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फेडरल रिजर्व के बाद क्या अब RBI की ब्याज दर घटाने की बारी? नीतिगत स्तर पर क्या हैं इसके मायने

हमारे विचार से अगस्त में हुई मौद्रिक नीति बैठक के बाद घरेलू वृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन में बदलाव के बाद नीतिगत दरों पर दोबारा विचार करने की जरूरत महसूस की जा रही है।

Last Updated- October 07, 2024 | 11:11 PM IST
RBI plans to improve currency management infrastructure for future cash needs रिजर्व बैंक की भविष्य की नकदी जरूरतों के लिए मुद्रा प्रबंधन बुनियादी ढांचे में सुधार की योजना

अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि तेजी से उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों को अमेरिका के फेडरल रिजर्व का अवश्य अनुसरण करना चाहिए। इन विश्लेषकों के अनुसार अगर ये केंद्रीय बैंक ऐसा नहीं करते हैं तो ब्याज दरों में अंतर के कारण पूंजी पलायन और मुद्राओं में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम देखने को मिल सकता है।

सितंबर में जब से फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर घटाई है तब से नीतिगत स्तर पर हलचल काफी तेज हो गई है। एशिया में फिलीपींस के केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर में 25 आधार अंक की कमी की है और आरक्षित आवश्यकता अनुपात (आरआरआर) 250 आधार अंक घटा दिया है। बैंक ऑफ इंडोनेशिया ने भी ब्याज दर में 25 आधार अंक की कमी कर सबको चौंका दिया है। चीन के पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने आरआरआर 50 आधार अंक कम कर दिया और सात-दिवसीय खुला बाजार परिचालन (ओपन मार्केट ऑपरेशन) रिवर्स रीपो रेट में भी 20 आधार अंक की कमी कर दी। क्या अब दर घटाने की बारी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की है?

इस बात में कोई संदेह नहीं कि अमेरिका में ब्याज दरें कम रहने से मदद मिलती है मगर दूसरे केंद्रीय बैंकों की तुलना में आरबीआई के पास विदेशी मुद्रा भंडार अधिक होने से उसके पास आंतरिक परिस्थितियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अधिक गुंजाइश है। हमारे विचार से अगस्त में हुई मौद्रिक नीति बैठक के बाद घरेलू वृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन में बदलाव के बाद नीतिगत दरों पर दोबारा विचार करने की जरूरत महसूस की जा रही है।

अनुकूल मुद्रास्फीति

खाद्य मुद्रास्फीति की आगे की तस्वीर अधिक संभावनाओं भरी लग रही है। खरीफ फसलें दमदार रहने और रबी सत्र में भी उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीदों से चावल, गेहूं और दलहन का उत्पादन एवं इनकी कीमतें सहज स्तर पर रहनी चाहिए। नियमित अंतराल पर आने वाले आंकड़ों से मिल रहे संकेतों के अनुसार अगस्त और सितंबर में ज्यादातर खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई चौंकाने वाली कमी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में दर्शाए गईं और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा दर्ज खाद्य कीमतों में अंतर दिखता है। यह आंकड़ों में त्रुटि हो मामला लगता है।

बारिश के कारण सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं मगर यह बड़ा खतरा नहीं लग रहा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पिछले एक वर्ष के दौरान खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों से लगातार मिले झटकों के बावजूद कोई दूरगामी असर असर नहीं दिखा है। इसका मतलब है कि सब्जियों की कीमतें ऊंचे स्तरों पर रहना विशेष चिंता का कारण नहीं है और नीतिगत नजरिये से इसे अधिक तूल नहीं दिया जा सकता।

दूसरे संकेतक भी इस विचार का समर्थन कर रहे हैं। अगस्त में सीपीआई (सब्जियां शामिल नहीं ) मुद्रास्फीति केवल सालाना आधार पर 3.1 प्रतिशत रही है। सीपीआई में शामिल वस्तुओं की सूची में सब्जियों की हिस्सेदारी 94 प्रतिशत तक होती है। अगले एक वर्ष के दौरान लोगों की नजरों में मुद्रास्फीति अनुमान बहुत अधिक नहीं बदला है और सीपीआई मुद्रास्फीति 4.0-4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। जब सब्जियों की कीमतें नरम होती हैं तो समग्र मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत न रहकर इससे काफी नीचे रहेगी।

कुल मिलाकर, प्रतिकूल आधार के कारण सितंबर में सीपीआई मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका है मगर हमें लगता है कि सीपीआई मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में आरबीआई के अनुमान से 0.2 प्रतिशत अंक और तीसरी तिमाही से 0.3 प्रतिशत अंक कम रहेगी। सीपीआई मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में सालाना आधार पर औसत क्रमशः 4.4 प्रतिशत और 3.9 प्रतिशत रह सकती है।

नरम वृद्धि के संकेत

अगस्त से वृद्धि के संकेत उम्मीद से कमजोर रहे हैं। वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में सालाना आधार पर 6.7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर आरबीआई के अनुमान से 0.4 प्रतिशत कम थी। दूसरी तिमाही में अब तक नियमित आधार पर आने वाले आर्थिक आंकड़े यही संकेत दे रहे हैं कि मांग उम्मीद से कम रहेगी।

यात्री वाहन एवं मझोले/भारी व्यावसायिक वाहनों की बिक्री, डीजल उपभोग, निर्यात, जीएसटी संग्रह, सीमेंट और इस्पात में सुस्ती दिखी है। हमारे मौजूदा अनुमान बताते हैं कि तिमाही आधार पर वृद्धि दर कमजोर है और जीडीपी दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 7 प्रतिशत से कम भी रह सकती है।

अस्थायी कारणों जैसे सरकार की तरफ से व्यय में सुस्ती और बारिश आदि आंशिक रूप से इस नरमी के कारण हैं न कि पूरी तरह जिम्मेदार हैं। ऋण आवंटन की वृद्धि दर भी नियामकीय सख्ती के कारण धीमी पड़ रही है। चालू वित्त वर्ष में 8 सितंबर तक ऋण आवंटन की वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही है, जो समान पिछली समान अवधियों में 5.0-5.5 प्रतिशत रहती थी। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि वित्तीय परिस्थितियां सहज हैं मगर वृहद आधार पर निजी क्षेत्र से पूंजीगत व्यय नहीं बढ़ा है और न ही शहरी क्षेत्रों में स्वैच्छिक खर्चों में ही तेजी दिखी है।

शुरुआती खबरों के अनुसार त्योहारों के शुरू में मांग नरम रहने के बाद वाहन कंपनियों एवं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरफ से बड़ी छूट की पेशकश से बिक्री बढ़ेगी और इन्वेंट्री भी कम होगी। सरकारी व्यय में इजाफा और बेहतर मॉनसून वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही के लिए सकारात्मक संकेत हैं मगर नीतिगत स्तर पर सख्ती से महंगे ऋण, सुस्त मांग इन पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हमें वित्त वर्ष 2025 में सालाना आधार पर जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है और यह नरमी वित्त वर्ष 2026 में भी नजर आएगी। फिलहाल 7 प्रतिशत से ऊंची वृद्धि दर की संभावना कम दिख रही है।

एक नजर में

कुल मिलाकर खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम हो रही हैं और सब्जियों की कीमतें ऊंचे स्तरों पर जरूर हैं मगर इसके अधिक जोखिम शायद नहीं दिखेंगे। सब्जियों को शामिल नहीं करें तो मुद्रास्फीति 3-4 प्रतिशत के दायरे में है। वृद्धि दर पहली और दूसरी तिमाही में उम्मीद से कम रही है और यह नरम भी प्रतीत हो रही है। ब्रेंट क्रूड के दाम अगस्त के 80 डॉलर प्रति बैरल से कम होकर 70 डॉलर के करीब आ गए हैं। हालांकि, पश्चिम एशिया तनाव के बाद तेल के दाम फिर बढ़ रहे हैं। और फेडरल रिजर्व ने ब्याज में कमी करने का सिलसिला शुरू कर दिया है।

नीतिगत स्तर पर इसके मायने

मौद्रिक नीति का मकसद संतुलन साधना है। वर्ष 2022 के शुरू में जब समग्र मुद्रास्फीति उभार पर थी और नीतिगत दरें काफी कम थीं तो संतुलन बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन वापस लिए जाने की मांग उठने लगी। अब मुद्रास्फीति लक्ष्य के पास है, वृद्धि के संकेत कमजोर पड़ने लगे हैं और यह स्पष्ट नहीं है कि सुस्त पड़ती आर्थिक गति केवल अस्थायी है या लंबे समय मंद ही रहेगी।

प्रमुख मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि को लेकर नरम संकेत मिलने के बीच हमारा मानना है कि संसाधनों का पूर्ण इस्तेमाल नहीं हो रहा है और एक वर्ष की फॉरवर्ड नीतिगत दर 2.5 प्रतिशत तटस्थ स्तर से ऊपर है। जब नीतिगत स्तर पर पुनर्विचार करने की गुंजाइश मौजूद है, आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति संतुलन में स्पष्ट बदलाव दिख रहा है और मौद्रिक नीति का असर कुछ समय के बाद दिखता है तो फिर इंतजार क्यों? फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज में कटौती एक बड़ा संकेत हो सकती है मगर नीतिगत दर पर पुनर्विचार करने के लिए आंतरिक कारण मौजूद हैं।

(लेखिका नोमूरा में मुख्य अर्थशास्त्री (भारत एवं एशिया, जापान छोड़कर) हैं)

First Published - October 7, 2024 | 9:25 PM IST

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