मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद हुई घोषणाएं अनुमानों के अनुरूप ही रहीं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दरों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और रीपो रेट दर 6.5 प्रतिशत के स्तर पर स्थिर रही।
आरबीआई ने अपने रुख में भी कोई बदलाव नहीं किया है यानी उसके अनुसार मई 2022 से फरवरी 2023 के दरम्यान नीतिगत दर में 250 आधार अंक की बढ़ोतरी के माध्यम से वित्तीय प्रोत्साहन वापस लेने का कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है।
एमपीसी की बैठक में दो निर्णय लिए गए। पहला निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया, जबकि दूसरे निर्णय पर एमपीसी के छह सदस्यों में पांच ने पक्ष में और एक ने विरोध में मत प्रकट किया। वित्त वर्ष 2023 के लिए मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया गया है। एमपीसी की बैठक में लिए गए सभी निर्णय और जो नहीं लिए गए वे भी आशाओं के अनुरूप ही रहे। मगर एक निर्णय ऐसा जरूर रहा जिसने बॉन्ड बाजार में खलबली मचा दी है।
आरबीआई ने नकदी प्रबंधन के लिए खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) के माध्यम से सरकारी बॉन्ड बेचने की घोषणा की है। इसका समय और मात्रा का निर्धारण नकदी की स्थिति को देखते हुए किया जाएगा। सितंबर में आरबीआई के कुछ एक हजार करोड़ रुपये के बॉन्ड की बिक्री की थी मगर यह द्वितीयक बाजार में स्क्रीन बेस्ड ट्रेडिंग के माध्यम से हुई थी। ओएमओ बिक्री नीलामी के जरिये होगी।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में कहा है, ‘परिस्थितियां थोड़ी पेचीदा है और इन्हें देखते हुए हम सावधानी से निर्णय लेंगे।‘ कुल मिलाकर बॉन्ड की बिक्री बाजार के लिए एक पहेली है।’
ओएमओ प्रणाली नकदी आरक्षी अनुपात (सीआरआर) से थोड़ी अलग होती है। ओएमओ भी नकदी प्रबंधन का एक माध्यम है मगर इसका प्रभाव दो स्तरों पर दिखता है। सबसे पहले तो ओएमओ वित्तीय प्रणाली से नकदी खींचता है और दूसरी तरफ बाजार में बॉन्ड की आपूर्ति बढ़ जाती है क्योंकि आरबीआई बैंकों को इनकी बिक्री करता है। इसका परिणाम यह होता है कि सैद्धांतिक रूप में बॉन्ड पर प्रतिफल में बदलाव आने लगता है।
यही कारण है कि मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद इस घोषणा से 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड पर प्रतिफल 12 आधार अंक उछलकर 7.23 प्रतिशत से 7.35 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया। बॉन्ड प्रतिफल और कीमतें एक दूसरे की विपरीत होते हैं। संवाददाता सम्मेलन में दास ने एक तीर से एक शिकार करने की बात कही। मगर वास्तव में आरबीआई किसी को नाराज किए बिना एक ही उपाय से कई चीजें साधना चाहता है।
ओएमओ के इस्तेमाल से सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ जाएगा जिससे अमेरिकी और भारतीय बॉन्ड पर प्रतिफल के बीच अंतर अधिक हो जाएगा। प्रायः देखा गया है कि अमेरिका में बॉन्ड पर प्रतिफल अधिक होने से भारत में आने वाली रकम का प्रवाह थम जाता है, क्योंकि निवेशकों की नजर में अमेरिकी बॉन्ड में निवेश करना अधिक फायदेमंद हो जाता है। विदेशी रकम की आमद कम होने से रुपया कमजोर होने लगता है। पिछले कुछ सप्ताहों से यही हो रहा है।
आरबीआई ओएमओ के माध्यम से बॉन्ड की बिक्री कर विदेशी निवेश में कमी और रुपये में कमजोरी दोनों समस्याओं को दूर करना चाहता है और अपने इस प्रयास में यह अधिक आक्रामक भी नहीं दिखना चाहता है।
इस मौद्रिक नीति समीक्षा का मुख्य ध्यान नकदी प्रबंधन पर रहा है। बैंकिंग प्रणाली में 2,000 रुपये के नोट वापस आने के बाद नकदी की उपलब्धता बढ़ गई है। आरबीआई अधिशेष नकदी हटाने के लिए वेरिएबल रिवर्स रीपो रेट ऑक्शन और विदेशी मुद्राओं की अदला-बदली (करेंसी स्वैप) का सहारा लेता रहा है।
बैंकों को शुद्ध मांग एवं समय देयता (नेट डिमांड ऐंड टाइम लायबिलिटी) में बढ़ोतरी का 10 प्रतिशत तक अतिरिक्त सीआरआर रखने का निर्देश देकर आरबीआई ने 1.1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम भी वित्तीय प्रणाली से वापस ली है। आरबीआई ने अगस्त में मौद्रिक नीति समीक्षा में इस अस्थायी प्रावधान की घोषणा की थी। इनमें आधी रकम वित्तीय तंत्र में वापस आ चुकी है। शेष रकम भी एक-दो दिनों में लौट आएगी।
इन उपायों से ओवरनाइट कॉल मनी रेट बढ़कर 6.75 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो रीपो रेट 6.5 प्रतिशत से अधिक है। बैंक अक्सर अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए आरबीआई की सीमांत स्थायी सुविधा (मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी) से 6.25 प्रतिशत दर पर रकम उधार लेते हैं और अधिशेष रकम स्थायी जमा सुविधा (मार्जिनल डिपॉजिट फैसिलिटी) के माध्यम से 6.25 प्रतिशत पर जमा करते हैं। इस समय कॉल रेट सीमांत स्थायी सुविधा दर के इर्द-गिर्द पहुंच गई है।
इस तरह, मौद्रिक नीति के बाद आया सतर्क वक्तव्य अनुमानों के अनुसार ही रहा है। इसमें जोर दिया गया है कि ‘वर्तमान परिस्थितियों में चौकस रहना आवश्यक हो गया है और किसी तरह की लापरवाही की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं है’। वक्तव्य में यह भी कहा है कि ‘ऊंची मुद्रास्फीति स्थिर आर्थिक हालात एवं निरंतर वृद्धि के लिए बड़ा खतरा है’। इसे देखते हुए मौद्रिक नीति में ‘दीर्घ अवधि तक मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत या इससे नीचे रखने पर विशेष जोर दिया गया है’।
वित्त वर्ष 2024 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह 5.4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गई है जबकि दूसरी तिमाही के लिए इसमें मामूली बढ़ोतरी-6.2 प्रतिशत से 6.4 प्रतिशत- होने का अनुमान लगाया है।
वित्त वर्ष 2024 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया है। वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। नीतिगत एवं आरबीआई गवर्नर के बयान के साथ जारी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने (3.8 से 5.2 प्रतिशत के दायरे में) का अनुमान व्यक्त किया गया है। यह अनुमान यह मानते हुए लगाया गया है कि मॉनसून सामान्य रहेगा और हालात मोटे तौर पर स्थिर रहेंगे। वित्त वर्ष 2025 की अंतिम तिमाही में मुद्रास्फीति 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
चूंकि, आरबीआई मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत स्तर पर रखने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रहा है, इसलिए यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि ब्याज दर में कटौती शुरू होने के लिए कितना इंतजार करना होगा? वास्तविक दर (मुद्रास्फीति एवं नीतिगत दर 360 दिनों के ट्रेजरी बिल के बीच अंतर) 1.25-1.50 प्रतिशत रहती है तो हमें ब्याज में कटौती के लिए मुद्रास्फीति 5.0-5.25 प्रतिशत आने तक इंतजार करना होगा।
वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही से पहले ब्याज दर में कमी संभव नहीं दिख रही है मगर यह संभावना पूरी तरह खारिज भी नहीं की जा सकती।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)