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बड़ी चुनौती

Last Updated- December 12, 2022 | 1:56 AM IST

सरकार छह लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्ति मुद्रीकरण की योजना तैयार कर रही है। इसमें राष्ट्रीय राजमार्गों समेत कई परिसंपत्तियां शामिल होंगी। जैसा कि केंद्रीय विनिवेश सचिव ने बुधवार को एक औद्योगिक आयोजन में कहा, सरकार का इरादा अब तक सामने आई योजना की तुलना में कहीं अधिक महत्त्वाकांक्षी है। सरकार ने इस दिशा में होने वाली प्रगति की निगरानी और निवेशकों के लिए बेहतर प्रदर्शन के लिए एक डैशबोर्ड भी तैयार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले कहा था कि केंद्र सरकार के उपक्रमों की बिकी के जरिये 2.5 लाख करोड़ रुपये जुटाए जाने हैं।
नीति आयोग के बारे में खबर है कि उसने सरकार के लिए एक पाइपलाइन तैयार की है। हालांकि नई पाइपलाइन में राज्यों की परिसंपत्ति भी शामिल हो सकती है लेकिन इसका पैमाना और दायरा बढ़ाने की योजना का स्वागत किया जाना चाहिए। व्यापक पैमाने पर सरकारी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण उपयोगी होगा और वह वृद्धि को गति देने वाले पूंजीगत व्यय को बढ़ाएगा। भारतीय अर्थव्यवस्था जो गत वर्ष कोविड के कारण आई गिरावट से उबरने का प्रयास कर रही है उसके बारे में माना जा रहा है कि वह इस वर्ष उच्च गति से बढ़ेगी। इसके बावजूद मध्यम अवधि का परिदृश्य अनिश्चित है। आम परिवारों की बैलेंसशीट पर तनाव बना हुआ है क्योंकि आय का नुकसान हुआ है और वह खपत में सतत सुधार में अड़चन डालेगा। चूंकि खपत कमजोर है और उद्योग जगत के पास काफी अतिरिक्त क्षमता है इसलिए निजी क्षेत्र के निवेश में टिकाऊ सुधार भी मुश्किल नजर आता है। ऐसे में आय में सुधार का इकलौता घरेलू स्रोत शायद सरकारी व्यय ही है।
हकीकत तो यह है कि सरकारी व्यय महामारी के पहले के वर्षों में भी वृद्धि का मजबूत वाहक रहा है। बहरहाल, सरकारी वित्त तनाव में है और सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी ऋण के 90 फीसदी पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में यदि सरकार आक्रामक ढंग से परिसंपत्ति मुद्रीकरण करे तो वह बिना बजट पर दबाव डाले सार्वजनिक निवेश के लिए संसाधन जुटा सकती है। सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की जरूरत है लेकिन बड़े पैमाने पर परिसंपत्ति मुद्रीकरण करना आसान नहीं होगा। इस मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन भी बहुत आशान्वित नहीं करता। उदाहरण के लिए सरकार निरंतर विनिवेश लक्ष्य पाने में पिछड़ती रही है। चालू वर्ष में 1.75 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के समक्ष सरकार केवल 8,368.56 करोड़ रुपये ही जुटा सकी है। भूमि और राजमार्ग जैसी परिसंपत्ति का मुद्रीकरण, सरकारी उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचने की तुलना में अधिक जटिल होगा। अतीत में ऐसे कुछ प्रयास सूचना की खराब गुणवत्ता और खुलासा मानकों के कारण प्रभावित हुए। सरकारी परिसंपत्तियों के प्रबंधन के क्षेत्र में भी भारत का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। इसके अलावा अन्य प्रशासनिक चुनौतियां भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए राज्य सरकारें विशेष उद्देश्यों के लिए जमीन रियायती दर पर देती हैं। राज्य केंद्र सरकार की ऐसी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करने की योजना पर आपत्ति कर सकते हैं या प्रक्रिया में समुचित हिस्सेदारी मांग सकते हैं। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह ऐसे मसलों से सावधानी से निपटे। यदि वह निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की मदद ले तो बेहतर होगा।

यदि योजना के अनुसार परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण सफल हुआ तो इससे अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता में भारी इजाफा होगा क्योंकि सार्वजनिक निवेश बढ़ेगा। सरकार को भी सावधान रहना होगा कि इस मुद्रीकरण के लाभ का इस्तेमाल किस तरह हो। इसे राजकोषीय घाटे की भरपाई का एक और तरीका भर बनकर नहीं रह जाना चाहिए। विनिवेश तथा मुद्रीकरण के अन्य माध्यमों से जुटाई गई नकदी का इस्तेमाल केवल परिसंपत्ति निर्माण में होना चाहिए। इसका इस्तेमाल मौजूदा सरकार के व्यय की भरपाई के लिए करना (जो होता रहा है) इसके लक्ष्य को विफल कर देगा और लंबी अवधि में समस्याएं बढ़ाएगा। 

First Published - August 12, 2021 | 9:20 PM IST

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