इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती
विदेशी दुष्प्रचार पर नजर रखने वाले अमेरिकी विदेश विभाग के ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की वैश्विक कथानकों को प्रभावित करने की क्षमता वैश्विक स्तर पर चीन के बढ़ते कद के साथ सुसंगत प्रतीत होती है।
आख्यानों को आकार देने के मामले में कम्युनिस्ट पार्टियों की प्रवृत्ति को लगभग सभी स्वीकार करते हैं। बहरहाल चीन के मामले में तंग श्याओ फिंग के उस स्थापित सिद्धांत से अलगाव नजर आता है जिसके तहत लो प्रोफाइल (कम चर्चा और दिखावा) में यकीन किया जाता था। शी चिनफिंग के इस दौर में चीजों को हासिल करने पर जोर दिया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हाल के दिनों में सीपीसी के दुष्प्रचार टूलकिट पर अधिक ध्यान भी दिया जाता है।
दूसरा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में चीन के उभार ने उसे इस काबिल बनाया है कि वह अपनी संपदा को ताकत और प्रभाव में तब्दील कर सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीसी ने अपनी नकदी का इस्तेमाल क्षेत्रीय और समुद्री विवादों, आर्थिक संबद्धता और मानवाधिकारों के आख्यान को आकार देने में भी किया है। इसके साथ ही वह अपने प्रतिद्वंद्वियों की बातों को दबाता भी रहा है।
लोग सूचनाओं के लिए मुख्य रूप से समाचार माध्यमों पर निर्भर रहते हैं। बहरहाल चीन के मामले में यह दिलोदिमाग की लड़ाई में प्रमुख माध्यम है। पूर्वी अफ्रीका में चीन की सरकार ने एक समाचार पत्र को पैसे दिए ताकि वह उसके अनुकूल खबरें प्रकाशित करे। इन खबरों को स्वतंत्र रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किया गया। इस वर्ष के आरंभ में जब होंडुरास ने राजनयिक मान्यता को ताइवान से बदलकर चीन कर दिया तो चीनी सरकारी प्रतिष्ठानों ने तत्काल वहां अपने ब्यूरो खोल दिए और होंडुरास के सरकारी मीडिया के साथ सामग्री साझा करने का समझौता कर लिया। क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की आड़ में स्थानीय पत्रकारों को अमेरिका को चीन के चश्मे से देखने के लिए तैयार किया जाएगा।
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हमने पड़ोस की बात करें तो चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के तहत दुष्प्रचार से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इस प्रस्ताव में चीन-पाकिस्तान द्वारा मिलकर थिंकटैंक, मीडिया संस्थानों, कन्फ्यूशियस केंद्रों और स्थानीय चीनी कंपनियों की रिपोर्ट पर निगरानी करने की कल्पना शामिल है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि पाकिस्तान के साथ चीन के गहराते आर्थिक रिश्तों का बलूचिस्तान जैसे इलाकों में विरोध हुआ है। यही वजह है कि पाकिस्तान में पदस्थ चीनी नागरिकों पर हमले हुए हैं। इस संयुक्त व्यवस्था के तहत चीन का लक्ष्य पाकिस्तान में सूचना व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ करने का था ताकि अपने हितों का बचाव कर सके।
जब चीन की सरकार चौथे खंभे को अपने हितों के मुताबिक इस्तेमाल करने में विफल रहती है तब अन्य संस्थान उसकी मदद के लिए आगे आते हैं। चीन के सरकारी उपक्रमों और निजी कंपनियों ने भी आलोचकों को दबाने के लिए कानूनी रास्ता चुना। चीन की एक कंपनी ने ताइवान के एक लेखक के खिलाफ मुकदमा कर दिया और मांग की कि वह एक आलेख वापस ले या फिर उसकी दी हुई जानकारी के मुताबिक उसमें संशोधन करे।
दूरसंचार क्षेत्र की अग्रणी कंपनी हुआवे ने फ्रांस के एक शोधकर्ता के खिलाफ केवल इसलिए अवमानना का मामला दायर कर दिया क्योंकि उसने दावा किया था कि कंपनी का चीन की सरकार से रिश्ता है। अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के उपक्रम उन कानूनी क्षेत्रों का इस्तेमाल करते हैं जहां न्यायाधीशों द्वारा भारी भरकम जुर्माना आदि लगाने की संभावना होती है। वह ऐसा इसलिए करते हैं ताकि प्रतिवादी के वित्तीय संसाधनों को आघात पहुंचाया जा सके।
कहा जाता है कि राजनयिकों को देश की बेहतरी के लिए विदेश भेजा जाता है। परंतु चाइनाज सिविलियन आर्मी नामक अपनी पुस्तक में पीटर मार्टिन कहते हैं कि चीन के नेता चाऊ एनलाई ने अपने राजदूतों को इस तरह तैयार कि मानो वे नागरिक वेशभूषा में चीनी सेना के लोग हों।
शी के दौर में चीन की कूटनीति बहुत अधिक आक्रामक हो गई है। उदाहरण के लिए चीन के दूतावास ने भारतीय मीडिया को चेतावनी दी कि वह ताइवान का उल्लेख एक देश के रूप में न करें। ऐसे में अमेरिकी रिपोर्ट एक ऐसी घटना का हवाला देती है जहां चीन के कूटनयिकों ने जर्मनी में विश्वविद्यालयों पर दबाव डाला कि वे शी के बारे में एक पुस्तक पर चर्चा बंद करें।
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सोशल मीडिया मंचों पर उसकी कूटनीतिक सेना की मौजूदगी बढ़ रही है। बोट नेटवर्क उनमें कई गुना इजाफा करते हैं। वे चीन समर्थक अहम पोस्ट को बढ़ावा देते हैं। 2022 के शीतकालीन ओलिंपिक खेलों में उसने शिनच्यांग पर केंद्रित संवेदनशील हैशटैग को दबाने का काम किया था। चीन की तकनीक भी आख्यानों की इस लड़ाई में सहयोग कर रही है। चीन में बने फोनों में ‘ताइवान की स्वतंत्रता’, ‘आज़ाद तिब्बत’ और ‘लोकतंत्र’ जैसे शब्दों को रोक दिया जाता है।
लब्बोलुआब यह है कि शुरुआत से ही सीपीसी देश और विदेश में अपनी वैधता मजबूत करती आई है। शुरुआत में वैचारिक प्रतिबद्धता वाले तथा सहानुभूति रखने वालों के माध्यम से ऐसा किया गया। शी के सत्ता में आने के बाद सीपीसी के भीतर भी इस बात पर जोर बढ़ गया कि चीन के आख्यान को वैश्विक गाथा बनाया जाए।
इस लक्ष्य की तलाश में चीन तकनीक और आर्थिक क्षमताओं का इस्तेमाल कर रहा है और कूटनीतिक दस्ता इसमें उनकी मदद कर रहा है। 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत ने चीन द्वारा अपने प्रभाव के लिए इस्तेमाल किए जाने उपकरणों पर व्यवस्थित रूप से रोक लगाई। भारतीय विश्वविद्यालयों और चीन के बीच कन्फ्यूशियस केंद्रों तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए जो समझौते हुए थे उनकी समीक्षा की गई। भारत ने टिकटॉक समेत कई चीनी ऐपों पर प्रतिबंध लगाया।
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन निरंतर चुनाव नतीजों में छेड़छाड़ की तकनीक को मजबूत कर रहा है। उसके तरीकों में राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और सामाजिक समूहों के बारे में दुष्प्रचार शामिल है। बड़ा सवाल यह है कि एक ओर जहां भारत चीनी प्रभाव को लेकर विवादों से दो चार है, क्या चीनी समाचार एजेंसियों और भारतीय मीडिया को सामग्री साझा करने के समझौते करने चाहिए?
रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे चीन के प्रचार को विस्तार की जगह मिलती है। चीन की चुनौती के प्रबंधन के क्रम में मीडिया को भी अपनी प्राथमिकताओं का नए सिरे से आकलन करना होगा।
(लेखक नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली से संबद्ध हैं)