एक हालिया मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों के करीब 90,000 वेतनभोगियों ने 31 दिसंबर, 2024 तक 1,070 करोड़ रुपये के कर कटौती दावों को वापस ले लिया। आयकर विभाग के पास विभिन्न स्रोतों से व्यापक डेटा उपलब्ध होता है और इसलिए वह गलत दावों का आसानी से पता लगा सकता है।
नियोक्ता अपने कर्मचारियों द्वारा जमा कराए गए सबूतों और रसीदों के आधार पर कर कटौती की गणना करते हैं। नांगिया ऐंड कंपनी के पार्टनर नीरज अग्रवाल ने कहा, ‘नियोक्ता अपने कर्मचारियों से ऐसे दस्तावेज हासिल करता है। वह बुनियादी जांच-परख के अलावा दस्तावेजों की प्रामाणिकता को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर सकता है।’
कर्मचारी सीधे तौर पर कटौती का दावा करते हुए नियोक्ता की जांच को पूरी तरह दरकिनार कर सकता है। अग्रवाल ने कहा, ‘कर्मचारी अपने आयकर रिटर्न (आईटीआर) में लागू कटौती का सीधे तौर पर दावा करते हुए नियोक्ता द्वारा काटे गए अतिरिक्त कर के लिए रिफंड हासिल कर सकते हैं। वह रिफंड का दावा करते हुए अतिरिक्त कर को किसी अन्य आय लिए समायोजित करवा सकते हैं।’
आम तौर पर नियोक्ता अपने कर्मचारियों द्वारा किए गए कटौती के दावे के लिए सबूत जनवरी से मार्च के बीच मांगते हैं। कुछ कर्मचारी इन कटौतियों का फायदा उठाने के लिए सॉफ्टवेयर के जरिये नकली दस्तावेज तैयार कर लेते हैं। यात्रा भत्ता (एलटीए) का लाभ उठाने के लिए जाली टिकटों और बिलों का भी उपयोग भी किया जाता है। धर्मादा ट्रस्टों अथवा राजनीतिक दलों को फर्जी चंदा देकर भी धोखाधड़ी की जाती है। ऐसे में मामलों में अक्सर चंदा देने वालों को मामूली कमीशन देकर रकम वापस मिल जाती है।
रिटर्न फाइल करते समय आवास भत्ता (एचआरए) के लिए भी गलत दावे किए जाते हैं। टैक्समैन के उपाध्यक्ष (अनुसंधान एवं परामर्श) नवीन वाधवा ने कहा, ‘कई करदाता मकान मालिक को वास्तव में भुगतान किए बिना इस छूट का दावा कर लेते हैं।’
सालाना 1 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने वाले किरायेदारों को अपने मकान मालिक का स्थायी खाता संख्या (पैन) बताना होता है। अरविंद राव ऐंड एसोसिएट्स के संस्थापक अरविंद राव ने कहा, ‘आयकर विभाग के पास मकान मालिक का पैन आ जाने के बाद वह आसानी से जांच कर सकता है कि मकान मालिक के आईटीआर में किराया मद की आय दिखाई गई है या नहीं। अगर ऐसा नहीं किया गया है तो विभाग किराये के सत्यापन के लिए और यह देखने के लिए जांच शुरू कर सकता है कि क्या वाकई मकान मालिक को किराया मिला है अथवा नहीं।’
धर्मादा चंदा के मामले में ट्रस्टों को आयकर विभाग के पास फॉर्म 10बीडी जमा कराना होता है। उसमें दानकर्ता का नाम, पैन, प्राप्त रकम आदि की जानकारी होती है। ट्रस्ट दानकर्ताओं को फॉर्म 10बीई भी जारी करता है जिसमें दान की पुष्टि की गई होती है। वाधवा ने कहा, ‘अगर कर अधिकारियों को फर्जी दानकर्ताओं के विवरण वाले दस्तावेज मिलते हैं तो तलाशी अभियान के दौरान धोखाधड़ी वाले लेनदेन का पता चल सकता है।’ ट्रस्टों को दिए गए दान अथवा राजनीतिक दलों के चंदे के मामलों में किसी भी तरह की संदिग्ध वृद्धि भी आम तौर पर जांच को रफ्तार देती है।
आयकर विभाग कर्मचारियों द्वारा अपने आईटीआर में किए गए दावों को वित्तीय संस्थानों, बीमा कंपनियों आदि के आंकड़ों से सत्यापित करने के लिए डेटा एनालिटिक्स का भी उपयोग करता है। अग्रवाल ने कहा, ‘अगर आंकड़ों किसी भी तरह की विसंगतियां पाई जाती हैं तो विभाग संबंधित करदाता से दावे के सत्यापन के लिए उपयुक्त रसीद एवं दस्तावेज की मांग कर सकता है।’
राव जोर देकर कहा कि कर्मचारी को न केवल अपने आईटीआर के आधार पर बल्कि तीसरे पक्ष से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भी जांच का सामना करना पड़ सकता है।
आईटीआर में किए गए गलत दावा पकड़े जाने पर जुर्माना लगाया जाता है। मुंबई के चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश सुराणा ने कहा, ‘गलत दावा पकड़े जाने पर आयकर अधिनियम की धारा 234बी और 234सी के तहत करदाता को प्राप्त कर लाभ को ब्याज सहित चुकाना होगा। धारा 270ए के तहत अतिरिक्त जुर्माना कर चोरी की रकम का 50 से 200 फीसदी तक हो सकता है। गंभीर मामलों में जानबूझकर कर चोरी करने के लिए धारा 276सी के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।’
करदाता आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि से पहले संशोधित रिटर्न जमा करते हुए अपने दावों में सुधार कर सकता है। अंतिम तिथि के बाद दावों में सुधार के लिए संबंधित कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति के दो साल के भीतर अद्यतन आईटीआर दाखिल किया जा सकता है। सुराणा ने कहा, ‘हालांकि इसमें अतिरिक्त करों का भुगतान शामिल है।’ राव ने कहा कि अगर कोई करदाता खुद अपना दावा वापस ले लेता है और उसका पता चलने से पहले उचित कर का भुगतान कर देता है तो विभाग कोई जुर्माना नहीं लगाता है।