भारत का 2030 तक उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी करने तथा 2070 तक उत्सर्जन को विशुद्ध शून्य तक लाने का लक्ष्य, काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को किस हद तक अपना पाते हैं। हम पहले ही खुद को दुनिया में इलेक्ट्रिक व्हीकल के सबसे तेज बढ़ते बाजार के रूप में स्थापित कर चुके हैं।
देश की स्थिति को और मजबूत करने के लिए भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने हाल ही में ई-मोबिलिटी के लिए शोध एवं विकास रणनीति को लेकर एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में ईवी को व्यापक तौर पर अपनाने की बात कही गई और यह भी कहा गया कि हमें स्वदेशी ऊर्जा भंडारण व्यवस्था, चार्जिंग ढांचे के लिए नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन प्रणाली और टिकाऊ सामग्री और रिसाइक्लिंग के तरीके तलाशने होंगे।
फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 में देश में ईवी की सालाना बिक्री 17.5 लाख वाहनों की थी जो इससे पिछले साल की तुलना में 40 फीसदी ज्यादा थी। ईवी बाजार में वृ़द्धि का श्रेय नैशनल ऑटो पॉलिसी 2018 और नैशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 को दिया जा सकता है।
इसके अलावा सरकार की प्रमुख योजना फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड ऐंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स या (फेम) 2, जो इस साल के आरंभ में समाप्त हुई, उसमें दोपहिया और तिपहिया वाहनों की श्रेणी को इलेक्ट्रिक बनाने पर जोर दिया गया। ये दोनों श्रेणियां इस योजना के तहत लक्षित वाहनों में 98 फीसदी वाहनों को कवर करती हैं। देश की सड़कों पर इन्हीं दोनों श्रेणियों के वाहनों का राज है।
ईवी 30 एट 30 के लक्ष्य के तहत भारत की कोशिश है कि 2030 तक देश में निजी रूप से पंजीकृत होने वाले वाहनों में ईवी की हिस्सेदारी 30 फीसदी, बसों में 40 फीसदी, वाणिज्यिक कारों में 70 फीसदी और दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों में 80 फीसदी कर दी जाए।
बहरहाल इन वाहनों का महंगा होना और चार्जिंग के लिए अपर्याप्त ढांचों का होना अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। इसके अलावा उत्पादन की बात करें तो ई-मोबिलिटी की मूल्य श्रृंखला आयात पर बहुत अधिक निर्भर करती है। घरेलू ईवी निर्माण अभी भी वाहनों की असेंबलिंग तक सीमित है और अधिकांश कलपुर्जों बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक चिप आदि के लिए हमारे पास घरेलू क्षमता नहीं है।
कमजोर आपूर्ति श्रृंखला के कारण घरेलू कलपुर्जा निर्माण के लिए हम तकनीक और सामग्री के स्तर पर बहुत हद तक चीन पर निर्भर करते हैं। ई-मोबिलिटी क्षेत्र में आयात पर निर्भरता कम करने के लिए वाहन क्षेत्र में घरेलू शोध क्षमताओं को मजबूत करना होगा। उदाहरण के लिए फिलहाल 70 फीसदी लीथियम हम चीन से आयात करते हैं और रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हमें सोडियम-आयन, लीथियम-एयर, एल्युमीनियम-एयर और लीथियम-सल्फर जैसे विकल्पों से नवाचार करने की कोशिश करनी चाहिए। ये लीथियम-आयन बैटरी के विकल्प बन सकते हैं। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि ई-मोबिलिटी में 30-34 अहम क्षेत्रों में शोध एवं विकास के लिए करीब 1,200 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है।
फंडिंग के लिए विभिन्न सरकारी विभाग जिनमें राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और भारी उद्योग मंत्रालय आदि सभी शामिल हैं, साथ आ सकते हैं। शोध एवं विकास में निवेश सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों से आ सकता है। कुछ परियोजनाओं का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है जिन्हें आजमाया जा सकता है।
इसमें लीथियम आयन बैटरी के लिए उन्नत तरल इलेक्ट्रोलाइट्स पर शोध, ईवी के लिए डायनामिक चार्जिंग व्यवस्था, बेहतर फ्यूल सेल क्षमता और फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए तरल ऑर्गेनिक हाइड्रोजन कैरियर स्टोरेज तकनीक शामिल हैं। ईवी के निर्माण के पीछे बुनियादी विज्ञान में निवेश से भारत कुछ वर्ष बाद इस क्षेत्र की मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला में वैश्विक कद हासिल कर सकता है। बहरहाल, जब तक हम बिजली के लिए प्रमुख रूप से ताप बिजली पर निर्भर रहेंगे तब तक कुल मिलाकर पर्यावरण संबंधी लाभ सीमित ही रहेंगे।