किसी भी कंपनी में काम कीजिए, आम तौर पर कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा दिया ही जाता है। स्वास्थ्य बीमा कॉम्प्रिहेंसिव हो और पर्याप्त रकम वाला हो तो कर्मचारी और उसके परिवार को सुरक्षा तथा दिमागी सुकून मिल जाता है। मगर स्वास्थ्य बीमा प्लेटफॉर्म प्लम 2,500 से अधिक कंपनियों द्वारा दी जा रहीं ग्रुप स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों की पड़ताल कर अपने अध्ययन में बताया कि पॉलिसियों और उनसे मिल रहे कवरेज में बहुत खामियां हैं।
कंपनी जब कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा दिलाती है तो कई फायदे होते हैं। सबसे पहले तो प्रीमियम का बोझ कंपनी पर होता है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन कहते हैं, ‘कर्मचारी, उसके जीवनसाथी और संतानों के बदले प्रीमियम अक्सर कंपनी ही भरती है, जो कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत की बात होती है।’
दूसरा फायदा उन लोगों को होता है, जिन्हें पहले से कोई बीमारी होती है और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां उनका बीमा करने से इनकार कर चुकी होती हैं। सिक्योरनाउ के सह संस्थापक और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) कपिल मेहता बताते हैं, ‘जब कंपनी ग्रुप स्वास्थ्य बीमा दिलाती है तब न तो कोई स्वास्थ्य जांच करानी होती है, न मेडिकल अंडरराइटिंग होती है और न ही पहले से मौजूद बीमारी के बारे में बताना होता है। इसलिए कर्मचारी की सेहत कैसी भी हो, उसे बीमा मिल ही जाता है।’
तीसरा फायदा यह है कि पहले से मौजूद बीमारियों के लिए भी बीमा की सुविधा पॉलिसी शुरू होते ही मिलने लगती है। प्लम के सह संस्थापक और सीईओ अभिषेक पोद्दार बताते हैं कि निजी स्वास्थ्य बीमा लेने पर पहले से मौजूद बीमारियों के लिए वेटिंग पीरियड होता है यानी उन बीमारियों के लिए बीमा सुविधा कुछ समय रुककर मिलती है। यह वेटिंग पीरियड दो साल से चार साल तक हो सकता है।
चौथा फायदा यह है कि ग्रुप स्वास्थ्य बीमा में अक्सर माता-पिता भी शामिल कर लिए जाते हैं। उन्हें कई बीमारियां पहले से हो सकती हैं, इसलिए उनका निजी स्वास्थ्य बीमा आसानी से नहीं होता। ऐसे में संतानों का ग्रुप स्वास्थ्य बीमा ही उनका सहारा होता है।
पांचवां और आखिरी फायदा यह है कि ग्रुप स्वास्थ्य बीमा में मातृत्व लाभ भी होते हैं, जो निजी हेल्थ पॉलिसी में अक्सर नहीं होते।
मगर कंपनी से मिल रहे स्वास्थ्य बीमा में कुछ कमियां भी होती हैं। इनका नवीनीकरण यानी रीन्युअल हर साल कराना होता है। नियोक्ता कंपनी इसे रीन्यू कराएगी या नहीं, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती।
पॉलिसी का प्रीमियम कंपनी से अतीत में आए दावों के हिसाब से घटता-बढ़ता रहता है। मेहता समझाते हैं, ‘दावे ज्यादा हो गए तो बीमा कंपनी प्रीमियम बढ़ा सकती है। ऐसे में कंपनी बीमा के कुछ फायदे कम करा सकती है या हो सकता है कि वह पॉलिसी रीन्यू ही नहीं कराए।’
नई और छोटी कंपनियों के उन कर्मचारियों के लिए इससे अनिश्चितता की स्थिति बन सकती है, जो कंपनी के ग्रुप स्वास्थ्य बीमा पर ही निर्भर हैं। कई कंपनियां केवल कर्मचारी का स्वास्थ्य बीमा कराती हैं। प्लम का अध्ययन बताता है कि 30 फीसदी कंपनियां कर्मचारी के परिजनों को यह सुविधा नहीं देतीं और 75 फीसदी कर्मचारियों के माता-पिता को बीमा में शामिल नहीं करतीं।
प्लम का अध्ययन यह भी बताता है कि औसतन कंपनियां कर्मचारियों को 3 लाख रुपये तक की स्वास्थ्य बीमा सुविधा देती हैं। गंभीर बीमारी में यह रकम बहुत कम पड़ जाएगी। अध्ययन में पता चला कि केवल 56 फीसदी कंपनियां मातृत्व लाभ देती हैं। आज सामान्य प्रसव में भी 60,000 से 80,000 रुपये लग जाते हैं। ऑपरेशन हुआ तो 1 लाख रुपये से ऊपर का बिल बनता है। धवन का कहना है कि इसके कारण युवा जोड़ों पर करियर की शुरुआत में भारी बोझ पड़ सकता है। मातृत्व लाभ देने से युवा और महिला कंपनी से जुड़े रहेंगे मगर कई कंपनियां खर्च बचाने के फेर में इसे हटवा देती हैं।
ऐसी खामियों और परेशानियों से बचने के लिए कंपनी के बीमा के साथ निजी स्वास्थ्य बीमा भी जरूर कराना चाहिए। वरना नौकरी जाने पर कर्मचारी बिना स्वास्थ्य बीमा रह जाएगा। यदि नौकरी बदली और नई कंपनी में समूह स्वास्थ्य बीमा नहीं हुआ तो भी दिक्कत आ सकती है। इसलिए निजी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेने में देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि 44-45 साल की उम्र के बाद निजी बीमा मिलना मुश्किल भी हो जाता है।