दिखाती है, नगर निकायों की राजस्व प्राप्तियां जीडीपी का केवल 0.6 फीसदी हैं। यह मामूली आंकड़ा भी चुनिंदा नगर निकायों के पक्ष में झुका हुआ है। केवल 10 नगर निकाय कुल राजस्व प्राप्तियों में 60 फीसदी के हिस्सेदार हैं।

नगर निकायों का कुल व्यय जिसमें राजस्व और पूंजीगत व्यय शामिल है, वह 2023-24 के बजट अनुमान में जीडीपी के 1.3 फीसदी के बराबर था। नगर निकायों के राजस्व में संपत्ति कर, कुछ शुल्क और उपयोग शुल्क आदि शामिल होते हैं। संपत्ति कर उसके कुल राजस्व में करीब 60 फीसदी होता है।

नगर निकाय केंद्र और राज्य सरकारों के अनुदान पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। राज्य सरकारों, राज्यों के वित्त आयोग के अनुदान तथा अन्य जगहों से आने वाली राशि की बात करें तो 2019-20 और 2022-23 में वह इनकी राजस्व प्राप्तियों में 30 फीसदी की हिस्सेदार रही। केंद्र सरकार का हस्तांतरण उनके राजस्व में 2.5 फीसदी का हिस्सेदार रहा। नगर निकाय बाजार से भी उधारी लेते हैं, हालांकि यह उनके जीडीपी का केवल 0.05 फीसदी है।

नगर निकायों की वित्तीय स्थिति दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने लायक बनाना होगा। अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में सामान्य सरकारी राजस्व और व्यय में स्थानीय निकायों की हिस्सेदारी बहुत अधिक है। राजकोषीय शक्तियों में इजाफा तथा सामाजिक जवाबदेही, आर्थिक और सामाजिक परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करेंगे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाताओं के लिए यह हमेशा आसान होता है कि वे अपने स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराएं।

नगर निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए विभिन्न स्तरों पर हस्तक्षेप की जरूरत होगी। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि निकायों को खुद अपना राजस्व बढ़ाने पर काम करना होगा। उदाहरण के लिए संपत्ति कर में सुधार की जरूरत है क्योंकि संपत्तियों का मूल्यांकन बढ़ रहा है। कराधान का दायरा और गुंजाइश बढ़ाने के लिए तकनीक का भी इस्तेमाल करना होगा। इन निकायों को उपयोगकर्ता शुल्क को भी समुचित बनाना होगा।

कुल मिलाकर सरकार के उच्च स्तरों पर निर्भरता कम करने की जरूरत है जिससे राजस्व के बारे में एक अनुमान लग सकेगा। एक संभावना यह है कि जरूरी कानूनी बदलावों के बाद स्थानीय निकायों को वस्तु एवं सेवा कर में हिस्सा दिया जाए। इससे न केवल इन निकायों को विकास परियोजनाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी बल्कि वे अधिक अनुकूल शर्तों पर ऋण भी जुटा सकेंगे। कुछ नगर निकायों ने बॉन्ड बाजार का रुख भी किया है। अब वक्त आ गया है कि भारत स्थानीय निकायों की स्थिति और भूमिका पर नए सिरे से विचार करे।

First Published - November 14, 2024 | 10:19 PM IST

संबंधित पोस्ट