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तकनीक का लगातार बढ़ता प्रभाव, भारत को सुरक्षित रखने की रणनीति पर जोर

भू-राजनीतिक मोर्चे पर तकनीक के बढ़ते प्रभाव के बीच सरकार को नए रणनीतिक उपायों से भारत के हित सुरक्षित रखने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। बता रहे हैं अजय कुमार

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Ajay Kumar   
Last Updated- June 26, 2024 | 9:08 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मई 2014 में सत्ता संभालने के बाद अगले ही महीने जून में एक महत्त्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को अगले पांच वर्षों के लिए अपनी कार्य योजना प्रस्तुत करने के लिए कहा गया। यह कार्य योजना बाद में ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के नाम से जानी गई। मंत्रालय ने अपनी प्रस्तुति में विभिन्न उपायों का जिक्र किया। इस कार्य योजना में जनधन, आधार और मोबाइल (जैम), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) और इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ावा दिए जाने सहित कई अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू शामिल किए गए।

प्रस्तुतीकरण के अंत में इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर होने वाले अनुमानित खर्च का भी ब्योरा दिया गया। यह रकम कोई छोटी-मोटी नहीं थी, इसे सुनकर बैठक कक्ष में सभी के चेहरे गंभीर हो गए। परंतु, प्रधानमंत्री मोदी ने ध्यान से प्रस्तुतीकरण देखा और उसके बाद कहा कि तकनीक में निवेश स्वाभाविक रूप से काफी फायदेमंद है।

मोदी ने कहा कि तकनीक में निवेश से प्राप्त होने वाले लाभ बाद में खर्च की भरपाई कर देंगे। बैठक में प्रधानमंत्री तकनीक की अपार संभावनाओं को गंभीरता से लेने वाले एकमात्र व्यक्ति नजर आ रहे थे। बैठक कक्ष में उपस्थित कई लोग और मोदी के पूर्ववर्ती इस ताकत को गंभीरता से नहीं समझ पाए थे।

इतिहास साक्षी है कि तकनीकी प्रगति ने मानव अस्तित्व को नई दिशा दी है। तकनीक के अनोखे रुझान भी मिले हैं जो चार आयामों पर इसके बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। इन चार आयामों में सामाजिक प्रगति एवं विकास, सैन्य शक्ति, आर्थिक ताकत और भू-राजनीतिक मोर्चे पर दबदबा शामिल हैं। शुरुआत में तकनीक के क्षेत्र में हुई प्रगति से मुख्य रूप से विकास को बढ़ावा मिला जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया।

उदाहरण के लिए आग की खोज, कृषि का उद्भव और चक्के की खोज से मनुष्य के जीवन में बड़े बदलाव आए। इन बड़े बदलावों से मानव सभ्यता का तेजी से उदय हुआ और कालांतर में एक सामाजिक व्यवस्था के लिए आवश्यक सभी चीजों की पूर्ति धीरे-धीरे होने लगी। जैसे-जैसे मानव समाज का विकास हुआ और राष्ट्र-राज्य (नेशन-स्टेट) का उदय हुआ वैसे ही तकनीक की भूमिका बढ़ती चली गई।

अब तकनीक सैन्य शक्ति बढ़ाने का भी माध्यम हो गया है क्योंकि इसकी मदद से आधुनिक एवं अधिक प्रभावी हथियार एवं उपकरण काफी कम समय में तैयार किए जा सकते हैं। जिन देशों के पास आधुनिक साधन एवं हथियार होते हैं वे तुलनात्मक रूप से अधिक मजबूत हो जाते हैं। हथियारों एवं बख्तरबंद साजो-सामान एवं गाड़ियों में धातु के इस्तेमाल से युद्ध कौशल पूरी तरह बदल गया है जिससे समकालीन सेनाएं अधिक शक्तिशाली हो गई हैं।

औद्योगिक क्रांति के दौरान तकनीकी क्षेत्र में प्रगति ने सैन्य क्षमताओं में इजाफा कर दिया जिसके बाद दुनिया में शक्ति संतुलन काफी बदल गया है। उपनिवेशवाद और 20वीं शताब्दी में विश्व युद्धों से सैन्य क्षमता बढ़ाने में तकनीक की महत्त्वपूर्ण भूमिका और अधिक स्पष्ट हो गई। उच्च तकनीकों जैसे टैंक, हवाई जहाज और परमाणु हथियारों से लैस देशों की ताकत दुनिया में चरम पर पहुंच गई।

विकासात्मक एवं सैन्य आयामों के साथ तकनीकी प्रगति आर्थिक मजबूती का एक प्रमुख आधार हो गई है। यह रुझान भौतिक परिसंपत्तियों की तुलना में बौद्धिक संपदा (आईपी) के बढ़ते महत्त्व से औपचारिक रूप लेता गया। डिजिटल तकनीक के उदय से यह प्रक्रिया और तेज हुई और सूचना के इस युग में लाखों करोड़ डॉलर हैसियत वाली कंपनियों का उदय हो गया।

इन कंपनियों की भौतिक परिसंपत्तियां उनके आर्थिक मूल्य का केवल एक छोटा हिस्सा भर हैं। तकनीक में दक्षता हासिल करने के बाद इन कंपनियों की आईपी परिसंपत्तियां कई देशों की भौतिक परिसंपत्तियों से अधिक हो गई हैं और इस तरह, आर्थिक विकास की प्रमुख धुरी बन गई हैं।

समकालीन वैश्विक व्यवस्था में तकनीकी विकास को बढ़ावा देने की अपनी शुरुआती भूमिका से आगे निकल गई है और अब यह सैन्य क्षमता बढ़ाने में योगदान देने के साथ ही आर्थिक ताकत भी बढ़ा रही है। समकालीन विश्व में तकनीक का भू-राजनीति में भी दखल हो गया है जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं वैश्विक शक्ति संतुलन को नई दिशा दे रहा है। तकनीकी क्षेत्र में अधिक तरक्की कर चुके देश अपनी इस मजबूती का फायदा उठाकर अपने रणनीतिक हित आगे बढ़ा रहे हैं।

भू-राजनीतिक स्तर पर फायदे में रहने के लिए व्यापार पाबंदी और निर्यात नियंत्रण जैसे उपाय अमल में लाए जा रहे हैं। यहां भी तकनीक की भूमिका बढ़ती जा रही है। महत्त्वपूर्ण तकनीकों की उपलब्धता मुश्किल बना कर कोई देश अपने प्रतिद्वंद्वी देशों की प्रगति रोक सकता है। उदाहरण के लिए अमेरिका ने आधुनिक सेमीकंडक्टर एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की बिक्री चीन को रोक दी है। अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े और आर्थिक मोर्चों पर चीन की पर अंकुश लगाने के लिए यह कदम उठाया है।

इसके जवाब में चीन ने दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। ये तत्व इलेक्ट्रॉनिक्स, अंतरिक्ष और परमाणु तकनीक के लिए आवश्यक होते हैं। दुर्लभ मृदा तत्त्वों के उत्पादन में चीन का अग्रणी होना उसे भू-राजनीति में अपना वर्चस्व बढ़ाने में मदद कर रहा है। इसका उदाहरण भी है जब उसने 2010 में एक क्षेत्रीय विवाद में इन तत्त्वों का निर्यात रोक दिया था।

कोविड महामारी के दौरान तकनीकी क्षेत्र में मजबूती का इस्तेमाल ‘टीका कूटनीति’ (वैक्सीन डिप्लोमेसी) के किया गया। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मानक तय करने वाली संस्थाओं पर विशेष प्रभाव रखने वाले देश तेजी से उभरती तकनीक पर पकड़ मजबूत कर वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धियों को किनारे कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली द्विपक्षीय या बहुपक्षीय बातचीत में तकनीक केंद्रीय भूमिका में रहती है। साइबर सिक्योरिटी, एआई, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहन, गहरे समुद्र में खोज, अंतरिक्ष तकनीक और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे तकनीकी मुद्दे अंतरराष्ट्रीय चर्चा एवं बातचीत का प्रमुख हिस्सा हो चुके हैं।

भू-राजनीति में प्रभावशाली भूमिका क्यों इतनी महत्त्वपूर्ण हो जाती है? असल में यह कई मोर्चों पर किसी देश की ताकत बढ़ा देता है। जब कोई देश उच्च तकनीक की पेशकश कर व्यापार समझौते में रियायत मांगता है तो इस प्रक्रिया में उसे दो तरीके से लाभ मिलता है। उसे तकनीक बेचने पर आर्थिक रूप से लाभ होता है और व्यापार में रियायत से जो लाभ मिलता है वह अलग। इसी तरह, अत्याधुनिक सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने से एक मजबूत रणनीतिक गठबंधन तैयार करने में मदद मिलती है। इससे सैन्य ताकत बढ़ने के साथ कुछ आर्थिक फायदे भी मिलते हैं।

हालांकि, तकनीक का प्रभाव इन चार आयामों पर क्रमबद्ध या समान रूप से नहीं दिखा है मगर इसमें कोई शक नहीं कि यह (प्रभाव) लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में तकनीक का इस्तेमाल कर दुनिया के शक्तिशाली देश भू-राजनीतिक स्तर पर अपने हित आगे बढ़ा रहे हैं।

कुल मिलाकर, तकनीक का प्रभाव व्यापक हो गया है और मानव अस्तित्व पर भी इसका असर बढ़ा है। इतना ही नहीं, इतिहास से कई स्पष्ट संकेत मिले हैं कि तकनीक का अपना प्रभाव लगातार बढ़ता रहेगा और यह न केवल ज्ञात चीजों या क्षेत्रों पर दिखेगा बल्कि कई अदृश्य रूपों में इसके असर दिखेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत कर चुके हैं और अब नीतिगत पहल के जरिये भारत को तकनीक के मोर्चे पर अग्रणी बनाने को लेकर उनका दृष्टिकोण बहुत महत्त्वपूर्ण होगा। केंद्र में गठबंधन सरकार के मुखिया होने के नाते उन्हें भारत के तकनीकी विकास की राह पर सभी सहयोगियों को साथ रखकर चलना होगा।

(लेखक आईआईटी कानपुर में अतिथि प्राध्यापक और पूर्व रक्षा सचिव हैं)

First Published : June 26, 2024 | 9:08 PM IST