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अमेरिका में विविधता, समानता पर चोट

डॉनल्ड ट्रंप प्रगतिशील विचारों का ताना-बाना तोड़ने में सबसे आगे हैं और अमेरिकी कंपनियां वफादार सिपाही की तरह उनके पीछे चल रही हैं।

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कनिका दत्ता   
Last Updated- March 23, 2025 | 9:36 PM IST

डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी कंपनियों के सुर बदलते दो महीने भी नहीं लगे और वे खुद को प्रगतिशील सामाजिक एवं राजनीतिक सोच के खिलाफ दिखाने लगीं। वजह? वे ट्रंप प्रशासन में आने वाले कारोबारी मौके लपकने में वक्त बिल्कुल जाया नहीं करना चाहतीं।

सिलसिला दुनिया की सबसे बड़ी धन प्रबंधन कंपनी ब्लैकरॉक से शुरू हुआ। कंपनी जनवरी में नेट जीरो ऐसेट मैनेजर्स इनीशिएटिव (एनजैम) से निकल गई। पांच साल पहले शुरू हुए परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों के इस वैश्विक समूह का मकसद 2050 तक नेट जीरो ग्रीनहाउस उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के हिसाब से निवेश करना था। एनजैम संयुक्त राष्ट्र के ‘रेस टु जीरो’ अभियान का हिस्सा रह चुका है।

कहा जा रहा है कि ब्लैकरॉक रिपब्लिकन नेताओं के दबाव में एनजैम से निकली और तब से एनजैम का भविष्य अधर में आ गया है। संगठन ने अपने सदस्यों को एक चिट्ठी लिखी, जो रॉयटर्स ने भी देखी। चिट्ठी में उसने कहा कि वह अपनी गतिविधियों की समीक्षा करेगा और तब तक कुछ खास गतिविधियां रुकी रहेंगी। एनजैम अपना संकल्प और हस्ताक्षर करने वाली इकाइयों के नाम भी वेबसाइट से हटा देगा। समीक्षा के नतीजे आने तक लक्ष्य और संबंधित अध्ययन भी हटा दिए जाएंगे। सबसे गर्म साल गुजरने के बाद यह पर्यावरण के लिए निवेश को अलविदा कहना ही है।

इसमें हैरत नहीं होनी चाहिए। पश्चिमी देशों के निवेशक कुछ समय से सियासी हवा के साथ बह रहे हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए एक के बाद एक हुई बैठकों में समाधान खोजने के बजाय वे निजी पूंजी मुहैया कराने के अपने वादे और पर्यावरण अनुकूलन से कतराते दिखे हैं। ब्लैकरॉक का कदम अपवाद नहीं है। पिछले वर्ष फरवरी में जेपी मॉर्गन ऐसेट मैनेटमेंट, स्टेट स्ट्रीट ग्लोबल एडवाइजर्स और पिमको जैसी कंपनियां भी ऐसे ही एक अभियान ‘क्लाइमेट एक्शन 100 प्लस’ से बाहर हो गई थीं।

इनका अंदाजा पहले ही लग गया था। कुछ दिन पहले ही (7 मार्च) ट्रंप प्रशासन जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप से बाहर हो गया। यह विकासशील देशों को जीवाश्म ईंधन से हरित या स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने में मदद करने वाला कोष है। ट्रंप प्रशासन पेरिस जलवायु संधि से निकलने की घोषणा पहले ही कर चुका है।

डॉनल्ड ट्रंप प्रगतिशील विचारों का ताना-बाना तोड़ने में सबसे आगे हैं और अमेरिकी कंपनियां वफादार सिपाही की तरह उनके पीछे चल रही हैं। इसका सबसे बड़ा खमियाजा विविधता, समानता एवं समावेश (डीईआई) के प्रयासों को उठाना पड़ा। अमेरिका ने वंचित समुदायों को आगे लाने के लिए दशकों से जो काम किया था और जिनके कारण वह दुनिया का सबसे गतिशील देश बना था उस सब पर अब पानी फिर रहा है।
कई कंपनियों ने तो ट्रंप का कार्यकारी आदेश आने से पहले ही सामाजिक सरोकार से पांव खींचने शुरू कर दिए थे। फोर्ब्स ने बड़ी मशक्कत से यह सब पता लगाया है। इन कंपनियों ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से ही आने वाला समय भांप लिया था। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े मामले में अदालत ने कहा था कि कॉलेज में प्रवेश के लिए नस्ल का सीमित इस्तेमाल किया जाएगा।

पिछले साल जुलाई में कृषि उपकरण निर्माता कंपनी जॉन डियर ने कहा कि वह प्राइड परेड जैसे कार्यक्रमों का साथ नहीं देगी और अपने दस्तावेजों की जांच कर ‘सामाजिक रूप से प्रेरित संदेशों’ को हटाएगी। अगस्त में जैक डैनियल्स और फोर्ड मोटर कंपनी ने भी ऐसे ही कदम उठाए। नवंबर तक बोइंग, वॉलमार्ट, मैकडॉनल्ड्स, मेटा और एमेजॉन जैसी बड़ी कंपनियां भी इस पहल से पीछे हट चुकी थीं।

इधर ट्रंप अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बने और उधर विविधता के कार्यक्रम से हटने वाली कंपनियों की सूची बढ़ती गई। इसमें टारगेट, गूगल, एमट्रैक, एक्सेंचर, पेप्सी, जीएम, डिज्नी, जीई, इंटेल, पेपाल, कॉमकास्ट, डेलॉयट, गोल्डमैन सैक्स, कोका कोला, जेपी मॉर्गन चेज, मॉर्गन स्टैनली, सिटीग्रुप, ब्लैकरॉक, बैंक ऑफ अमेरिका और विक्टोरियाज सीक्रेट के नाम भी दिखने लगे।

दो बातें याद रखिए। पहली, डीईआई से जुड़े कार्यकारी आदेश पर बाल्टीमोर के एक संघीय न्यायाधीश ने अभिव्यक्ति की आजादी जैसे संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के कारण रोक लगा दी है। अब कंपनियां कानूनी रूप से इस पहल के साथ रह सकती हैं। फिर वे डीईआई से भागने की होड़ में क्यों हैं?

जवाब दूसरी बात में है। राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश केवल संघीय सरकार पर लागू होते हैं और उसके साथ कारोबार करने वाली कंपनियां ही इसके दायरे में आती हैं। कहने को तो 5 प्रतिशत से भी कम निजी कंपनियां अमेरिकी सरकार के साथ सौदे करती हैं मगर हकीकत में अमेरिका की ज्यादातर बड़ी और ताकतवर कंपनियों के संघीय सरकार के साथ बड़े करार हैं।

ये कंपनियां बदलते सियासी हालात के मुताबिक खुद को ढालने में माहिर हैं और राजनीतिक तथा सामाजिक रूप से बिखरी अमेरिकी जनता के बीच ऐसा करना जरूरी हो जाता है। उदाहरण के लिए 2013 में वॉल स्ट्रीट और अमेरिकी कंपनी जगत ने समलैंगिक विवाह के समर्थन में पूरी ताकत झोंक दी थी। जब उच्चतम न्यायालय ने 2015 में इस मामले में ऐतिहासिक निर्णय दिया तो दकियानूसी कहलाने वाली गोल्डमैन सैक्स ने भी अपने मुख्यालय में इंद्रधनुषी झंडा लहराया था।

मगर जिन कंपनियों का संघीय सरकार के साथ कोई लेना-देना नहीं है वे भी डीईआई के खिलाफ मुहिम में क्यों हैं? डिज्नी, विक्टोरियाज सीक्रेट (जिसके खिलाफ नस्लवाद एवं भेदभाव के आरोपों की जांच हो चुकी है), चिपॉटले, कोक और पेप्सी जैसी कंपनियां अपने डीईआई कार्यक्रम बंद क्यों कर रही हैं?

कई कंपनियों को डर सता रहा है कि डीईआई कार्यक्रम चलाने पर संघीय एजेंसियां उनके खिलाफ जांच या कार्रवाई शुरू कर सकती हैं। एक कार्यकारी आदेश ने इन डीईआई से जुड़े प्रयासों को ‘अवैध’ करार दिया है। अमेरिका में तीसरी दुनिया के देशों जैसी तानाशाही बढ़ रही है, जिसे देखते हुए कंपनियों का डर जायज लगता है। हालांक कई दावा कर रही हैं कि वे ट्रंप प्रशासन के आदेशों का प्रतिरोध कर रही हैं मगर इसके प्रमाण अब तक नहीं मिले हैं।

यह भी सच है कि डीईआई प्रावधान हाल में कमजोर हुए हैं कार्यकारी आदेश उनसे कन्नी काटने का रास्ता दे रहे हैं। कई कंपनियां तो इन्हें गैर-जरूरी मानती हैं। हालांकि अमेरिकी कंपनियों के निदेशक मंडल पहले की तुलना में ज्यादा विविधता वाले हैं मगर एसऐंडपी 500 कंपनियों में महिला निदेशक महज एक तिहाई हैं और बोर्ड में नस्ली एवं जातीय विविधता दिखनी बंद हो चुकी है।

अमेरिका में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में अफर्मेटिव ऐक्शन भारत जैसे देशों के लिए प्रेरणादायक एवं व्यवहार में उतारने वाले रहे हैं। भारत जैसे देशों में आरक्षण प्रणाली से जातिगत भेदभाव कम करने में अधिक मदद नहीं मिल पाई है। अब महीने भर के भीतर दुनिया के सबसे अधिक ताकतवर देश ने सामाजिक भेदभाव एवं उत्पीड़न जैसी हकीकत को दरकिनार करने के लिए ‘मेधा’ की धारणा को आगे बढ़ा दिया है।

First Published : March 23, 2025 | 9:36 PM IST