देश की राजधानी में कोविड-19 संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वहां रोजाना 5,000 से अधिक नए मामले आ रहे हैं जबकि अन्य बड़े शहरों मसलन मुंबई और कोलकाता में रोज आने वाले मामलों की तादाद 1,000 से कम रह गई है। बेंगलूरु में मध्य अक्टूबर के बाद से लगातार गिरावट ही आ रही है। फिलहाल वहां रोज करीब 2,000 मामले आ रहे हैं। तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश भी कमोबेश इसी स्तर पर हैं। बल्कि दिल्ली और मिजोरम ही दो ऐसे राज्य हैं जहां बीते दो सप्ताह में पिछले पखवाड़े की तुलना में अधिक नए मामले आए हैं। कोविड-19 के सर्वाधिक नए मामलों के मामले में केरल शीर्ष पर है। हालांकि बीते 14 दिनों में वहां भी मामले कम हुए हैं।
विभिन्न राज्यों में कोविड संक्रमण के मामलों में यह अंतर और आंकड़ों की असंगतता यही दिखाते हैं कि जांच को लेकर समान नीति नहीं अपनायी जा रही है। यह विभिन्न राज्यों के रिपोर्टिंग मानकों और चिकित्सा बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता के अंतर को भी दर्शाता है। मसलन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति 10 लाख आबादी पर रोजाना औसतन 844 जांच हो रही हैं। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 140 जांच प्रति 10 लाख रोजाना के मानक से बेहतर है। कुल मिलाकर 12 राज्यों में रोज इससे अधिक जांच हो रही है। केरल में रोज प्रति 10 लाख 3,258, दिल्ली में 3,225 और कर्नाटक में 1,550 जांच रोज हो रही हैं। अन्य नौ राज्य आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, हरियाणा और गोवा भी जांच के क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। गोवा के अलावा इनमें से कोई राज्य पॉजिटिव मामलों को लेकर शीर्ष पांच में शामिल नहीं है। जांच में यह तेजी विवादास्पद रैपिड ऐंटीजन जांच की वजह से आई है जिसकी सत्यता का प्रतिशत 50 से कम है। कर्नाटक उन कुछ राज्यों में से एक है जहां आरटी-पीसीआर जांच की दर ऐंटीजन जांच से अधिक है। कुछ ही ऐसे राज्य हैं जो लक्षणयुक्त लेकिन नकारात्मक ऐंटीजन नतीजों वाले मामलों में अधिक विश्वसनीय आरटी-पीसीआर जांच कराने को लेकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की अनुशंसा का पालन कर रहे हैं। ऐसे में संक्रमण की दिशा और उसके प्रसार को लेकर स्पष्टता नहीं है और कोविड-19 मामलों के सितंबर के उच्चतम स्तर से नीचे आने को लेकर कुछ खास आशावाद नहीं उत्पन्न होता। ऐसे में संक्रमण दर के अमेरिका से कम होने को लेकर बहुत आश्वस्त होने की आवश्यकता नहीं है।
भारत में कोविड संक्रमण से मरने वालों की तादाद दो फीसदी से भी कम है और वह दुनिया में सबसे धीमी मृत्यु दर वाले देशों में शामिल है। परंतु यहां भी तस्वीर स्पष्ट नहीं है। उदाहरण के लिए दिल्ली और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 6,356 और 6,640 मौतें हुई हैं जो कहीं अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की 6,940 मौतों से कुछ ही कम हैं। उत्तर प्रदेश के कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और वहां बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिकों के लौटने के कारण यह मृत्यु दर विश्वसनीय नहीं लगती। अधिकांश पिछड़े राज्यों में जहां अस्पताल में बिस्तर कम हैं वहां ऐसा ही देखने को मिल रहा है। बिहार और झारखंड भी आबादी के उच्च घनत्व वाले राज्य हैं, वहां भी बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिक लौट कर आए और स्वास्थ्य सेवाएं खस्ता हालत में हैं। लेकिन इन दोनों राज्यों में क्रमश: केवल 1,065 और 876 मौतें हुई हैं। कुल मिलाकर यही पता लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े जुटाने की कोई विश्वसनीय व्यवस्था नहीं है। यह कमी भविष्य में किसी महामारी के समय भारी पड़ सकती है। खासकर अगर वायरस कोविड-19 वायरस की तुलना में अधिक भीषण प्रभाव वाला हुआ।
