अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान एनवीडिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी जेन्सेन हुआंग ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में यह क्षमता है कि वह नवाचार के इस युग में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को अपनाकर लंबी छलांग लगा सकता है। एआई में यह काबिलियत है कि वह तकनीक का लोकतंत्रीकरण करे और लोगों को सशक्त बनाए। ऐसा करके वह अर्थव्यवस्था को भी उनके लाभ पहुंचा सकती है। जिन क्षेत्रों में एआई से खासी मदद मिल सकती है वह है बैंकिंग और फाइनैंस।
इस बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम मासिक बुलेटिन में प्रकाशित एक पत्र में यह पड़ताल करने का प्रयास किया गया है कि भारतीय बैंकिंग में एआई को किस हद तक अपनाया जा सकता है। एआई को आम जन तक सुलभ बनाकर भारत बैंकिंग क्षेत्र में नए अवसर तैयार कर सकता है।
निष्कर्ष बताते हैं कि एक बैंक इसे किस हद तक अपनाता है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसका स्वामित्व ढांचा, आकार और वित्तीय सेहत कैसी है। इसी तरह, बड़ी परिसंपत्तियों और पूंजी-जोखिम अनुपात वाले बैंक एआई को अपनाने में आगे हैं। दरअसल बड़े और पूंजी वाले बैंकों के पास पूंजी का बचाव उपलब्ध होता है और वे नई तकनीक तथा नई तरह के समाधान के क्षेत्र में निवेश संबंधी जोखिम उठाने के मामले में बेहतर स्थिति में होते हैं।
बड़े परिसंपत्ति आकार और अधिक संसाधनों वाले बैंकों के नवाचार तथा एआई जैसी आधुनिक तकनीक में निवेश करने की संभावना अधिक होती है। उनके नई तकनीक तथा डेटा एकीकरण से लाभान्वित होने की संभावना भी अधिक होती है। जहां तक स्वामित्व ढांचे की बात है सरकारी बैंकों की तुलना में निजी बैंकों में एआई को अपनाने की संभावना अधिक रहती है।
वर्ष 2015-16 से 2022-23 के बीच बैंकों की सालाना रिपोर्टों के विश्लेषण को देखें तो पता चलता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों में एआई से संबंधित कीवर्ड का इस्तेमाल छह गुना और सरकारी बैंकों में तीन गुना बढ़ गया। आश्चर्य की बात है कि पत्र में पाया गया कि परिसंपत्ति पर रिटर्न, फंसे हुए कर्ज का स्तर और खुदरा ऋण अनुपात एआई स्कोर के आकलन में महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
शायद ऐसा इसलिए कि अभी ये शुरुआती दिन हैं। भारतीय बैंक लगातार यह कोशिश कर रहे हैं कि एआई की मदद से ग्राहकों को बेहतर व्यक्तिगत अनुभव दिया जा सके, उत्पादकता में सुधार किया जा सके और अपने परिचालन का मुनाफा बढ़ाया जा सके। नियामक के अनुपालन के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
बैंक बहुत बड़ी संख्या में डेटा एनालिटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग और आंकड़ों की मदद से फ्रॉड का पता लगाने तथा अनुमानों का विश्लेषण करने का काम कर रहे हैं। इससे पहले मैकिंजी की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि वैश्विक बैंकिंग में एआई तथा संबंधित तकनीक की मदद से करीब एक लाख करोड़ डॉलर का सालाना मूल्य निर्माण हो रहा है।
इतना ही नहीं जेनरेटिव एआई सालाना 200 से 340 अरब डॉलर का मूल्य वर्धन कर रहा है। मोटे तौर पर इससे उत्पादकता में इजाफा हो रहा है। इसका आर्थिक प्रभाव बैंकिंग के लगभग सभी क्षेत्रों को लाभ पहुंचाएगा और सबसे अधिक लाभ कॉरपोरेट तथा खुदरा क्षेत्र को होगा।
ताजातरीन एविडेंट एआई इंडेक्स के मुताबिक दुनिया भर में जेपी मॉर्गन चेज 2024 में एआई को अपनाने में सबसे आगे बना रहा। एआई को अपनाते हुए डेटा और अधोसंरचना के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देते हुए बैंक की योजना है कि साल के अंत तक 75 फीसदी डेटा और 70 फीसदी ऐप्लीकेशंस को क्लाउड पर स्थानांतरित कर दिया जाए।
भारतीय बैंक भी आंकड़ों के बेहतर प्रबंधन, बेहतर सुरक्षा और सेवा की निरंतरता को देखते हुए ऐसा रुख अपनाने पर विचार कर सकते हैं। तकनीक को बेहतर ढंग से अपनाकर और एआई के बेहतर इस्तेमाल के जरिए वित्तीय समावेशन बढ़ाया जा सकता है। इससे ऋण की उपलब्धता बढ़ सकती है और ऋण मानक बेहतर हो सकते हैं। एआई का इस्तेमाल न केवल अंडरराइटिंग मानक बेहतर बनाने में किया जा सकता है बल्कि यह ऋण की निगरानी और संभावित जोखिम की ओर संकेत करने में भी मददगार हो सकता है।