वर्ष 2022 में तीन बिंदु-क्रिप्टोकरेंसी, सीबीडीसी और क्रेडिट ग्रोथ (थ्री सी) अहम रहे हैं। क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ निरंतर संघर्ष, सीबीडीसी (केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा) की ओर बढ़ते छोटे कदम और बैंक की ऋण वृदि्ध एक दशक के उच्च स्तर पर रही है। हालांकि इस पृष्ठभूमि में दरों में लगातार बढ़ोतरी और नकदी में कमी के माध्यम से महंगाई को नियंत्रण में लाने की लड़ाई भी अहम है। इस संदर्भ को दर्शाने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर करना जरूरी है। खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी में 6.01 प्रतिशत थी जो लगातार 10 महीनों तक भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य (4 प्रतिशत +/- 2 प्रतिशत) के ऊपरी दायरे में बनी रही और नवंबर में कम होकर 5.88 प्रतिशत हो गई। अप्रैल में यह 7.79 प्रतिशत थी जो मई 2014 के बाद सबसे अधिक है।
वर्ष की शुरुआत में आरबीआई वृद्धि जारी रखने के लिए आवश्यक रुख के वास्ते तैयार था। हालांकि जैसे ही रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, इसके बाद वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में नाटकीय रूप से बदलाव आया जिससे कदम उठाने का वक्त भी आ गया। मई में नीतिगत दरों में पहली वृद्धि के बाद से, दरों में पांच बार वृद्धि हुई है और इसके चलते रीपो दर 4 प्रतिशत के अपने ऐतिहासिक निचले स्तर से बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो गई है। इसका मतलब यह है कि नीतिगत दर में 2.25 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।
क्या यह सही है? पहले बुनियादी बात को समझें तो केंद्रीय बैंक रीपो दर के माध्यम से नकदी का स्तर पर बढ़ाता है और रिवर्स रीपो के माध्यम से नकदी निकाल लेता है। इसका मतलब यह है कि पिछले कुछ सालों की तरह ही नकदी से भरी वित्तीय प्रणाली में तकनीकी रूप से रिवर्स रीपो दर ही नीतिगत दर है। चूंकि रिवर्स रीपो दर 3.35 प्रतिशत थी ऐसे में नीतिगत दर (तकनीकी रूप से) में 2.9 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। इसमें और वृद्धि हो सकती है लेकिन यह एक अलग दास्तां है।
इस साल की शुरुआत में तंत्र में नकदी 7.91 लाख करोड़ रुपये के अधिशेष के दायरे में थी जबकि पिछले सप्ताह शुक्रवार को यह 33,000 करोड़ रुपये के घाटे में थी। 10 साल का बॉन्ड प्रतिफल जनवरी में 6.46 प्रतिशत के स्तर पर था जो साल के दौरान बढ़कर 7.62 प्रतिशत हो गया। पिछले सप्ताह यह 7.32 प्रतिशत के स्तर पर बंद हुआ था। प्रतिफल के स्तर पर कुछ हिस्से में वृद्धि तेज थी। उदाहरण के तौर पर 91 दिनों के ट्रेजरी बिल का प्रतिफल, जनवरी में 3.57 प्रतिशत था और बाद में घटकर 3.52 प्रतिशत और फिर बढ़कर 6.52 प्रतिशत हो गया। पिछले हफ्ते यह 6.36 प्रतिशत तक था।
रिकॉर्ड के लिए इस वर्ष, केंद्र सरकार की सकल उधारी 14.3 लाख करोड़ रुपये के अपने ऐतिहासिक उच्च स्तर पर रही है। दरअसल, इस साल वित्तीय परिदृश्य पर अस्थिरता हावी रही है। जनवरी में डॉलर 74.46 रुपये के स्तर पर था। रुपया 73.74 प्रति डॉलर तक मजबूत होने के बाद तेज गिरावट के साथ 83.26 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर आ गया जबकि पिछले सप्ताह रुपया 82.80 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। रुपये की गिरावट को थामने के लिए आरबीआई को डॉलर बेचने पड़े। इसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार जो जनवरी में 633.61 अरब डॉलर था, अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में घटकर 524.52 अरब डॉलर रह गया।
दिसंबर के मध्य में 563.5 अरब डॉलर तक गिरने से पहले यह आंकड़ा बढ़कर 564.07 अरब डॉलर हो गया था। रिजर्व बैंक की डॉलर बिक्री के कारण के अलावा भी अन्य मुद्राओं के अवमूल्यन के चलते भी विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। इस बीच, सालाना बैंक जमा (2 दिसंबर तक) 9.9 प्रतिशत बढ़कर 175.24 लाख करोड़ रुपये हो गई है जबकि बैंक ऋण 17.5 प्रतिशत बढ़कर 131.06 लाख करोड़ रुपये हो गया है। पूर्ण रूप से बैंक जमा में वृद्धि 15.72 लाख करोड़ रुपये रही है जो 19.48 लाख करोड़ रुपये की ऋण वृद्धि से कम है। कर्ज की मांग में वृद्धि के बलबूते बैंक ज्यादा आमदनी और मुनाफा दर्ज कर रहे हैं जो पहले कभी नहीं देखा गया। फंसे कर्ज का दायरा अब कम हो रहा है और फंसे कर्ज के निपटान के लिए बैंकों द्वारा अलग रखी गई पूंजी यानी बैंक प्रावधान कवरेज अनुपात काफी ज्यादा है। इसके अलावा, अधिकांश बैंकों के पास पूंजी का दायरा अच्छा-खासा है।
यही कारण है कि जनवरी के बाद से बैंक शेयर सूचकांक, निफ्टी बैंक और बैंकेक्स लगभग 17.5 प्रतिशत बढ़ गए हैं जबकि सेंसेक्स में 2.73 प्रतिशत और निफ्टी में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंक शेयरों में से छह बैंकों के शेयर जनवरी के बाद से कम से कम 50 प्रतिशत बढ़ चुके हैं और इनमें से करीब दो में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। अब अन्य दो सी बिंदुओं के बारे में बात करते हैं। पिछले हफ्ते बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई सम्मेलन में एक बार फिर आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने क्रिप्टोकरेंसी पर एतराज जताया और चेतावनी दी कि अगर इस तरह की सट्टेबाजी वाले माध्यमों को बढ़ने की अनुमति दी जाती है तो अगला वित्तीय संकट निजी क्रिप्टोकरेंसी के जरिये शुरू हो सकता है।
निजी क्रिप्टोकरेंसी का मूल्यांकन 190 अरब डॉलर से घटकर 140 अरब डॉलर हो गया है और बाजार-निर्धारित मूल्य के लिए इसमें कोई अंतर्निहीत मूल्य नहीं है। दास ने कहा, ‘यह शत-प्रतिशत अटकलबाजी वाली गतिविधि है और मेरा अब भी मानना है कि इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अगर आप इसे विनियमित करने और इसे बढ़ने की अनुमति देने की कोशिश करते हैं, तो मेरे शब्दों को आप याद करेंगे कि अगला वित्तीय संकट निजी क्रिप्टोकरेंसी से आएगा।’ कुछ समय पहले तक सरकार का रुख अस्पष्ट था। केंद्रीय बजट 2022 में क्रिप्टोकरेंसी से मिलने वाले लाभ पर 30 प्रतिशत कर के साथ-साथ स्रोत पर 1 प्रतिशत कर कटौती की घोषणा की गई है। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि आरबीआई क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है और उसने मंत्रालय को बताया था कि इसे वैध पूंजी नहीं मानी जा सकती है क्योंकि इन्हें केंद्रीय बैंक द्वारा जारी नहीं किया जाता है।
नवंबर में एफटीएक्स के धराशायी होने पर अन्य क्रिप्टो एक्सचेंजों पर भी इसका प्रभाव पड़ा। दुनिया के सबसे बड़े क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों में से एक माने जाने वाले एफटीएफ्स का मूल्यांकन कभी 32 अरब डॉलर था और इस पर एक दिन में लगभग 1 अरब डॉलर का लेनदेन होता रहा है। सबसे लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन की कीमत एक साल पहले 69,000 डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद सप्ताहांत के दौरान नवंबर में 16,000 डॉलर के स्तर से नीचे चली गई और सप्ताहांत के दौरान इसका कारोबार 16,822 डॉलर के स्तर पर हो रहा था।
अक्टूबर में वैश्विक वित्तीय प्रणाली के बारे में निगरानी और सिफारिशें करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संस्था, वित्तीय स्थायित्व बोर्ड (एफएसबी) ने क्रिप्टो-परिसंपत्ति गतिविधियों के अंतरराष्ट्रीय नियमन के लिए एक प्रस्तावित नियम प्रकाशित कराए हैं। इसने क्रिप्टो-परिसंपत्तियों और बाजारों के लिए एक सुसंगत और व्यापक नियामक के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग, समन्वय और सूचना साझेदारी की प्रक्रिया और मजबूत करने का आह्वान किया है। दास ने बिज़नेस स्टैंडर्ड सम्मेलन में कहा कि आरबीआई उन्हें पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के अपने रुख पर कायम रहना चाहेगा।
वर्ष 2022 में, भारत उन 50 देशों की लीग में शामिल हो गया है जो डिजिटल मुद्रा की संभावनाएं तलाशने के अग्रिम चरण में हैं या इसे तैयार करने की प्रक्रिया में या प्रायोगिक परियोजना के लिए तैयार हैं या इसे पहले ही शुरू कर चुके हैं। आरबीआई ने थोक और खुदरा क्षेत्रों के लिए सीबीडीसी या ई-रुपया के लिए दो प्रायोगिक परियोजनाओं की शुरुआत की है। क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग और वॉलेट की तरह ही सीबीडीसी भुगतान प्रणाली का हिस्सा होंगे और यह वॉलेट के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान करने का एक और तरीका होगा। भारतीय वित्तीय प्रणाली में ऐसे कई वॉलेट काम कर रहे हैं। सीबीडीसी उनमें से एक होगा। यह देश के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाएंगे और नकदी की तरह ही ई-मुद्रा लेनदेन भी अनाम तरीके से होगा। इससे दोनों देशों के बीच तत्काल पूंजी हस्तांतरण की अनुमति मिलेगी और नोटों की छपाई, वितरण और गंदे नोटों की सफाई की लागत कम हो जाएगी। निश्चित तौर पर यह भविष्य की मुद्रा है।