लोक सभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के नतीजों के दिन यानी 4 जून को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ‘शेयर बाजार घोटाले’ में सीधे शामिल थे। गांधी ने इसे शेयर बाजार का ‘सबसे बड़ा घोटाला’ करार दिया और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से इसकी जांच कराने की मांग की।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता पीयूष गोयल ने तपाक से मोर्चा संभाला और गांधी के आरोपों को निराधार बताया। इस बीच, 4 जून को भारी बिकवाली के बाद अगले तीन दिनों तक बाजार चढ़ता रहा और नुकसान की भरपाई कर ली। हमें आरोप-प्रत्यारोपों में न पड़कर यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि पिछले कुछ महीनों में बाजार में आखिर क्या हुआ।
चुनाव आयोग ने 16 मार्च को लोक सभा चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा की थी। चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के बाद बाजार में पहला कारोबारी सत्र 18 मार्च को था। उस दिन निफ्टी 50 सूचकांक लगभग अपरिवर्तित रहा मगर इसके बाद चुनाव की गहमागहमी बढ़ने के साथ बाजार में भी उतार-चढ़ाव दिखने शुरू हो गए।
क्या उतार-चढ़ाव बाजार का अभिन्न हिस्सा नहीं हैं? बिल्कुल हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद सरकार के बड़े मंत्रियों के बयानों के बीच बाजार उतार-चढ़ाव के बीच झूलता रहा। इन मंत्रियों ने आखिर क्या कहा? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था कि 4 जून को नतीजे भाजपा के लिए शानदार रहने वाले हैं।
उन्होंने कहा कि नतीजे आने के बाद बाजार में शानदार तेजी का दौर शुरू हो जाएगा। सीतारमण से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी कह दिया कि 4 जून को शेयर बाजार भाजपा की शानदार जीत के साथ नया कीर्तिमान छू लेगा। पिछली मोदी सरकार के दो अन्य बड़े मंत्रियों अमित शाह और एस जयशंकर ने भी 4 जून के बाद बाजार में जबरदस्त तेजी आने का अनुमान जताया था या यूं कहें कि ‘गारंटी’ दे दी थी।
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव पर केंद्रीय मंत्रियों की टीका-टिप्पणी या प्रतिक्रिया कोई नई बात नहीं है। मगर पूर्व में ऐसी प्रतिक्रियाएं अलग-अलग संदर्भों में की गई थीं और चुनाव से उनका कोई संबंध नहीं था।
1 जून को अंतिम चरण का मतदान समाप्त होने के बाद सभी समाचार चैनलों पर एग्जिट पोल के नतीजे प्रसारित होने लगे। दैनिक भास्कर समाचारपत्र को छोड़कर सभी चैनलों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के शानदार बहुमत के साथ सत्ता में लौटने का अनुमान जताया।
दैनिक भास्कर ने राजग को 281-350 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। इसके उलट सभी चैनलों ने राजग को 358 से 415 सीटें तक मिलने की बात कही। एग्जिट पोल के नतीजे बाजार बंद होने के बाद प्रसारित हुए थे। अगले दिन यानी 3 जून को निफ्टी कारोबार के दौरान 3 प्रतिशत से अधिक उछलकर 23,338 पर पहुंच गया और बाद में 23,263 पर बंद हुआ। मगर 4 जून को जो हुआ वह हैरान करने वाला था।
राजग को अनुमान से कम यानी 293 और भाजपा को 240 सीटों पर सिमटता देख बाजार गश्त खा गया। बाजार में उस दिन निवेशकों के 30 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। मैं केवल नकदी खंड की बात कर रहा हूं, डेरिवेटिव बाजार में कीमतों में कहीं अधिक बदलाव हुए होंगे। 3 जून को जब बाजार खुला था तो संयोग से घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने 8,765 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे थे।
डीआईआई में म्युचुअल फंड, बीमा कंपनियां, बैंक, राष्ट्रीय पेंशन योजना और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) सहित कुछ विशेष क्वालिफाइड निवेशक आते हैं। अगले दिन जब बाजार धड़ाम हुआ तो विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) और डीआईआई ने 15,755 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेच डाले।
तो 3 जून को किसने शेयर बेचे और 4 जून को किसने खरीदे ? इस प्रश्न का जवाब बहुत सीधा है, जनाब! यह संभव है कि रिवर्स आर्बिट्राज ऑपर्च्युनिटीज (जिसमें भविष्य की कीमतें हाजिर कीमतों से कम बताई जाती हैं) के कारण कुछ एफआईआई और डीआईआई ने अपने बहीखाते हल्के किए होंगे मगर तब भी खुदरा और एचएनआई ने 3 जून को सबसे अधिक बिकवाली और 4 को खरीदारी की थी।
इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है? क्या संस्थागत निवेशकों की तुलना में खुदरा निवेशक बाजार की अधिक थाह रख रहे हैं? क्या खुदरा निवेशक अब अधिक समझदार हो रहे हैं?
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने वित्त वर्ष 2022 में इक्विटी वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) में कारोबार करने वाले खुदरा निवेशकों के नफा और नुकसान का अध्ययन किया था। इस अध्ययन के अनुसार व्यक्तिगत कारोबारियों में 89 प्रतिशत (10 में 9) को इक्विटी एफऐंडओ खंड में नुकसान उठाना पड़ा। क्या यह रुझान बदल रहा है? क्या जो लोग उच्च हाई फ्रीक्वेंसी एवं अल्गोरिद्म आधारित कारोबार में खुदरा निवेशक और एचएनआई का मुखौटा पहनकर कारोबार कर रहे हैं वे संस्थागत निवेशकों को पछाड़ कर आगे निकल रहे हैं?
इससे पहले कि हम किसी नतीजे पर पहुंचे, आइए देखते हैं कि विभिन्न चुनावों के बाद शेयर बाजार की चाल कैसी रही है? भारत में जब से उदारीकरण की शुरुआत हुई है तब से जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें 1991 में चुनाव के बाद निफ्टी ने एक साल में सर्वाधिक प्रतिफल (145.9 प्रतिशत) दर्ज किया।
हालांकि, उस साल बाजार पर हर्षद मेहता कांड की भी छाया था। 2009 के लोक सभा चुनाव के बाद निफ्टी ने दूसरा सबसे अधिक प्रतिफल (57.6 प्रतिशत) दिया था।
वर्ष 2014 में हुए लोक सभा चुनाव के बाद निफ्टी का एक साल का प्रतिफल 30.9 प्रतिशत रहा था। 2019 के चुनाव के बाद यह ऋणात्मक 20.4 प्रतिशत रहा था। चुनावों के बाद के वर्षो में निफ्टी में सालाना नफा या नुकसान एक अंक (6.8 प्रतिशत से लेकर ऋणात्मक 4.8 प्रतिशत) रहा है।
संयोग से 4 जून को जब से निफ्टी 5.93 प्रतिशत फिसलकर 21,884.5 प्रतिशत पर आया है (पिछले चार वर्षों से कुछ अधिक समय में इसका सबसे खराब प्रदर्शन) तब से दलाल पथ पर यह जुमला चल रहा है कि उन लोगों की सलाह पर ध्यान नहीं दें जो सेबी पंजीकृत निवेश सलाहकार नहीं हैं।
जो शेयर ब्रोकर ताना मार रहे हैं वे हाल की उन घटनाओं का भी जिक्र कर रहे हैं जब पूंजी बाजार नियामक ने कुछ लोगों पर जुर्माना लगा दिया था। सेबी ने बिना पंजीयन कराए निवेश सलाह देने के लिए ऐसे लोगों को मोटे तौर पर एक वर्ष के लिए प्रतिभूति बाजार में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया था।