आखिरकार पुदुच्चेरी में सरकार का गठन हो गया है। पूरी प्रक्रिया में करीब एक महीने का समय लगा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निर्मल सुराणा और पार्टी के चुनाव अभियान की रणनीति तैयार करने में मदद करने वाले राजीव चंद्रशेखर की गहन सौदेबाजी के बाद आखिरकार अब वहां एक मंत्रिमंडल बन चुका है। मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस (एआईएनआरसी) इस सरकार का नेतृत्व कर रही है जहां सारा नियंत्रण भाजपा के हाथ में है।
इस सरकार के महत्त्वपूर्ण होने की कई वजह हैं। पहली बात, विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में भाजपा ने अपनी स्थिति काफी मजबूत की। पश्चिम बंगाल विधानसभा में पार्टी तीन सीटों से बढ़कर 77 पर पहुंच गई। लेकिन पार्टी केवल पुदुच्चेरी में ही सत्ता में आ सकी। दक्षिण भारत में दूसरा राज्य है जहां पार्टी सत्ता में आई है। केरल में भाजपा का मत 2016 के 16 प्रतिशत से कम होकर 2021 में 11.51 प्रतिशत रह गया और तमिलनाडु में पार्टी छाप छोडऩे में नाकाम रही। वहां उसे चार सीटों पर जीत मिली लेकिन वह अपने गठबंधन साझेदार अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेेत्र कषगम पर बोझ साबित हुई। पुदुच्चेरी में भी उसने गठबंधन किया और वहां उसका प्रदर्शन बेहतर रहा। यह बात तब और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब आप 2016 पर विचार करते हैं। उस चुनाव में पार्टी 30 सीटों पर मैदान में उतरी थी और 29 पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। भाजपा पुदुच्चेरी में कांग्रेस की हार को दोहरी जीत के रूप में देखती है: कांग्रेस की निवर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री चुनाव भी नहीं लड़े और पार्टी केवल दो सीटों पर जीत सकी: एक दूरवर्ती माहे सीट और दूसरी लॉपेट जहां कांग्रेस का प्रत्याशी हाल ही में पार्टी में शामिल हुआ था। ऐसे में सवाल यह है कि पार्टी को सरकार बनाने में एक महीने का समय क्यों लग गया?
एक तथ्य तो यह है कि मुख्यमंत्री कोविड-19 संक्रमित हो गए थे और उन्हें अस्पताल में दाखिल करना पड़ा था लेकिन चुनाव के नतीजों की प्रकृति कुछ ऐसी थी कि रंगास्वामी के पास कई विकल्प थे। भाजपा की प्राथमिक मांग यह थी कि उसके एक विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए और उसने कम से कम दो और मंत्री पदों की मांग रखी।
रंगास्वामी की कुछ अपनी अनिवार्यताएं थीं। पुदुच्चेरी के मंत्रिमंडल में अधिकतम सात मंत्री हो सकते हैं। जाहिर है एआईएनआरसी को मुख्यमंत्री का पद अपने पास रखना था। वह विधानसभा अध्यक्ष पद के साथ पांच मंत्री पद और चाहती थी। भाजपा का दावा था कि चुनाव पूर्व समझौते में एआईएनआरसी को मुख्यमंत्री और विधानसभा उपाध्यक्ष पद समेत तीन स्थान देने का वादा था। पार्टी यह भी चाहती थी कि उसके विधायकों में से एक को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए। रंगास्वामी ने भाजपा को साफ बता दिया कि उनके पास और विकल्प हैं।
वे विकल्प एकदम स्पष्ट थे। कुल 33 सीटों वाली विधानसभा में एआईएनआरसी को 10 और भाजपा को छह सीटों पर जीत मिली। द्रमुक को छह, कांग्रेस को दो सीट मिलीं जबकि छह सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी मिले।
परंतु वहां तीन नामित विधायक भी हैं जिनके पास निर्वाचित विधायकों के समान ही मतदान के अधिकार हैं। जब रंगास्वामी ने डराने वाले तेवर दिखाने शुरू किए (वह भाजपा के छह विधायकों की जगह द्रमुक के छह विधायकों के साथ सरकार बना सकते थे। तब उन्हें कांग्रेस और निर्दलीयों की जरूरत भी नहीं पड़ती) तो भाजपा ने तत्काल तीन विधायकों को नामित कर दिया। उप राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन भाजपा की तमिलनाडु इकाई की अध्यक्ष रह चुकी हैं, इससे भी पार्टी को मदद मिली। इस तरह भाजपा के नौ सदस्य हो गए और वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। तीन स्वतंत्र विधायक पहले ही भाजपा के समर्थन को तैयार हो गए हैं और अन्य निर्दलीय विधायकों के पार्टी में शामिल होने की चर्चा जारी है।
प्राथमिक तौर पर सुराणा और उनके साथ चंद्रशेखर को रंगास्वामी को विधानसभा अध्यक्ष का पद भाजपा को देने के लिए मनाने की खातिर कड़ी मेहनत करनी पड़ी। छह सदस्यीय मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री समेत चार पद एआईएनआरसी के खाते में गए जबकि दो भाजपा को मिले। भविष्य में मंत्रिमंडल का विस्तार भी हो सकता है।
कुछ बातें सुराणा के बारे में करते हैं। उनके नाम से लगता है कि वह राजस्थान के हैं लेकिन वह और उनका परिवार कई वर्षों से कर्नाटक में रह रहे हैं। वह ज्यादा चर्चा में नहीं रहते और कट्टर भाजपाई हैं। सुराणा बेंगलूरु से विधायक रह चुके हैं और उन्हें येदियुरप्पा के विरोधी खेमे का तथा राष्ट्रीय संगठन सचिव बी एल संतोष का करीबी माना जाता है। सन 2016 में येदियुरप्पा के कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद 2017 में सुराणा को पार्टी में गुटबाजी के आरोपों के कारण उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। 2019 में जब नवीन कुमार कतील प्रदेश अध्यक्ष बने तो उनके प्रारंभिक निर्णयों में से एक था सुराणा को पद पर बहाल करना। पुदुच्चेरी चुनाव के तत्काल बाद उन्हें कर्नाटक भाजपा की कोर समिति में शामिल किया गया। वह कर्नाटक में संतोष की आंख और कान की भूमिका निभाते हैं और अब पुदुच्चेरी में उनकी विश्वसनीयता पहले से अधिक मजबूत हुई है।
यह बात महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आने वाले महीनों में जहां रंगास्वामी पुदुच्चेरी की राजनीति में एक अहम कारक रहेंगे, वहीं कर्नाटक की राजनीति में सुराणा की जगह सुरक्षित हो गई है। कह सकते हैं कि यह एक साथ दो जीत के समान है।