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एयर इंडिया विमान दुर्घटना: जानकारी लीक पर नहीं, संस्थागत सुधार पर दें जोर

हालिया विमान हादसे की प्रारम्भिक जांच से जुड़ी जानकारी किस तरह बाहर आ गई इस बारे में चिंता करने के बजाय हमें संस्थागत सुधारों पर ध्यान देना चाहिए। बता रहे हैं

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- July 24, 2025 | 10:16 PM IST

गत 12 जून को अहमदाबाद से लंदन जा रहे एयर इंडिया विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण 260 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस हादसे का जहां लोगों को बहुत दुख है वहीं इसके बाद हो रही जांच की प्रक्रिया को लेकर भी बहुत अधिक असहजता का माहौल है। हालिया घटनाक्रम का आकलन करें तो पता चलता है कि ऐसी असहजता और चिंता इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि अधिकारी इस दुर्घटना के परिणामों और जटिलताओं का अनुमान लगाने में विफल रहे। ऐसे में वे हादसे की जांच और बाहरी माहौल के प्रबंधन को लेकर जरूरी कदम नहीं उठा सके। हादसे की भयावहता केवल इस बात में निहित नहीं है कि विमान उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया और विमान सवारों के साथ जिस इमारत पर वह गिरा वहां कुछ मेडिकल छात्र भी मारे गए। बल्कि कई अन्य कारक भी हैं जिनकी शायद अनदेखी की गई।

पहली बात, यह दुनिया की पहली बड़ी हवाई दुर्घटना थी जिसमें बोइंग ड्रीमलाइनर विमान शामिल था। जाहिर है कि पूरी दुनिया का ध्यान इस हादसे की जांच और उसके निष्कर्षों पर है। इस जांच में इसलिए भी इतनी रुचि है क्योंकि एक बोइंग विमान के साथ यह हादसा तब हुआ है जब बोइंग के अन्य विमानों में भी गड़बड़ी और दुर्घटना की खबरें आई हैं। शायद किसी और से अधिक इस जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा बोइंग को रही होगी क्योंकि यात्रियों की धारणा और कंपनियों द्वारा विमानों का चयन ऐसे निष्कर्षों से प्रभावित होता है।

दूसरी बात, यह पहला मौका है जब विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) जो नागर विमानन मंत्रालय के अधीन आता है, उसने देश के भीतर हुए एक बड़े विमान हादसे की जांच की। पहले कॉकपिट वॉयस रिकॉर्ड और फ्लाइट डेटा रिकॉर्ड विदेश भेजा जाता था और उसके बाद निष्कर्ष निकाला जाता था। एएआईबी ने हाल ही में ऐसे रिकॉर्ड निकालने की घरेलू क्षमता हासिल की है जो अपने आप में एक उपलब्धि है। इसके बावजूद उसे यह समझना चाहिए कि अधिक सतर्कता की जरूरत क्यों है। एक तो यह जांच अपनी तरह की पहली कवायद थी इसलिए नागर विमानन क्षेत्र के वैश्विक अंशधारकों की इस पर गहरी नजर थी और दूसरी और इतनी ही अहम बात यह है कि विमान निर्माता या उसे संचालित करने वाली विमान कंपनी या हादसे वाले विमान को उड़ा रहे विमान चालकों को दोषमुक्त करने का एक दूरदराज का संकेत भी स्वाभाविक रूप से विवादास्पद होता।

तीसरी बात, एयर इंडिया उड़ान 171 की दुर्घटना 2022 में इस विमानन कंपनी का निजीकरण होने के बाद हुई पहली दुर्घटना थी। टाटा द्वारा इस कंपनी का स्वामित्व संभालने के बाद इस पर निगाहें थीं। उड़ानों के दौरान यात्रियों के गलत व्यवहार की कई ऐसी घटनाएं भी हुईं जिनसे अधिक बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था। विमानों से जुड़ी तमाम खबरें आने के बाद इस बात पर भी सवाल उठे कि सुरक्षा की दृष्टि से इनका रखरखाव कितने बेहतर ढंग से किया गया। एयर इंडिया अब सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी नहीं रही, फिर भी नागर विमानन मंत्रालय की जिम्मेदारी पहले की तुलना में कम नहीं थी।

आखिर में,  दुर्घटना अहमदाबाद में हुई जो गुजरात की राजधानी है। देश के किसी भी हिस्से में विमान हादसे में इतनी मौतों का होना राष्ट्रीय शोक का विषय होता ही लेकिन गुजरात एक ऐसा राज्य है जिसके शीर्ष राजनेता नई दिल्ली में केंद्र सरकार के भी शीर्ष पर हैं। इस विमान हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की भी मौत हो गई। गृह मंत्री अमित शाह उसी दिन अहमदाबाद पहुंचे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले दिन वहां गए। इतनी अधिक मौतों के अलावा इस हादसे की राजनीतिक संवेदनशीलता से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद एएआईबी ने जिस तरह जांच को संभाला वह बताता है कि काफी कुछ किया जाना चाहिए था। विशेषज्ञों के अनुसार जांच में ड्रीमलाइनर के बारे में जानकारी रखने वाले किसी पायलट की नामौजूदगी उल्लेखनीय है क्योंकि यह विमान इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

निश्चित रूप से एएआईबी की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने समय से यानी दुर्घटना के एक महीने के भीतर रिपोर्ट तैयार की। परंतु शुक्रवार की देर शाम रिपोर्ट जारी करने की क्या आवश्यकता थी? तय समय सीमा के पालन के सिवा इससे क्या फायदा हुआ?

इसके उलट इसने अनावश्यक अटकलों को जन्म दे दिया जिसे एएआईबी या नागर विमानन मंत्रालय ने आधिकारिक सूचना के जरिये नकारने का भी कोई प्रयास नहीं किया। एएआईबी की रिपोर्ट पर हादसे की जांच में शामिल और प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार करने वाले किसी सदस्य के हस्ताक्षर नहीं थे। कुछ विशेषज्ञों ने यह संकेत भी दिया कि प्रारंभिक रिपोर्ट कॉकपिट में दोनों पायलटों के बीच हुई बातचीत के अहम हिस्सों को दर्ज करने में चूक गई। यकीनन उन्होंने तर्क दिया कि कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर या फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की पूरी 40 मिनट की अवधि की व्याख्या में दो घंटे से अधिक समय नहीं लगता। तो ऐसे में घटनाक्रम को और अधिक स्पष्टता देने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया गया?

इससे भी बुरी बात यह है कि विदेशी मीडिया के कुछ हिस्सों ने पायलटों के बीच हुई बातचीत के कुछ हिस्से के आधार पर दुर्घटना को लेकर एक अलग ही नजरिया पेश करना आरंभ कर दिया। प्रतिस्पर्धी मीडिया वाले माहौल में ऐसी रिपोर्ट ने हादसे के कारणों को लेकर और अटकलों को जन्म दिया। एएआईबी ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया है कि उसका उद्देश्य हादसे को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना नहीं है बल्कि उसका इरादा इस बात पर प्रकाश डालने का है कि आखिर विमान के गिरने के ऐन पहले वाले मिनटों में क्या हुआ। एएआईबी और अमेरिकी राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी), दोनों ने हादसे की मीडिया में आई वजहों को अपरिपक्व और अटकलबाजी बताया है। उनके मुताबिक ये चुनिंदा और अपुष्ट रिपोर्टों पर आधारित हैं। परंतु इससे विमानन उद्योग के पायलटों के मनोबल और विमान यात्रियों के आत्मविश्वास को पहले ही काफी क्षति पहुंच चुकी थी।

क्या अधिकारी विमान हादसे की रिपोर्ट से जुड़े इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम को टाल सकते थे? शायद नागर विमानन मंत्रालय इस हादसे की विकरालता को चिह्नित करके एएआईबी और जांच टीम को इसकी संवेदनशीलता से अवगत करा सकता था। शायद ऐसे वरिष्ठ सेवानिवृत्त विमानचालक जिनके पास ड्रीमलाइनर जैसे उत्कृष्ट विमान उड़ाने का अनुभव हो, उनको जांच समिति में शामिल किया जाना था या फिर उनके विशेषज्ञ नजरिये को इसमें शामिल किया जाना चाहिए था? शायद मंत्रालय और एएआईबी को मीडिया से बातचीत करके यह समझाना था कि दुर्घटना के विभिन्न पहलू और उसकी पेचीदगियां क्या थीं। उन्हें छिपाकर रखना तथा एक साल बाद अंतिम रिपोर्ट में उन्हें प्रस्तुत करने का विचार सही नहीं है।

एएआईबी में सुधार तथा मंत्रालय में सुधार की आवश्यकता है। अगर मंत्रालय अपनी नियामकीय शाखा यानी नागर विमानन महानिदेशालय में खाली तकनीकी पदों में से करीब आधे भी भरता है तो ऐसे सुधारों को अंजाम देना आसान होगा। भारत में तकनीकी लोगों या पायलटों की कमी नहीं है। इन संस्थाओं में अधिक विशेषज्ञों की मौजूदगी से उनकी क्षमता में सुधार होगा और विमान हादसों की जांच जैसे आपातकालीन कामों को पूरा करने की उनकी क्षमता बढ़ेगी। संचार को तीव्र एवं अधिक प्रभावी बनाने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।

First Published : July 24, 2025 | 9:55 PM IST