सोने (gold) ने मौजूदा कैलेंडर ईयर की पहली छमाही के दौरान 12 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दिया। उल्लेखनीय बात है कि यह तेजी उस अवधि के दौरान दर्ज की गई जिस अवधि के दौरान न सिर्फ यूएस डॉलर (US Dollar) में मजबूती रही बल्कि अमेरिका सहित बड़े विकसित देशों में ब्याज दरें ऊपरी स्तर पर बनी रही। आम तौर पर मजबूत डॉलर और उच्च ब्याज दर सोने की कीमतों के लिए सकारात्मक नहीं होते। इस साल यूएस डॉलर इंडेक्स 3.5 फीसदी से ज्यादा मजबूत हुआ है।
इन परिस्थितियों के मद्देनजर कुछ जानकार यहां तक मान बैठे कि गोल्ड, वास्तविक इंटरेस्ट रेट (Real Interest Rate) और यूएस डॉलर के बीच की डोर टूट गई है। लेकिन ऐसा नहीं है। गोल्ड, रियल इंटरेस्ट रेट और यूएस डॉलर के बीच की डोर अभी भी बरकरार है और इसी की वजह से गोल्ड में मजबूती पर एक हद तक लगाम लगा है। हां, यह बात भी सही है कि रियल इंटरेस्ट रेट और यूएस डॉलर जैसे फैक्टर्स पर अन्य फैक्टर्स मसलन केंद्रीय बैंकों की खरीदारी, कंज्यूमर डिमांड … वगैरह भारी पड़े हैं।
इस साल अभी तक कीमतों को सबसे ज्यादा सपोर्ट केंद्रीय बैंकों की खरीदारी से मिला है। साथ ही एशियाई देशों से निकल रही बेहतर निवेश मांग, मजबूत ग्लोबल कंज्यूमर डिमांड और बढ़ते जियो पॉलिटिकल टेंशन ने भी कीमतों को मजबूत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है।
लेकिन क्या दूसरी छमाही में भी कीमतों में तेजी बरकरार रह सकती है?
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) की ताजा मिड-ईयर आउटलुक की मानें तो सोने की कीमतों में शायद पहली छमाही जैसी तेजी दूसरी छमाही में देखने को न मिले। मिड-ईयर आउटलुक के मुताबिक दूसरी छमाही में कीमतें रेंज बाउंड यानी दायरे में रह सकती हैं। आंकड़ों में बात करें तो पूरे कैलेंडर ईयर 2024 के दौरान गोल्ड की बढ़त 10 फीसदी के आस-पास रह सकती है।
जानकारों के मुताबिक गोल्ड को फिलहाल एक ऐसे फैक्टर की दरकार है जो कीमतों में तेजी का रुख लाए। विकसित देशों में यदि ब्याज दरें नीचे आती हैं तो शायद गोल्ड में एक स्पष्ट तेजी की स्थिति बन सकती है। विकसित देशों के केंद्रीय बैंक यदि इस तरह का कदम उठाते हैं तो नि:संदेह पश्चिमी देशों में निवेशकों का रुझान फिर से गोल्ड की तरफ बढ़ सकता है। गोल्ड में पिछले अक्टूबर के बाद से जो शानदार तेजी देखने को मिली है उससे पश्चिमी देशों के रिटेल निवेशक कमोबेश अछूते ही रहे हैं। खासकर ईटीएफ के आंकड़े तो इस बात की तस्दीक करते हैं कि पश्चिमी देशों में रिटेल इन्वेस्टमेंट डिमांड की स्थिति कमजोर बनी हुई है। जानकार मानते हैं कि गोल्ड में आगे जो तेजी होगी उसमें पश्चिमी देशों के निवेशक शायद बड़ी भूमिका निभाएं।
कीमतों में तेजी की सूरत उस स्थिति में भी बन सकती है यदि ग्लोबल इन्वेस्टर्स की रुचि बढते जियो पॉलिटिकल टेंशन और इक्विटी में बेसिर-पैर की तेजी के मद्देनजर करेक्शन की आशंका के बीच गोल्ड में बनी रहती है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि गोल्ड के लिए नेगेटिव फैक्टर्स नहीं हैं। यदि केंद्रीय बैंकों की खरीदारी में बड़ी कमी आती है या एशियाई निवेशक इस एसेट में भारी बिकवाली करते हैं तो कीमतों में तेज गिरावट का दौर शुरू हो सकता है। मई के आंकड़े भी बता रहे हैं कि चीन के केंद्रीय बैंक की तरफ से सोने की खरीदारी में ठहराव आया है।
हालांकि वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के हालिया 2024 Central Bank Gold Reserves (CBGR) survey में यह बात सामने निकल कर आई है कि 29 फीसदी केंद्रीय बैंक अगले 12 महीने में अपने गोल्ड रिजर्व में बढ़ोतरी करना चाह रहे हैं। इस सर्वे में गोल्ड की खरीदारी को लेकर केंद्रीय बैंकों ने जितना उत्साह जताया है वह वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के इस तरह के बाकी सभी सर्वे के मुकाबले ज्यादा है। पिछले साल के सर्वे में 24 फीसदी केंद्रीय बैंकों ने अपने गोल्ड रिजर्व में वृद्धि करने की इच्छा जताई थी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल सोना 2,370 डॉलर प्रति औंस के करीब है। ग्लोबल मार्केट में 22 मई 2024 को स्पॉट गोल्ड (spot gold) 2,449.89 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। इसी तरह बेंचमार्क यूएस जून गोल्ड फ्यूचर्स (Gold COMEX Jun′24) भी 21 मई 2024 को कारोबार के दौरान 2,454.2 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चला गया था।