Categories: लेख

बूस्टर खुराक सही कदम

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:37 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सप्ताहांत पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि देश में टीकाकरण का अगला दौर 3 जनवरी से आरंभ होगा। नये वर्ष के पहले सप्ताह में 15 से 18 वर्ष की उम्र के किशोर टीकाकरण कराने लायक हो जाएंगे। इसके एक सप्ताह बाद समाज के सबसे असुरक्षित तबके बूस्टर खुराक लगवाने की अर्हता प्राप्त कर लेंगे। पिछले वर्ष टीकाकरण के प्रारंभिक दौर की तरह शुरुआती बूस्टर खुराक स्वास्थ्यकर्मियों, अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों और 60 वर्ष से अधिक उम्र के उन लोगों को दी जाएगी जो अन्य घातक बीमारियों से पीडि़त हों। ये बदलाव सही दिशा में हैं और देश को कोविड के ओमीक्रोन प्रकार से बचाव की तैयारी में मदद करेंगे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि देश कुछ ही सप्ताह में ओमीक्रोन के संक्रमण की चपेट में आ सकता है। मुंबई और दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में संक्रमण में इजाफा देखने को मिल रहा है।
बूस्टर खुराक देने का निर्णय पहले ही हो जाना चाहिए था। विशेषज्ञ और यहां तक कि विपक्ष के कई नेता कम से कम तीन सप्ताह या उससे अधिक समय से यह मांग कर रहे थे कि बूस्टर खुराक देने की शुरुआत की जानी चाहिए। यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार को इस सलाह पर अमल करने में इतना अधिक वक्त क्यों लगा। खासतौर पर तब जबकि इस समय आपूर्ति को लेकर भी कोई दिक्कत नहीं है। असली समस्या यह है कि पहली खुराक लगवाने वाले कई लोग दूसरी खुराक लगवाने नहीं गए। ऐसे में कोशिश तो यह होनी चाहिए थी कि असुरक्षित वर्ग के लिए कोविड की बूस्टर खुराक शुरू करने के साथ ही दूसरी खुराक को लेकर लोगों की हिचकिचाहट दूर की जाती। देश में ओमीक्रोन संक्रमण में इजाफा हो रहा है। ऐसे में आशा की जानी चाहिए कि कुछ सप्ताह की यह देरी एक अन्य लहर के प्रबंधन की हमारी क्षमता को प्रभावित नहीं करेगी।
यह संभव है कि सरकार शायद ऑक्सफर्ड/एस्ट्राजेनेका टीके की तीसरी खुराक के प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक प्रमाणों की प्रतीक्षा कर रही हो। गत सप्ताह जारी कुछ आंकड़ों में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि भारत में कोविशील्ड के नाम से लगाए जाने वाले टीके को प्रयोगशाला के माहौल में अगर तीन खुराक में दिया जाए तो वह ओमीक्रोन स्वरूप के खिलाफ वैसी ही प्रतिरोधक क्षमता मुहैया कराता है जैसी कि टीके की दो खुराक डेल्टा स्वरूप के खिलाफ मुहैया कराती थी। यह अच्छी खबर है क्योंकि कुछ और टीके- खासकर साइनोफॉर्म का टीका जिसका चीन में जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है, इतने प्रभावी नहीं नजर आए। बहरहाल यह ध्यान देने लायक है कि एस्ट्राजेनेका टीके पर निर्भर तमाम अन्य देशों ने मेसेंजर आरएनए टीके पर आधारित टीके की खुराक बूस्टर के रूप में देनी शुरू की है। इस बारे में काफी प्रमाण मौजूद हैं कि मिश्रित खुराक काफी प्रभावी साबित हुई है।
ऐसे में सरकार का एमआरएनए तकनीक आधारित टीका बनाने वाली कंपनियों के साथ किसी समझौते पर पहुंचने से लगातार पीछे रह जाना समझ से परे है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि नोवावैक्स द्वारा विकसित टीका जिसे भारत में कोवावैक्स के नाम से बनाया जा रहा है, उसको अब तक मंजूरी क्यों नहीं दी गई है। जबकि आंकड़े बताते हैं कि एमआरएनए टीके जहां ऐंटीबॉडी का स्तर 25 से 40 गुना बढ़ाते हैं, वहीं यह टीका ऐंटीबॉडी के स्तर को 73 गुना बढ़ा देता है। यूरोप और विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही नोवावैक्स टीके को मंजूरी दे चुके हैं और घनी आबादी वाले दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी देरी खतरनाक हो सकती है। महामारी से जुड़ी घटनाओं को लेकर जितनी तेज प्रतिक्रिया दी जाएगी वह देश के उतनी ही अधिक हित में होगी।

First Published : December 26, 2021 | 11:35 PM IST