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EMI बढ़ाएं या मियाद बढ़ाएं जो जेब कहे वही रास्ता अपनाएं

इस समय फिक्स्ड यानी स्थिर ब्याज दर के बजाय फ्लोटिंग दर पर कर्ज लेना ज्यादा फायदेमंद लग रहा है

Last Updated- August 27, 2023 | 11:09 PM IST
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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 18 अगस्त को ‘रीसेट ऑफ फ्लोटिंग इंट्रेस्ट रेट ऑन इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट्स (ईएमआई) – बेस्ड पर्सनल लोन्स’ नाम से एक सर्कुलर जारी किया। विशेषज्ञों का कहना है कि इन नियमों से ब्याज दरें बदलने या रीसेट करने की प्रक्रिया पहले से ज्यादा पारदर्शी हो गई है और उधार लेने वालों को ज्यादा विकल्प भी मिल रहे हैं।

कर्जदारों को विकल्प

पहले रीपो दर बढ़ने पर बैंक कर्ज की मियाद बढ़ा दिया करते थे। जब मियाद बढ़ाने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी तब वे मासिक किस्त (ईएमआई) में इजाफा करते थे। यह सब कर्ज लेने वाले से पूछे बगैर खुद ही कर दिया जाता था। लेकिन रिजर्व बैंक के नए नियमों के मुताबिक अब बैंकों को कर्जदार के सामने तीन विकल्प रखने होंगे और पूछना होगा कि उसे तीनों में से क्या पसंद है। ये तीन विकल्ब हैं – ईएमआई बढ़ाना, कर्ज की अवधि बढ़ाना या दोनों में थोड़ा-थोड़ा इजाफा।

बैंकबाजार के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) आदिल शेट्टी कहते हैं, ‘उधार लेने वाले जिन लोगों की माली हालत दुरुस्त होती है, वे ईएमआई बढ़ाने का विकल्प चुन सकते हैं ताकि पहले से तय मियाद के भीतर ही कर्ज खत्म हो जाए और ब्याज की रकम बच जाए।’

लेकिन ईएमआई बढ़ाने का मतलब है वित्तीय बोझ पड़ना या घर के बजट के साथ समझौता करना। इंडिया मॉर्गेज गारंटी कॉरपोरेशन के मुख्य परिचालन अधिकारी अनुज शर्मा का कहना है, ‘महीने का बोझ ज्यादा होगा तो नकदी कम रहेगी और कर्जदार की दूसरे लक्ष्यों के लिए निवेश करने की क्षमता भी घटती जाएगी।’

मियाद बढ़ाई गई तो कर्जदार के हाथों में ज्यादा नकदी रहेगी और उसे खर्च या निवेश करने की ज्यादा छूट मिल जाएगी। लेकिन इस सूरत में उसे ब्याज के नाम पर ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ेगी। इसलिए ईएमआई या मियाद बढ़वाते समय कर्जदार को अपनी वित्तीय क्षमता जरूर देख लेनी चाहिए।

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फिक्स्ड ब्याज दर पर जाएं?

रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि ब्याज दर बदलते या रीसेट करते समय कर्जदारों को फिक्स्ड यानी स्थिर ब्याज दर अपनाने का विकल्प देना अब अनिवार्य है। इस समय गिने-चुने बैंक या ऋणदाता ही फिक्स्ड रेट पर कर्ज का विकल्प दे रहे हैं। 20-30 साल लंबा कर्ज लेने पर फिक्स्ड रेट के क्या जोखिम होंगे, यह पता करना भी काफी मुश्किल है।

इस जोखिम को ध्यान में रखते हुए ही फिक्स्ड ब्याज दर वाले कर्ज थोड़े महंगे होते हैं यानी ब्याज दर अधिक रखी जाती है। शर्मा का कहना है कि उनमें फ्लोटिंग यानी बदलती रहने वाली दर के मुकाबले 2.5 से 3 फीसदी तक ज्यादा ब्याज लिया जाता है।

लेकिन फिक्स्ड ब्याज दर के अपने फायदे होते हैं। शर्मा समझाते हैं, ‘उनसे सुकून मिलता है। कर्जदार को पता रहता है कि महीने में एक तयशुदा रकम ही चुकानी होगी और एक तय तारीख पर उनका कर्ज पूरा हो जाता है।’ मगर ध्यान रहे कि इस तरह के कर्ज को समय से पहले चुकाने यानी प्री-पेमेंट करने पर बैंक शुल्क ले सकते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि फिलवक्त फ्लोटिंग ब्याज वाले कर्ज ही सही हैं। शेट्टी कहते हैं, ‘जब ब्याज दर ऊंची हैं, उस समय फिक्स्ड दर वाला कर्ज क्यों लेना? कुछ महीनों में ही ब्याज दर नीचे आनी शुरू हो सकती हैं।’ फिक्स्ड रेट का विकल्प उस समय टटोलना चाहिए,जब लगे कि ब्याज दर इससे नीचे नहीं जाएंगी। शेट्टी के मुताबिक कर्जदार को उस समय भी देख लेना चाहिए कि फ्लोटिंग दर में बने रहने और प्रीपेमेंट करने, दूसरे बैंक से कम फ्लोटिंग दर वाला कर्ज लेन तथा 2.5 से 3 फीसदी ऊंची फिक्स्ड दर पर कर्ज लेने में कौन सा विकल्प उसके लिए अच्छा है।

दर बढ़ोतरी के इस बार के दौर में रीपो दर कुल 250 आधार अंक ऊपर चली गई है। जो लोग पहले ही कर्ज ले चुके थे, उनकी ब्याज दर भी कम से कम इतनी ही बढ़ चुकी होगी। मगर नया कर्ज लेने वालों से कम ब्याज दर वसूली जा रही है क्योंकि कई बैंकों ने कर्ज पर अपना स्प्रेड कम कर दिया है। जिन लोगों के कर्ज पुरानी बेंचमार्क दर से जुड़े हैं, उन्हें अपना कर्ज दूसरे संस्थान में ले जाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

कुछ ही लोग अपना कर्ज पूरे 20 साल तक चलने देते हैं। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार दीपेश राघव का कहना है, ‘ज्यादातर लोग 7 से 10 साल में कर्ज खत्म कर लेते हैं। इसलिए अगर आप प्री-पेमेंट करने और कर्ज जल्दी खत्म करने की कोशिश में हैं तो ऊंची फिक्स्ड दर चुनने का कोई मतलब नहीं है।’ यदि फिक्स्ड दर चुननी ही है तो देख लें कि दर कर्ज की पूरी अवधि के लिए स्थिर रहेगी या नहीं। राघव बताते हैं कि ज्यादातर कर्ज में दर शुरुआती कुछ साल तक ही स्थिर रहती है।

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खाते का सरल ब्योरा

रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि हर तिमाही के अंत में खाते का सरल ब्योरा उपलब्ध कराना होगा। इस ब्योरे में यह जानकारी देने के लिए कहा गया है: उस तारीख तक वसूला गया मूलधन और ब्याज, ईएमआई, बची हुई ईएमआई की संख्या और कर्ज की पूरी अवधि के लिए वार्षिक प्रतिशत दर।

शेट्टी कहते हैं, ‘रिजर्व बैंक कह रहा है कि कर्ज की शर्तें और नियम शब्दों के जंजाल में छिपे नहीं रहने चाहिए।’ राघव की सलाह है कि कर्ज लेने वालों को अपने ब्योरे नियमित रूप से जांचने चाहिए और कर्ज की मोटी बातों के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए।

First Published - August 27, 2023 | 11:09 PM IST

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