देहरादून के छोटे बल्ब उद्योग के लिए रोशनी की कोई किरण नजर नहीं दिख रही है। यह हालत तब है जब उत्तराखंड सरकार ने इस उद्योग को टैक्स में छूट देने का फैसला लिया है।
करीब 30 करोड़ रुपये का यह उद्योग इस वक्त आशंकाओं के भारी उथल-पुथल वाले दौर से गुजर रहा है। इससे जुड़ी लगभग 200 यूनिट की दुकाने बंद हो चुकी हैं और 10 बंद होने के कगार पर हैं। संगठित क्षेत्र की महज 30 से 40 लघु स्तर की यूनिट ही चल रही हैं। असंगठित क्षेत्र की कई यूनिट भी लगभग बंद होने वाली हैं।
कई बल्ब निर्माण यूनिट मालिकों ने तो अब इनकी जगह परस्कूल खोलने की बात भी सोच ली है। देहरादून इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रेसीडेंट पंकज गुप्ता का कहना है, ‘यह बड़े दुख की बात है कि कई लोगों को कर में छूट का फायदा नहीं मिल पाएगा। टॉप की चार छह यूनिटों को छोड़ दें तो ज्यादातर की स्थिति तो काफी खराब है।’
हालांकि कुछ बल्ब निर्माताओं ने कर छूटों का फायदा लेने और मुनाफा कमाने के लिए यूनिटों को ठोस विस्तार देने की कोशिश शुरू की है। आनंद इंडस्ट्री के मालिक राजीव बेरी का तीन करोड़ रुपये का कारोबार है, उन्होंने इंडोलाइट ब्रांड के टॉर्च बल्ब बनाना बंद कर दिया है। बेरी का कहना है कि, ‘टॉर्च बल्ब का एक बेहतर विकल्प टयूब है। यही वजह है कि हमने पिछले साल से रेलवे सिग्नल लैंप बनाना शुरू किया है।’
भारत में 1958 में पहली बार छोटे बल्ब की फैक्टरी देहरादून में ए. सी. जैन ने स्थापित की। इस फैक्टरी में सबसे पहले कॉमेट बल्ब बनाया जाता था। पहली कॉमेट बल्ब फैक्टरी 2006 में बंद हो गई। राजीव अग्रवाल फिलहाल इसकी दूसरी फैक्टरी चलाते हैं। उनका कहना है, ‘मेरे दादाजी (ए. सी. जैन) छोटे बल्ब इंडस्ट्री को स्थापित करने वालों में से थे।
अगर यह कहा जाए कि वह भारत में इस कारोबार को बढ़ाने वालों में से एक थे तो यह गलत नहीं होगा।’ राजीव अग्रवाल ने 1 करोड़ रुपये के निवेश के जरिए देहरादून में फैक्टरी को विस्तार देते हुए तीसरी यूनिट का निर्माण करा दिया है। बकौल अग्रवाल उत्तराखंड में उत्पाद शुल्क और दूसरे लाभ की वजह से मुनाफे की स्थिति बन रही है।हालांकि कर छूट जैसे लाभ मिलने के बावजूद इस इंडस्ट्री की समस्याएं जस की तस हैं।
पंकज गुप्ता का कहना है,’इस समय इस उद्योग के लिए बेहद कठिन परिस्थितियां है। इसी वजह यह है कि सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है। उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड के अलग होने से भी इस इंडस्ट्री को नुकसान हुआ।’ हालांकि अब भी उम्मीद की रोशनी कायम है।
बड़े ऑटो इंडस्ट्री मसलन टाटा मोटर्स, महिंद्रा, हीरो होंडा और बजाज ऑटो राज्य में अपनी दुकानें खोल रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बल्ब इंडस्ट्री उत्तराखंड की जरूरतों को पूरा करने में जरूर सक्षम होगी क्योंकि देहरादून ऑटो हब के रूप में तेजी से उभर रहा है।