आयकर आयुक्त (अपील) के स्तर पर 5 लाख से अधिक अपीलें लंबित होने के बावजूद वित्त मंत्रालय आयकर अपीलों को निपटाने की वैधानिक समय सीमा अनिवार्य किए जाने के पक्ष में नहीं है। आयकर विधेयक पर बनी प्रवर समिति के समक्ष विशेषज्ञों और हितधारकों ने अपीलों के निपटाने की समय सीमा तय किए जाने की मांग की थी।
प्रवर समिति ने सुझावों का सारांश देते हुए कहा, ‘आयकर विधेयक, 2025 में अपील की सुनवाई और आदेश पारित करने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है। यहां तक कि आयकर अधिनियम, 1961 के तहत भी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। प्रथम अपीली प्राधिकारियों- आयकर आयुक्त (अपील) और संयुक्त आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित अपीलों की विशाल संख्या है। इसके अलावा प्रथम अपीली प्राधिकारी जैसे महत्त्वपूर्ण प्राधिकारी द्वारा अपीलों के समय पर निपटारे के महत्त्व को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।’विधेयक पर बनी प्रवर समिति को दिए गए जवाब में वित्त मंत्रालय ने इन कार्यवाहियों की ‘न्यायिक प्रकृति’ का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अगर कोई सख्त समय सीमा लागू की जाती है तो फैसले की गुणवत्ता के साथ समझौता होने का जोखिम है।
मंत्रालय ने कहा, ‘उल्लेखनीय है कि अपील के किसी भी स्तर पर, चाहे वह उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, आयकर अपीली पंचाट या आयकर आयुक्त (अपील) हो, किसी भी स्तर पर कोई समय सीमा नहीं तय की गई है कि कितने समय में अपील को निपचाया जाना है। अपील से जुड़ी कार्यवाही न्यायिक प्रकृति की होती है और इनकी जटिलताओं और सभी जरूरी तथ्यों की जांच की जांच को ध्यान में रखते हुए इसकी प्रक्रिया को तेज नहीं किया जा सकता।’
वित्त मंत्रालय ने कहा कि कानून में केवल समय-सीमा और प्रक्रियागत जरूरतों का प्रावधान है तथा अपीली प्रक्रिया को अधिक कुशल और करदाता के अनुकूल बनाने के लिए प्रशासनिक उपायों के माध्यम से निरंतर प्रयास किया जा रहा है। मंत्रालय ने लंबित मामलों को कम करने की हाल की प्रशासनिक कवायदों का उल्लेख करते हुए कहा कि संस्थागत सुधारों के ठोस परिणाम सामने आए हैं। वित्त वर्ष 2025 में रिकॉर्ड 1,72,361 अपीलों का निपटारा किया गया, जो पहली बार नई अपीलों से अधिक था और इस प्रकार 1 अप्रैल, 2025 तक कुल लंबित मामलों में कमी आई।
मंत्रालय का कहना है कि अपील के मामलों में उल्लेखनीय जटिलताएं होती हैं और इसके लिए कोई निश्चित समय सीमा तय करने से फैसले की गुणवत्ता का जोखिम है। केपीएमजी के पार्टनर हिमांशु पारेख का कहना है कि आयकर अधिनियम के मुताबिक 3 आयकर आयुक्तों (सीआईटी) के कॉलेजियम से बना विवाद समाधान पैनल 9 महीने की अवधि में अनिवार्य रूप से अंतरराष्ट्रीय कराधान से संबंधितआदेश पारित करने का नियम है। उन्होंने आगे कहा, ‘जब 3 आयकर आयुक्तों वाले पैनल पर एक वैधानिक समय सीमा तय की जा सकती है तो कोई वजह नहीं है कि सीआईटी (ए) द्वारा अपीलों के निपटान की उचित समय सीमा न तय कर दी जाए।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी सर्विसेज में पार्टनर विवेक जालान ने कहा सीबीडीटी द्वारा गंभीरता से किए गए प्रयासों के बावजूद सीआईटी (ए) के पास लंबित मामलों का ढेर लगा हुआ है। जालान ने कहा, ‘शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली याचिकाओं पर भी विचार नहीं किया जाता क्योंकि ऐसा लगता है कि हर कोई ऐसी याचिकाएं दायर कर रहा है। देरी की वजह से करदाताओं को वांछित राहत नहीं मिल पा रही है। कभी कभी जल्दी मामला निपटने की आस में ही फैसलों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।’