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Editorial: लचीले राजकोषीय लक्ष्य की सीमाएं

वैसे तो सरकार ने 2025-26 के बाद अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण की एक व्यापक रूपरेखा पेश की है, लेकिन उससे थोड़ी ज्यादा स्पष्टता की दरकार है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 07, 2024 | 9:29 PM IST

राजकोषीय मजबूती को लेकर केंद्र सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता का वित्तीय बाजारों और अर्थशास्त्रियों ने स्वागत किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई में पेश सालाना बजट में ऐलान किया है कि सरकार मौजूदा वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.9 फीसदी तक रखने का लक्ष्य रखेगी, जबकि अंतरिम बजट में इसके 5.1 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया गया था।

यही नहीं, सरकार वित्त वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5 फीसदी तक सीमित रखने की दिशा में आगे बढ़ रही है, यह एक ऐसा लक्ष्य है जो तब तो काफी मुश्किल लग रहा था जब साल 2021 में पहली बार इसका ऐलान किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में सरकार के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए यह अपेक्षा की जा रही थी कि वह 2025-26 से आगे का भी खाका पेश करेगी।

वैसे तो सरकार ने 2025-26 के बाद अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण की एक व्यापक रूपरेखा पेश की है, लेकिन उससे थोड़ी ज्यादा स्पष्टता की दरकार है। इससे निवेशकों, खास तौर पर लंबी अवधि के निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा था, ‘2026-27 के बाद हमारी यह कोशिश रहेगी कि हर साल राजकोषीय घाटे को इस स्तर तक रखा जाए जिससे जीडीपी के प्रतिशत हिस्से के रूप में केंद्र सरकार का कर्ज घटता रहे।’

बजट के बाद मीडिया से संवाद में वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने यह संकेत दिया कि राजकोषीय घाटा, जिसे कि कर्ज को नीचे की ओर ले जाते हुए सहारा दिया जा सकता है, जीडीपी के 3 फीसदी से ज्यादा रखा जा सकता है, जैसा कि राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम में प्रावधान किया गया है। यह भी संकेत दिया गया कि सरकार सालाना निश्चित राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की जगह लक्ष्य का एक दायरा तय कर सकती है।

इस संदर्भ में तीन ऐसे व्यापक मसले हैं, जिन पर सरकार को ध्यान देना होगा। पहला, सरकार को यह बताना चाहिए कि वह अगले वर्षों में, उदाहरण के लिए पांच साल में, ऋण में कितना कमी लाना चाहती है। मौजूदा साल में केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 56.8 फीसदी तक रहने का अनुमान है, जो कि 2023-24 में 58.1 फीसदी था। इसे और घटाते हुए जीडीपी के 40 फीसदी तक लाने में काफी लंबा समय लगेगा, जैसा कि एफआरबीएम ढांचे में सुझाव दिया गया है। मध्यम अवधि के लिए एक स्पष्ट ऋण लक्ष्य से यह तय करने में भी मदद मिलेगी कि सरकार एक निश्चित अवधि में राजकोषीय घाटे का कितना स्तर बनाए रख सकती है।

दूसरा, राजकोषीय घाटे का लक्ष्य दायरा करने में समस्या यह है कि ऊपरी छोर, या ऊपरी छोर के निकट का स्तर ही वास्तविक लक्ष्य बन सकता है। इस संबंध में यह भी अहम होगा कि इस दायरे की सीमा या आयाम तय किया जाए। एक विस्तृत दायरा स्वाभाविक रूप से कई सवाल खड़े करेगा। बजट पर हमेशा कई तरह की मांगों का दबाव होता है और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई कोई भी सरकार नागरिकों की हर जरूरत को यथासंभव तरीके से पूरा करना चाहेगी। इसलिए व्यापक आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए बजट में कठोर अंकुश लगाना महत्त्वपूर्ण है, खासकर तब जब ऋण और बजट घाटा अधिक हो। इसलिए यही उचित रहेगा कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का कोई दायरा न तय किया जाए।

तीसरा, मध्यम अवधि के लक्ष्यों को अर्थव्यवस्था की वित्तपोषण क्षमताओं के आधार पर तय करना चाहिए। अगर सार्वजनिक क्षेत्र की उधारी की जरूरतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं, तो इससे निजी निवेश में कमी आएगी। नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि घरेलू वित्तीय बचत जीडीपी के 5.3 फीसदी के साथ कई दशकों के निचले स्तर पर आ गई है। इसलिए, समग्र राजकोषीय नीति प्रबंधन को, सार्वजनिक ऋण को पर्याप्त रूप से कम करने की आवश्यकता और दीर्घकालिक विकास संभावनाओं से समझौता किए बिना बजट घाटे को वित्तपोषित करने की अर्थव्यवस्था की क्षमता के अनुरूप होना चाहिए।

First Published : August 7, 2024 | 9:29 PM IST