यकीनन बजट तैयार करते वक्त 2024 के आम चुनावों को ध्यान में रखा गया है। बहरहाल, सरकार को राजनीतिक होने के लिए तो दोषी नहीं ही ठहराया जा सकता। परंतु, इससे एक सुखद आश्चर्य भी जुड़ा था। जैसा कि वित्त मंत्री ने कहा भी कि बजट में ‘ जनता को ध्यान में रखकर एक ऐसा महत्त्वाकांक्षी एजेंडा पेश किया गया जो वैश्विक चुनौतियों को हल करना चाहता है और साथ ही सतत आर्थिक विकास भी उपलब्ध कराना चाहता है।’
बजट में व्यय बढ़ाने और उद्योग जगत को इजाफा देने के लिए कर रियायत, कृषि को सुविधाएं देकर उत्पादकता और आय बढ़ाने, गरीबों पर पैसे खर्च करने और सामाजिक क्षेत्र का व्यय बढ़ाने जैसे जाने-पहचाने तरीके नहीं अपनाए गए। बजट में किसी लॉबीइंग समूह का सीधा उल्लेख नहीं था- फिर चाहे वह उद्योग हो, श्रम हो, बैंक हो या कोई और।
मिसाल के तौर पर पूरे बजट भाषण में गरीब शब्द केवल एक बार आया और वह भी गरीब कैदियों के संदर्भ में जो इसलिए जेल में बंद हैं कि वे जमानत राशि या जुर्माना नहीं चुका सकते।
क्या बजट महत्त्वाकांक्षी था? बजट में 5जी सेवाओं पर आधारित ऐप्लीकेशन विकास, डिजिटल लॉकर, सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचा आदि के लिए एक शोध संस्थान स्थापित करने तथा शैक्षणिक संस्थाओं में कृत्रिम मेधा शोध केंद्र स्थापित करने की बात कही गई। बजट में पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों तथा तकनीक को बढ़ावा देकर नवाचार के जरिये हरित विकास को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो सराहनीय है।
वित्त मंत्री की योजना एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर ले जाने की है और इसके लिए 10,000 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर बनाने के लिए विशेष प्रावधान किया गया। अगर सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो जैविक उत्पादों के राष्ट्रव्यापी उत्पादन और वितरण का नेटवर्क तैयार होगा।
क्या यह बजट जनोन्मुखी था? पहली बात, ऐसा होना ही था क्योंकि 2024 में लोग मतदान करेंगे। दूसरा, इसे बेहद समझदारी से किया गया। हम लोगों को तीन आर्थिक वर्गों में बांट सकते हैं- अमीर, गरीब और बाकी लोग। बाकी यानी मध्य वर्ग में वेतनभोगी, छोटे पेशेवर और छोटे मझोले उपक्रमों के लोग आते हैं जो पिछले कुछ समय से नोटबंदी, मुद्रास्फीति और कोविड-19 से जूझते रहे हैं। उन्हें राहत की तलाश थी जिनके लिए कर का बोझ कम करना ही उपाय था।प्रत्यक्ष कर में बदलाव से यही हुआ। अमीरों को भी कर राहत दी गई है।
गरीबों की बात करें तो यहां भी वित्त मंत्री ने काफी सोच विचार कर कदम उठाया है। खासतौर पर संकट से जूझ रहे आदिवासी समुदायों के विकास के लिए बने मिशन की सराहना की जानी चाहिए। समुचित क्रियान्वयन किया जाए तो इसका बहुत बड़ा असर पड़ सकता है। कर्नाटक के सूखाग्रस्त इलाके के सूक्ष्म सिंचाई व्यय पर भी यही बात लागू होती है। शिक्षा की बात करें तो गरीबों से अधिक उसकी अहमियत कोई नहीं समझता। ऐसे में 740 एकलव्य विद्यालयों के लिए 38,000 नए शिक्षकों की नियुक्ति की योजना स्वागतयोग्य है।
ऋण तक पहुंच की सुविधा और कृषि क्षेत्र की स्टार्टअप के लिए एग्रीकल्चर एक्सिलरेटर फंड आदि छोटे और मझोले किसानों के लिए अनेक संभावनाओं को जन्म देते हैं, बशर्ते कि उन्हें मार्केटिंग समर्थन मिल सके या प्रचलित कृषि कानूनों को हटाया जा सके। अगर कृषि स्टार्टअप सफल होती हैं तो किसानों की ओर से कृषि कानूनों की वापसी का दबाव बढ़ेगा।
बजट अन्य तरह से भी जनोन्मुखी है। युवा हमारे सबसे बड़े मतदाता समूह हैं और आज सरकार जो कदम उठाएगी उनसे सबसे लंबे समय तक वही प्रभावित होंगे। उन्हें उत्पादक रोजगार चाहिए। इसके लिए उन्हें कौशल की जरूरत है। उन्हें कौशल संपन्न बनाने के लिए निवेश की जरूरत होगी फिर चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक, उनसे रोजगार तो तैयार होते ही हैं। निजी निवेश पिछले कई वर्षों से धीमा है और सरकार भी कुल निवेश में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर इसकी कमी दूर करने का प्रयास कर रही है।
इस बजट में भी निवेश बढ़ाने की घोषणा की गई है। आशा की जा रही है कि वैश्विक मंदी के बीच 6 से 7 फीसदी की वृद्धि दर घरेलू निवेशकों को प्रेरित करेगी। यहां भी सरकार ने पुरानी कंपनियों की जगह युवा और जोखिम लेने वाली स्टार्टअप पर भरोसा जताकर अपनी महत्त्वाकांक्षा दर्शायी है। ऐसे में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई है जो डिजिटल क्षेत्र में नवाचारी स्टार्टअप को प्रोत्साहित करेगा।
सरकारी सेवाओं की सुदूर इलाकों तक पहुंच भी जनहितैषी होने का ही एक रूप है। लोगों को सेवा आपूर्ति के लिए सरकारी अधिकारियों की जरूरत होती है और सरकार को भी कर और नियमन के पालन के लिए लोगों की जरूरत होती है। इन सेवाओं का डिजिटलीकरण लोगों के लिए हालात आसान करता है।
सरकार जो डिजिटल बुनियाद तैयार कर रही है वह कमाल कर सकती है। इसके अलावा, विवाद से विश्वास योजनाएं ऐसी व्यवस्था की विश्वसनीयता बढ़ाती हैं जहां सरकार लोगों के लिए काम करती है न कि इसका उलट होता है।
अंत में बात करते हैं वित्त मंत्री के उस वादे की जिसमें उन्होंने सतत आर्थिक विकास की बात कही। इस बात के दो पहलू हैं। पहला वह है जिसे हम स्थायित्व से समझते हैं यानी प्रकृति को अक्षुण्ण रखना। दूसरा है लोगों को इतना सशक्त बनाना ताकि वे बिना भय या पक्षपात के बाजार में काम करना जारी रख सकें।
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में वादा किया कि तकनीक और उद्यम के क्षेत्र में प्रासंगिक स्थानीय नवाचारों की मदद से हरित वृद्धि को आगे बढ़ाया जाएगा।
उदाहरण के लिए मोटे अनाज के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जाना है। इसके लिए मांग और आपूर्ति दोनों को बढ़ाने के लिए एकीकृत रुख अपनाना होगा। जब भी हम देश में उत्पादन बढ़ाने की बात करते हैं तो हम आपूर्ति पर ध्यान देते हैं।
हम शायद ही इस बात पर ध्यान देते हैं कि जरूरी नहीं कि बेहतर आपूर्ति हमेशा उत्पादकों की आय बढ़ा ही दे। ऐसा तभी होगा जब मांग को बेहतर बनाया जा सकेगा। इस मामले में यह बजट भाषण ताजगी भरा रहा कि इसमें केवल आपूर्ति की बात नहीं की गई।
अर्थव्यवस्था में अमीर आमतौर पर नाखुश ही रहते हैं। उनकी आय पर सबसे अधिक कर लगता है जबकि उनकी खपत को विलासिता मानते हुए उस पर सबसे अधिक जीएसटी लगाया जाता है। इस बजट ने उन्हें चौंकाया है। अच्छी बात यह है कि प्रयोगशालाओं में बने हीरों की बदौलत संभव है उनकी हीरे की अंगूठियों और हारों की कीमत में कमी आए।
(लेखक आईडीएफ के शोध निदेशक हैं)