प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ पिछली व्यक्तिगत बैठक और उनकी अध्यक्षता वाली क्वाड सालाना शिखर बैठक के दौरान जी 7 देशों के साथ भारत के बढ़ते तालमेल को रेखांकित किया। बाइडन का कार्यकाल आगामी जनवरी में पूरा हो जाएगा। दोनों बैठकों में चीन की बढ़ती होड़ से मुकाबला करने के रास्ते तलाशने के प्रयास किए गए। इसकी पुष्टि बाइडन द्वारा क्वाड नेताओं को दिए हॉट माइक कमेंट से भी होती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन, एशिया-प्रशांत के देशों का इम्तहान ले रहा है।
इस संदर्भ में क्वाड नेताओं के साझा विलमिंग्टन घोषणापत्र में न केवल बढ़ी हुई भूराजनीतिक चिंताओं तथा उन्हें हल करने के लिए चुनिंदा पहलों को दर्शाया गया बल्कि इसमें वैश्विक सुरक्षा ढांचे के व्यापक पहलुओं पर संबंधों को गहरा बनाने का एजेंडा भी जारी रखा गया। इसमें स्वास्थ्य सहयोग से लेकर बुनियादी ढांचा क्षेत्र की संयुक्त परियोजनाएं और जलवायु परिवर्तन तक सभी पहलू शामिल थे। इनमें से कई कार्यक्रमों को 2025 में स्पष्ट आकार मिलेगा, जब भारत क्वाड शिखर बैठक की मेजबानी करेगा।
इस संदर्भ में देखें तो प्रमुख परियोजनाओं में से एक है हिंद-प्रशांत में प्रशिक्षण की समुद्री पहल (मैत्री) जो 2022 की समुद्री क्षेत्र जागरूकता परियोजना पर आधारित है। यह साझेदार देशों को उनके विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों में गतिविधियों पर नजर रखने की सुविधा देती है। इसमें अतिक्रमण और गैरकानूनी गतिविधियां शामिल हैं। मैत्री का लक्ष्य है इन उपायों का अधिकतम इस्तेमाल करना।
अगले वर्ष भारत में इसकी आरंभिक कार्यशाला आयोजित की जाएगी। मुंबई में भी क्वाड क्षेत्रीय बंदरगाह और परिवहन सम्मेलन आयोजित किया जाएगा ताकि समूह के उन प्रयासों को मजबूती दी जा सके जिनके तहत वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बंदरगाहों का टिकाऊ और मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार करा सकता है।
यह ऐसी पहल है, जिसे दक्षिण और पूर्वी चीन सागर के पड़ोसी देशों में चीन के अतिक्रमण को ध्यान में रखकर शुरू किया गया है। इससे संबंधित संयुक्त वक्तव्य को पढ़ें तो वह गंभीर चिंताओं की बात करता है। संयुक्त वक्तव्य कई अनुच्छेदों में बहुत मजबूती से चीन के सहयोगी उत्तर कोरिया के निरंतर परमाणु हथियार बनाने के प्रयासों की आलोचना करता है।
दस्तावेज में सेमीकंडक्टर, कृषि शोध, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष शोध आदि सभी क्षेत्रों का उल्लेख है और क्वाड सहयोग की बढ़ती सार्वभौमिक प्रकृति को रेखांकित किया गया है। दुनिया के गरीब देशों तक भारत की पहुंच को स्वीकार करते हुए वक्तव्य ने यह इरादा प्रकट किया कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के जरिये उसे अधिक समावेशी बनाने का प्रयास करेगा। इसके लिए स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई। इरादा यह है कि अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों के प्रतिनिधित्व को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में स्थान दिया जाए।
मोदी की यात्रा ने भारत को 14 सदस्यों वाले हिंद प्रशांत आर्थिक समृद्धि ढांचे (आईपीईएफ) के और नजदीक लाने में भी सहायता की। यह पहल क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2022 में की थी। क्वाड के साझेदार देशों जापान और ऑस्ट्रेलिया के उलट भारत ने 15 सदस्यीय क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसेप) से बाहर रहने का निश्चय किया, जबकि चीन इसका सदस्य है।
परंतु उसने आईपीईएफ के चार में से दो स्तंभों – स्वच्छ और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था पर हस्ताक्षर किए। इनका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु के अनुकूल प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करना तथा भ्रष्टाचार विरोधी और कर पारदर्शिता के उपायों को मजबूत करना है।
भारत ने फरवरी में आपूर्ति श्रृंखला मजबूत करने का समझौता स्वीकार किया। आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो भारत ने फ्रेमवर्क के पहले स्तंभ व्यापार के क्षेत्र में पर्यवेक्षक रहना तय किया है। इस साझेदारी का भविष्य बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे क्या होते हैं।
अगर डॉनल्ड ट्रंप को दूसरा कार्यकाल मिलता है तो आईपीईएफ में गतिरोध आ जाएगा क्योंकि वह धमकी दे चुके हैं कि वह सत्ता में आए तो इस समझौते को नकार देंगे। बहरहाल भारत क्वाड का इकलौता विकासशील साझेदार देश है। उसने क्वाड और आईपीईएफ के साथ स्पष्ट संकेत दिया है कि उसके भूराजनीतिक हित कहां होने चाहिए।