प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों से सुरक्षित रखना है। यह कानून प्रतिस्पर्द्धा रोधी समझौतों और बाजार या कारोबार में किसी को उसके प्रभुत्व का बेजा इस्तेमाल करने से रोकता है। इस कानून में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (सीसीआई) को ऐसे प्रत्येक व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया गया है जो किसी अनुचित कारोबारी व्यवहार या ऐसे किसी समझौते में संलिप्त रहा है।
सीसीआई पिछले तीन वित्त वर्षों के औसत राजस्व (टर्नओवर) का 10 प्रतिशत तक जुर्माना लगा सकता है। इस अधिनियम में राजस्व को वस्तुओं एवं सेवा की बिक्री से प्राप्त मूल्य के रूप में परिभाषित किया गया है। सीसीआई पहले दोषी व्यक्ति पर ‘कुल’ राजस्व के आधार पर मगर 10 प्रतिशत की सीमा में जुर्माना लगाया करता था।
एक्सल कॉर्प केयर मामले में सीसीआई ने कुल राजस्व का 9 प्रतिशत जुर्माना लगा दिया था। चूंकि, कानून में यह स्पष्ट नहीं था कि राजस्व उत्पाद या व्यक्ति से जुड़ा है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में इस मामले में की गई अपील पर सुनवाई के बाद जुर्माना लगाए जाने के लिए ‘संबद्ध’ राजस्व का प्रावधान दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘संबद्ध’ राजस्व संबंधित व्यक्ति का राजस्व है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन से प्रभावित उत्पाद एवं सेवाओं से प्राप्त हुआ है।
न्यायालय ने इसके लिए दो सिद्धांतों का हवाला दिया। इनमें पहला सिद्धांत सख्त व्याख्या का था। इसके अंतर्गत अगर दो व्याख्या संभव हैं तो इनमें जो नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के पक्ष में दिखती है उसे अपनाया जाना चाहिए। दूसरा सिद्धांत आनुपातिकता का था। इसके अंतर्गत दंड नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति द्वारा पहुंचाई गई हानि के बराबर होना चाहिए।
सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के बीच आपसी सांठगांठ के आरोप से जुड़े मामले में सीसीआई ने परिस्थितियों पर विचार करने के बाद राजस्व का दो प्रतिशत जुर्माना लगा दिया। इस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई के दौरान अपील न्यायाधिकरण ने संबद्ध राजस्व के आधार पर जुर्माने की गणना की थी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत प्राप्त सकल प्रीमियम के आधार पर जुर्माना तय किया।
प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2023 में जुर्माने का निर्धारण करने के लिए ‘वैश्विक’ राजस्व (संबंधित व्यक्ति द्वारा सभी उत्पाद एवं सेवाओं की बिक्री से प्राप्त राजस्व) को आधार बनाया गया है। यह संशोधन 22 मई, 2023 को प्रभावी हुआ है। इसमें प्रावधान है कि निर्धारित नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने की उपयुक्त रकम का निर्धारण करने के लिए सीसीआई को दिशानिर्देश प्रकाशित करने होंगे।
इसमें इस बात का भी जिक्र है कि सीसीआई को जुर्माना लगाने के लिए इन प्रावधानों पर विचार करना होगा और किसी तरह के बदलाव की स्थिति में कारण स्पष्ट करना होगा। पहली नजर में ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त संशोधन से जुर्माना लगाने की प्रक्रिया अस्त-व्यस्त हो गई है या कम से कम यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत है। संबद्ध राजस्व के पक्ष में उच्चतम न्यायालय के निर्देश दो सिद्धांतों से प्रभावित थे। मगर संशोधन के बाद ये दोनों सिद्धांत प्रभावी नहीं रह गए हैं।
चूंकि, संशोधित कानून में एक से अधिक व्याख्या का प्रावधान नहीं है इसलिए सख्त व्याख्या के सिद्धांत के उपयोग की आवश्यकता नहीं रह गई है। हालांकि, संशोधित अधिनियम में आनुपातिकता सुनिश्चित करने के लिए तीन प्रावधान दिए गए हैं। पहला प्रावधान यह है कि जुर्माना अपराध की गंभीरता के आधार पर ‘वैश्विक’ राजस्व का शून्य से 10 प्रतिशत तक हो सकता है। दूसरा प्रावधान यह है कि तय दिशानिर्देश जुर्माने की उपयुक्त रकम के निर्धारण में मदद करेंगे।
तीसरा प्रावधान यह है कि दिशानिर्देशों से इतर जुर्माना लगाए जाने का आदेश आने पर इसका कारण भी बताना होगा। दुनिया के अधिकांश देशों में ज्यादातर प्रतिस्पर्द्धा नियामकों के पास जुर्माने को राजस्व से जोड़ने का अधिकार है। जुर्माना निर्धारित करने के लिए ‘वैश्विक’ राजस्व को आधार बनाने के कई लाभ हैं। सबसे पहली बात तो कई ऐसी परिस्थितियां होती हैं जहां जुर्माना लगाने के लिए संबद्ध राजस्व को आधार बनाना मुश्किल होता है।
इसका एक उदाहरण हब ऐंड स्पोक (एक केंद्र से विभिन्न जगहों तक वस्तुएं पहुंचाने की व्यवस्था) समझौता है जिसे संशोधित अधिनियम गैर-प्रतिस्पर्धी मानता है। हब (केंद्र) अमूमन स्पोक की तरह एक ही कारोबार में नहीं लगा रहता है। इसका राजस्व शून्य होता है इसलिए ऐसे राजस्व पर जुर्माना भी शून्य ही होगा। इससे हब अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर सकते हैं। दूसरा लाभ यह है कि संबद्ध राजस्व का निर्धारण करना प्रायः पेचीदा एवं सटीक नहीं होता है। स्वास्थ्य बीमा में किसी कंपनी द्वारा अपने दबदबे का बेजा इस्तेमाल का उदाहरण इसे स्पष्ट करता है।
क्या स्वास्थ्य बीमा, समूह स्वास्थ्य बीमा, विकलांग व्यक्तियों के लिए समूह स्वास्थ्य बीमा, किसी खास विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए समूह स्वास्थ्य बीमा और सरकारी योजना के तहत किसी खास विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए समूह स्वास्थ्य बीमा के मामले में संबद्ध राजस्व का निर्धारण किया जा सकता है? नियमों का उल्लंघन कर चुका व्यक्ति अपने उत्पाद के लिए सीमित परिभाषा तय करने के पक्ष में तर्क देगा जिससे संबद्ध राजस्व न के बराबर रह जाएगा। प्रतिस्पर्द्धा प्राधिकरण इसके विपरीत तर्क पर चलेगा। इससे मामला कानूनी विवाद में उलझ जाएगा।
जुर्माना निर्धारित करने के लिए ‘वैश्विक’ राजस्व को आधार बनाए जाने के दो मूल कारण हैं। पहला कारण यह है कि कोई कानून उतना ही अच्छा माना जाता है जितना उसका क्रियान्वयन होता है। कानून लागू किए जाने के बाद इसका प्रभाव दोषी व्यक्ति को हिरासत में लेने और उसके दोषी साबित होने की संभावना और प्रतिबंध या दंड के स्तर पर निर्भर करता है।
दोषी साबित होने की संभावना अधिक होगी तो कम प्रतिबंध लगाने से भी अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकता है। हालांकि, आर्थिक विधान जैसे प्रतिस्पर्द्धा कानून में दोषी साबित होने की संभावना कम होती है क्योंकि यह तर्क के सिद्धांतों पर निर्भर रहता है। लिहाजा, प्रतिबंध का स्तर ऊंचा अवश्य होना चाहिए। इसके लिए जुर्माना लगाने के लिए ‘वैश्विक’ राजस्व को आधार बनाना ही उचित होगा।
दूसरा कारण यह है कि प्रतिस्पर्धा कानून बाजार की त्रुटियों एवं इसकी विफलताओं (संसाधनों का त्रुटिपूर्ण वितरण) को दुरुस्त करता है। आइए, हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था के साथ शुरुआत करते हैं जो संतुलन की स्थिति में है। अगर कोई व्यक्ति बाजार में अपनी शक्ति का उपयोग किसी वस्तु (चाहे इसकी परिभाषा कितने ही सीमित दायरे में क्यों नहीं हो) के मूल्य या उसकी गुणवत्ता को प्रभावित (चाहे कुछ हद तक ही क्यों नहीं) करने के लिए करता है तो इससे संसाधनों के पुनर्आवंटन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
अगर इससे किसी वस्तु ‘ए’ का मूल्य बढ़ता है तो संसाधन ‘बी’ के उत्पादन से निकलकर ‘ए’ के उत्पादन में लग जाते हैं। यह बाजार में ‘बी’ की आपूर्ति घटा देता है इससे इसकी कीमत बढ़ जाती है। इसके बाद संसाधन ‘सी’ के उत्पादन से ‘बी’ के उत्पादन की तरफ बढ़ते हैं। बदलाव का यह दौर विभिन्न उत्पादों एवं क्षेत्रों में संसाधन ले जाता है।
इस प्रक्रिया में कई उद्यम बरबाद हो जाते हैं और संभवतः नए उद्यम बनते हैं। इसके बाद एक संतुलन की एक नई स्थिति बनती है जो शुरुआती संतुलन से अलग होता है। यह अंतर संसाधनों का त्रुटिपूर्ण आवंटन होता है जिससे पूरी अर्थव्यवस्था जूझती है। इस तरह, कानूनों का उल्लंघन केवल संबंधित उत्पाद एवं सेवाओं तक ही सीमित नहीं रहता है।
बाजार में अपने दबदबे का इस्तेमाल एक तरह से अपराध है। यह सक्षम कंपनियों को बरबाद करता है और बाजार की विफलता का कारण बनता है। इस अपराध के लिए कठोर दंड दिया जाना चाहिए। बाजार में अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करने वाली इकाई पर जुर्माने का आधार उसका ‘वैश्विक’ राजस्व होना चाहिए।
(साहू प्रतिष्ठित प्राध्यापक हैं और लट्टू राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली में एलएलबी के पांचवें वर्ष के छात्र हैं)