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शेयर पुनर्खरीद में कर पर हो फिर विचार

सेबी ने 1998 में शेयरों की पुनर्खरीद के नियम जारी किए और कंपनियों को खुले बाजार से शेयर वापसी के जरिये अपने शेयर दोबारा खरीदने की अनुमति मिल गई।

Last Updated- April 02, 2025 | 10:08 PM IST
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दुनिया भर में कंपनियां अपने शेयरधारकों को पूंजी लौटाने, बहीखाते दुरुस्त रखने और बेहतरीन माली हालत का संकेत देने के लिए शेयर पुनर्खरीद का रास्ता खूब पकड़ती हैं। ऐपल ने पिछले पांच साल में 430 अरब डॉलर के शेयर वापस खरीदे हैं, जिससे इसका शेयर चढ़ा है। मगर भारत में शेयर पुनर्खरीद को दुधारू गाय माना जाता है और दूसरी आर्थिक गतिविधियों की तरह इस पर भी कर लगाकर ज्यादा से ज्यादा रकम कमा लेना ही सरकार का मकसद रहता है। इस वजह से कंपनियां पुनर्खरीद से दूर रहती हैं और नुकसान शेयरधारकों का होता है। लुढ़कते बाजार में यह साफ दिख रहा है, जब नकदी के ढेर पर बैठी कंपनियों के शेयर धड़ाम हो गए मगर उनमें से एक ने भी पुनर्खरीद का दांव नहीं खेला। आखिर ऐसा क्या किया जाए कि कंपनियां शेयर पुनर्खरीद करें और शेयरधारकों को उसका फायदा मिले?

शेयर पुनर्खरीद की कानूनी और नियामकीय व्यवस्था मुख्य रूप से 2013 के कंपनी अधिनियम और 1998 में आए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के प्रतिभूति पुनर्खरीद नियम में दी गई है, जिसे 2018 और 2023 में संशोधित किया गया। इससे पहले 1956 में आए कंपनी कानून में कंपनियों को अपने ही शेयर खरीदने की इजाजत नहीं थी क्योंकि तब इसे कंपनी की रकम का गलत इस्तेमाल माना जाता था और कहा जाता था कि इससे ऋणदाताओं या अल्पांश शेयरधारकों को नुकसान पहुंच सकता है। मगर दुनिया और खास तौर पर अमेरिका में इसका चलन बढ़ता गया। फिर अंतरराष्ट्रीय चलन अपनाने और कंपनियों को ज्यादा वित्तीय गुंजाइश देने के लिए भारत को भी अपने रुख पर दोबारा विचार करना पड़ा।

सेबी ने 1998 में शेयरों की पुनर्खरीद के नियम जारी किए और कंपनियों को खुले बाजार से शेयर वापसी के जरिये अपने शेयर दोबारा खरीदने की अनुमति मिल गई। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 1999 में शेयरधारकों से अपने शेयर खरीदे मगर लंबे-चौड़े नियमों, धीमी आर्थिक वृद्धि और कंपनियों के पास कम नकदी के कारण यह चलन ज्यादा नहीं बढ़ा। 2000 के दशक में जब अर्थव्यवस्था बेहतर होने लगी तो कुछ और कंपनियों ने अपने शेयर खरीदे, जिनमें खुले बाजार से रिलायंस इंडस्ट्रीज की 3,000 करोड़ रुपये की पुनर्खरीद भी शामिल थी।

2010 के दशक में शेयर पुनर्खरीद का चलन बढ़ गया, जिसके पीछे आर्थिक वृद्धि, कर प्रोत्साहन और शेयर बाजार में बढ़ती गतिविधियों जैसे कई कारण थे। 2013 के कंपनी कानून ने 1956 में तैयार अधिनियम की जगह ले ली और धारा 68 के अंतर्गत कंपनियों को किसी वित्त वर्ष में अपनी चुकता पूंजी और मुक्त नकदी के 25 प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल शेयर पुनर्खरीद में करने की इजाजत मिल गई। इससे शेयर पुनर्खरीद ने जोर पकड़ा। पुनर्खरीद को लाभांश का बेहतर विकल्प भी माना गया क्योंकि इनमें कर की बचत थी। लाभांश पर 2016 तक लाभांश वितरण कर (डीडीटी) लगता था। अधिभार और उपकर मिलाकर 15-20 डीडीटी कंपनियों को चुकाना पड़ता था। शेयर पुनर्खरीद पर कम कर लगता था, जिससे वह लोकप्रिय होती गई। 2016 के वित्त अधिनियम में 10 लाख रुपये से अधिक लाभांश आय होने पर निवेशक से 10 प्रतिशत अतिरिक्त कर वसूलने का प्रावधान किया गया, जिससे शेयर पुनर्खरीद को और भी पंख लग गए।

2016-17 में 40 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों ने 30,000 करोड़ रुपये के शेयरों की पुनर्खरीद का ऐलान किया। उससे पहले किसी भी वित्त वर्ष में पुनर्खरीद पर इतनी रकम खर्च नहीं की गई थी। उनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज भी शामिल थी, जिसने 2012 और 2013 के बीच 10,440 करोड़ रुपये की शेयर पुनर्खरीद की घोषणा की थी मगर केवल 3,900 करोड़ रुपये (38 प्रतिशत लक्ष्य) के शेयर ही खरीद पाई थी। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने 2017 में 16,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदने की घोषणा की, जो शेयर वापसी के जरिये होने वाली तब तक की सबसे बड़ी पुनर्खरीद थी। बाद के सालों में भी टीसीएस ने शेयरधारकों को मुक्त नकदी का 80-100 प्रतिशत हिस्सा लौटाने के लिए बड़ी-बड़ी पुनर्खरीद कीं। इन्फोसिस ने भी 2017 में 13,000 करोड़ रुपये के शेयरों की पुनर्खरीद की घोषणा की।

भारतीय पूंजी बाजार के इतिहास में 2017 पहला साल रहा, जब शेयर पुनर्खरीद के प्रस्ताव आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) से ज्यादा रहे। 2019 की पहली छमाही में लगभग 70 कंपनियों ने शेयरधारकों से पुनर्खरीद की। इससे पहले किसी छमाही में इतनी अधिक कंपनियों ने पुनर्खरीद नहीं की थी। कंपनियों को 2019 के बजट के मुताबिक 20 प्रतिशत कर लगने से पहले ही शेयर वापस खरीद लेने की जल्दी थी। उससे पहले 2018 में केवल 63 कंपनियों ने शेयर पुनर्खरीद की थी। जैसा सोचा गया था वैसा ही हुआ और 2019 के संशोधन के बाद पुनर्खरीद प्रस्तावों की संख्या घटते हुए 2023 में केवल 48 रह गई।

इसके बाद 2024 में फिर कर संशोधन हुए और शेयर पुनर्खरीद पर आयकर दरों के मुताबिक लाभांश कर लगने लगा। पहले उन पर 23.3 प्रतिशत पूंजीगत लाभ कर वसूला जाता था। धनाढ्य निवेशक एवं संस्थागत निवेशकों पर अब अधिक कर (उच्चतम श्रेणियों के लिए 37 प्रतिशत तक) लग रहा है। इसकी तुलना अमेरिका से करें तो वहां पुनर्खरीद पर केवल 1 प्रतिशत कर लगता है,जो 2022 के महंगाई कटौती कानून के तहत शुरू हुआ है। एक्सचेंज के जरिये खुले बाजार से पुनर्खरीद पर 1 अप्रैल से रोक लग गई है, जिससे कंपनियों के पास विकल्प घट गए हैं। अगर सरकार ने सोचा कि इससे कंपनियों को पुनर्खरीद कर से मुक्ति मिल जाएगी और उसका बोझ शेयरधारकों पर चला जाएगा तो इसमें दूर की सोच नहीं थी। शेयर पुनर्खरीद पर कर स्वैच्छिक नहीं है मगर उसमें हिस्सा लेना या न लेना अपनी मर्जी पर है। शेयरधारक आय के इस स्रोत पर भारी कर लगने से शायद ही खुश होंगे।

शेयर पुनर्खरीद से कंपनियां शेयरधारकों को उनके निवेश पर फायदा दे पाती हैं, भरोसा दिखा पाती हैं और अपनी पूंजी को बेहतर रूप दे पाती हैं। नकदी से लबरेज सॉफ्टवेयर और सार्वजनिक कंपनियों ने निवेश के सही मौके नहीं होने पर उस भंडार का इस्तेमाल पुनर्खरीद में किया है। पुनर्खरीद अगर उस मुनाफे से की गई है, जिस पर पहले ही कर वसूला जा चुका है तो उसे छोड़ देना चाहिए। मगर लोलुप और नकदी की किल्लत से जूझ रही सरकारें पुनर्खरीद को कर निचोड़ने का जरिया मानती हैं। लुढ़कते बाजार में इस पर फिर विचार की जरूरत है। अगर सरकार किसी भी आयकर श्रेणी के व्यक्ति से पुनर्खरीद पर केवल 10 प्रतिशत कर लेती है तो नकदी से भरी सैकड़ों भारतीय कंपनियां इसका फायदा उठाएंगी और सरकार को ज्यादा कर भी मिल जाएगा। कम और एकसमान कर की नीति बाजार को बिना किसी खर्च के चढ़ा देगी और लाखों शेयरधारकों को खुशी देगी। अत्यधिक कर लगाने वाली सरकार इन तरीकों से समावेशी सरकार बन सकती है। क्या ऐसा होगा?

(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट कॉम के संपादक एवं मनीलाइफ फाउंडेशन के न्यासी हैं)

First Published - April 2, 2025 | 10:05 PM IST

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