जुलाई 2023-जून 2024 तक के ताजा वार्षिक सावधिक श्रम शक्ति सर्वे (पीएलएफएस) की रिपोर्ट इसी सप्ताह जारी की गई। उससे पता चला कि बेरोजगारी दर पिछले वर्ष के समान यानी 3.2 फीसदी रही।
बहरहाल कुल श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) की बात करें तो 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए यह 60.1 फीसदी के साथ सात वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई जबकि 2017-18 में यह 49.8 फीसदी थी। महिलाओं के एलएफपीआर की बात करें तो शहरी और ग्रामीण इलाकों में मिलाकर यह 2017-18 के 23.3 फीसदी से बढ़कर ताजा सर्वे में 78.8 फीसदी तक पहुंच गई।
चूंकि श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ी है और बेरोजगारी उसी स्तर पर है, इससे संकेत निकलता है कि अर्थव्यवस्था में रोजगार बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद कई ऐसे कारक हैं जो देश के श्रम बाजार को पूरी क्षमताओं का इस्तेमाल करने से रोक रहे हैं। रोजगार में इजाफा होने के बावजूद उन रोजगारों की गुणवत्ता चिंता का विषय है। उदाहरण के लिए महिलाओं की बेरोजगारी दर 2022-23 के 2.9 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 3.2 फीसदी हो गई है।
श्रम भागीदारी में इजाफा जहां सकारात्मक है, वहीं हालिया अध्ययन यह भी दिखाते हैं कि एलएफपीआर में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी मुश्किल हालात की वजह से भी हो सकती है। अपने परिवार की आय में इजाफा करने के लिए भी महिलाएं श्रम शक्ति में शामिल हो रही हैं। नियमित वेतन वाले रोजगार में उनकी हिस्सेदरी भी 15.9 फीसदी पर स्थिर है। इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में नियमित रोजगार वाली महिलाओं की हिस्सेदारी 2022-23 के 50.8 फीसदी से कम होकर 2023-24 में 49.4 फीसदी रह गई।
भारत में स्वरोजगार निरंतर बढ़ता जा रहा है और देश की आधी से अधिक श्रम शक्ति को घरेलू उपक्रमों में सहायक और अपने ही काम में कर्मचारी और नियोक्ता के रूप में ही काम करने का अवसर मिल रहा है। 2023-24 में 58 फीसदी से अधिक कर्मचारी स्वरोजगार में थे। वर्ष 2022-23 और 2021-22 में स्वरोजगार की दर क्रमश: 57.3 फीसदी और 55.8 फीसदी थी।
इससे भी बुरी बात यह है कि स्वरोजगार की श्रेणी में होने वाला इजाफा ज्यादातर ‘घरेलू उपक्रमों में बिना वेतन के काम करने वाले सहायकों ‘के रूप में है। वर्ष 2023-24 में श्रम शक्ति में इनकी हिस्सेदारी 19.4 फीसदी थी जो 2022-23 के 18.3 फीसदी और 2017-18 के 13.6 फीसदी से अधिक थी। स्पष्ट है कि स्वरोजगार और पारिवारिक व्यवसाय में इजाफा यह दर्शाता है कि देश में वेतन-भत्ते वाले रोजगार के अवसरों की कमी है।
इन श्रेणियों में होने वाला रोजगार आमतौर पर किसी लिखित रोजगार अनुबंध वाला नहीं होता और आय भी कम होती है। भारतीय श्रम बाजार एक और कमी से दो चार है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान जहां वर्तमान मूल्य पर 18.2 फीसदी है वहीं 2023-24 में कुल श्रम शक्ति का 46.1 फीसदी हिस्सा यहां रोजगार शुदा था। यह संख्या इससे पिछले वर्ष से 0.3 फीसदी अधिक था। इससे पता चलता है कि देश में रोजगार तैयार होने की गति अभी भी अपर्याप्त है।
यह बात भी ध्यान देने वाली है कि अलग-अलग राज्यों में इसमें अंतर है। कई उच्च आय वाले राज्य मसलन केरल, हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु में रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी कम है। इन राज्यों में यह दर 22 से 28 फीसदी के बीच है। यह आंकड़ा तुलनात्मक रूप से मध्य आय वाले देशों के स्तर के आसपास है।
कृषि में रोजगार समग्र अर्थव्यवस्था में उसके योगदान के अनुरूप होना चाहिए। दशकों से बुनियादी तौर पर जो नीतिगत नाकामी रही है वह है भारत की कम कुशल विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की अक्षमता। यदि इस क्षेत्र में रोजगार तैयार होते तो लोग कृषि से बाहर निकल पाते। इससे उत्पादकता और वृद्धि को गति मिलती। श्रम बाजार की स्थिति की मांग यह है कि विनिर्माण पर ध्यान दिया जाए। खेती में और स्वरोजगार में लोग बड़ी तादाद में शामिल हैं लेकिन आय का स्तर बहुत कम है। इससे देश में आर्थिक और सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।