खाद्य फसलों से बायो-फ्यूल बनाए जाने की वजह से दुनिया भर में खाने के सामान की किल्लत पैदा हुई है।
ग्लोबल लेवल पर खाद्य पदार्थों की कीमतों के परवाज भरने की यह भी एक बड़ी वजह है। ऐसे समय में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग (आईईए) ने एक ऐसी वकालत की है, जिससे दुनिया भर के जानकार हैरत में हैं।
आयोग ने ऑटो बायो-फ्यूल के उत्पादन में बढ़ोतरी पर जोर दिया है। खबरों के मुताबिक, आयोग ने कहा है कि परिवहन के लिए इस्तेमाल होने वाले ईंधन की मौजूदा और भविष्य संबंधी मांग पूरी किए जाने की जरूरतों के मद्देनजर खाद्य फसलों से तैयार किए जाने वाले ईंधन का उत्पादन बढ़ाया जाना आवश्यक है, चाहे इसकी वजह से खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा ही क्यों न दर्ज किया जाए।
आयोग के इस बयान ने आग में घी का काम किया है। जबकि इस बात पर पहले से ही बहस काफी तेज है कि बायोफ्यूल और एनर्जी मार्केट तथा पर्यावरण परिवर्तन और खाद्य पदार्थों की कीमतों के बीच आपसी ताल्लुक है। दिलचस्प यह है कि संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संस्था (एफएओ) ने दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण परिवर्तन की चुनौतियों और बायो-एनर्जी के मुद्दों पर विचार के लिए आगामी 3 से 5 मई के बीच रोम में एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई है।
आगामी जुलाई में होने वाली अपनी शिखर बैठक में जी-8 के देश भी इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।ग्रीन एनर्जी के पैरोकार जबर्दस्त तर्क दे रहे हैं कि कच्चे तेल की कीमतें काफी ऊपर जा चुकी हैं और आने वाले दिनों में यह और ऊपर जाएगी। दूसरी ओर, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह कह रहे हैं कि खाद्य फसलों से तैयार होने वाले ईंधन को ऑटो-फ्यूल का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।
तमाम चीजों के बीच इस बात के भी पुख्ता प्रमाण हैं कि ऑटो फ्यूल की कुल जरूरत के महज एक छोटे हिस्से की भरपाई ही बायो-फ्यूल के जरिये की जा सकती है। यदि यह सही है तो यह सवाल उठाया जाना लाजमी है कि क्या पेट्रोलियम की खपत को कम करने के लिए खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाला जाना जरूरी है? खासकर तब जब दुनिया भर के 85 करोड़ लोग कायदे से दो जून की रोटी तक हासिल नहीं कर पाते।
पिछले साल जुलाई में एफएओ और ओईसीडी ने अपनी संयुक्त रिपोर्ट में कहा था कि आगामी 10 वर्षों में उन खाद्य पदार्थों की कीमतें 20 से लेकर 50 फीसदी के बीच बढ़ सकती हैं, जिनकी फसल का इस्तेमाल बायो-फ्यूल बनाए जाने में होता है। ऐसा लगता है कि यह भविष्यवाणी वक्त से पहले ही सच साबित होने लगी है।
लिहाजा कृषि कचरे और खाद्य प्रसंस्करण के बाद पैदा होने वाले अवशिष्ट पदार्थों के इस्तेमाल से ही बायो-फ्यूल का उत्पादन किया जाना दूरदर्शी और समझदारी भरा फैसला साबित हो सकता है।